Supreme Court: 'जहरीली शराब से लोग मरते हैं तो इसका विनियमन राज्य क्यों न करें', सरकार की शक्तियों की समीक्षा कर रही सुप्रीम कोर्ट
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सभी जहरीली शराब की त्रासदी के बारे में जानते हैं और इस संबंध में राज्य अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित भी रहते हैं तो फिर राज्यों को इसके विनियमन की शक्ति क्यों नहीं होनी चाहिए? अगर वे दुरुपयोग रोकने के लिए विनियमन कर सकते हैं तो वह कोई शुल्क भी लगा सकते हैं।
पीटीआई, जागरण। आए दिन देश में जहरीली शराब से होने वाली मौतों की खबरों के बीच मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में औद्योगिक शराब मामले की सुनवाई के दौरान भी इस मुद्दे का जिक्र आया। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम सभी जहरीली शराब की त्रासदी के बारे में जानते हैं और इस संबंध में राज्य अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित भी रहते हैं तो फिर राज्यों को इसके विनियमन की शक्ति क्यों नहीं होनी चाहिए? अगर वे दुरुपयोग रोकने के लिए विनियमन कर सकते हैं तो वह कोई शुल्क भी लगा सकते हैं।
राज्यों की शक्तियों की समीक्षा कर रही पीठ
नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन, विनिर्माण, आपूर्ति और विनियमन में केंद्र और राज्यों की शक्तियों की समीक्षा कर रही है। इससे पहले सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राज्यों के खिलाफ फैसला सुनाया था, जिसके बाद बड़ी पीठ के समक्ष सुनवाई चल रही है।सात न्यायाधीशों की पीठ ने 1997 में केंद्र के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस फैसले में कहा गया था कि केंद्र के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक शक्ति होगी। राज्यों द्वारा इस फैसले को चुनौती देने के बाद 2010 में यह मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया गया था।
औद्योगिक शराब के लिए एक नियामकीय तंत्र क्यों नहीं हो सकता है
नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि राज्यों के पास औद्योगिक शराब के लिए एक नियामकीय तंत्र क्यों नहीं हो सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जानना चाहा कि जहरीली शराब के जोखिमों के मद्देनजर राज्य अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औद्योगिक अल्कोहल पर नियमन क्यों नहीं लागू कर सकते हैं। शीर्ष कोर्ट ने केंद्र से यह भी पूछा कि राज्य औद्योगिक अल्कोहल के दुरुपयोग को रोकने के लिए इस पर शुल्क क्यों नहीं लगा सकते।
पीठ ने कहा- 'स्पिरिट को एक प्रक्रिया के जरिये नशीली शराब में बदला जा सकता है। ऐसे में इसके दुरुपयोग की आशंका है। क्या हम राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए नियामकीय शक्ति से वंचित कर सकते हैं कि इसका दुरुपयोग न हो?' शीर्ष कोर्ट ने कहा कि केंद्र एक राष्ट्रीय इकाई है और आप किसी जिले में क्या हो रहा है, उसे नियंत्रित नहीं कर सकते।
मेहता ने कहा कि औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन का काम उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 के तहत केंद्र के पास है और केवल केंद्र के पास मानव उपभोग के अतिरिक्त अल्कोहल पर उत्पाद शुल्क लगाने की विधायी शक्ति है।