लेबल पर मत जाइए, हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और...ICMR ने उपभोक्ताओं को चेताया
भारतीयों के लिए आहार संबंधी दिशा निर्देश आईसीएमआर-एनआईएन की निदेशक डॉ. हेमलता आर की अगुवाई वाली विशेषज्ञों की समिति द्वारा तैयार किए गए हैं। इसमें शारीरिक गठन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोटीन सप्लीमेंट से बचने का अनुरोध किया है। आईएमसीआर का कहना है कि एक अनुमान के अनुसार देश में 56.4 प्रतिशत बीमारियां गलत खानपान की वजह से होती हैं।
पीटीआई, नई दिल्ली। यदि आप पैकेट बंद खाद्य सामग्री खरीद रहे हैं तो सावधान। सिर्फ उसके लेबल पर मत जाइए जनाब, यह भ्रामक भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और हो सकते हैं। शुगर-फ्री होने का दावा करने वाले खाद्य पदार्थ में वसा की मात्रा ज्यादा हो सकती हैं, जबकि डिब्बाबंद फलों के रस में फल का केवल 10 प्रतिशत तत्व ही हो सकता है।
शीर्ष स्वास्थ्य अनुसंधान निकाय भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस संबंध में चेताया है और कहा है कि उपभोक्ताओं को सामग्री खरीदते वक्त जानकारीपूर्ण और सही विकल्प के लिए उस पर लिखी जानकारी को भी सावधानीपूर्वक पढ़ना चाहिए।
हाल ही में जारी किए आहार संबंधी दिशा निर्देशों में आईसीएमआर ने कहा है कि पैकेट वाले खाद्य पदार्थ पर स्वास्थ्य संबंधी दावे उपभोक्ता का ध्यान आकर्षित करने के लिए और उन्हें इस बात पर राजी करने के लिए किए जा सकते हैं कि यह उत्पाद सेहत के लिहाज से बहुत अच्छा है। आईसीएमआर के तहत काम करने वाले हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय पोषण संस्थान (एनआईएन) द्वारा भारतीयों के लिए जारी आहार संबंधी दिशा निर्देशों में कहा गया है कि भारत खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के कड़े नियम हैं, लेकिन लेबल पर लिखी सूचना भ्रामक हो सकती है।
एनआईएन ने कुछ उदाहरण देते हुए कहा कि किसी खाद्य उत्पाद को तभी प्राकृतिक कहा जा सकता है जब उसमें कोई रंग और स्वाद (फ्लेवर) या कृत्रिम पदार्थ न मिलाया गया हो और वह न्यूनतम प्रसंस्करण से गुजरा हो। इसमें कहा गया है कि प्राकृतिक शब्द का प्रयोग प्राय: धड़ल्ले से किया जाता है। यह किसी मिश्रण में एक या दो प्राकृतिक सामग्री की पहचान के लिए विनिर्माताओं द्वारा अकसर इस्तेमाल किया जाता है और यह भ्रामक हो सकता है। एनआईएन ने लोगों से लेबल खासतौर से सामग्री और अन्य जानकारी के बारे में सावधानीपूर्वक पढ़ने का अनुरोध किया है।
इसी तरह 'मेड विद होल ग्रेन' के लिए इसमें कहा गया है कि इन शब्दों की भी गलत व्याख्या की जा सकती है। एनआईएन ने कहा, "शुगर-फ्री खाद्य पदार्थ में वसा, परिष्कृत अनाज (सफेद आटा, स्टार्च) मिला हो सकता है।
बता दें कि भारतीयों के लिए आहार संबंधी दिशा निर्देश आईसीएमआर-एनआईएन की निदेशक डॉ. हेमलता आर की अगुवाई वाली विशेषज्ञों की समिति द्वारा तैयार किए गए हैं। इसमें शारीरिक गठन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोटीन सप्लीमेंट से बचने का अनुरोध किया है। आईएमसीआर का कहना है कि एक अनुमान के अनुसार देश में 56.4 प्रतिशत बीमारियां गलत खानपान की वजह से होती हैं।
डिब्बाबंद फलों के रस को लेकर NIN ने क्या कहा?असली फल या फलों के रस के दावे को लेकर एनआईएन ने कहा कि एफएसएसएआई के नियम के अनुसार कोई भी खाद्य पदार्थ चाहे वह बहुत कम मात्रा में हो, उदाहरण के लिए केवल 10 प्रतिशत या उससे कम फल तत्व वाले उत्पाद को यह लिखने की अनुमति दी जाती है कि वह फलों के गूदे या रस से बना है। लेकिन 'रियल फ्रूट' होने का दावा करने वाले उत्पाद में चीनी और अन्य तत्व मिले हो सकते हैं और उसमें असली फल का केवल 10 प्रतिशत तत्व हो सकता है।