'जमानत आदेश के बावजूद व्यवसायी की अवैध हिरासत सुप्रीम कोर्ट की घोर अवमानना', सूरत के न्यायिक मजिस्ट्रेट को पेश होने के आदेश
धोखाधड़ी के एक मामले में सूरत निवासी तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह को अग्रिम जमानत की अनुमति देने वाली पीठ उस वक्त नाराज हो गई जब उसे अवगत कराया गया कि व्यवसायी को पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था और कथित तौर पर 1.65 करोड़ रुपये की उगाही के लिए शिकायतकर्ता की मौजूदगी में उसे धमकी दी गई और पीटा गया।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एक कारोबारी को अग्रिम जमानत दिए जाने के बावजूद उसे पुलिस हिरासत में रखने को घोर अवमानना करार देते हुए बुधवार को पुलिस के जांच अधिकारियों और सूरत के एक न्यायिक मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी किए तथा उन्हें 29 जनवरी को व्यक्तिगत तौर पर अपने समक्ष पेश होने का आदेश दिया।
धोखाधड़ी के एक मामले में सूरत निवासी तुषारभाई रजनीकांतभाई शाह को अग्रिम जमानत की अनुमति देने वाली पीठ उस वक्त नाराज हो गई जब उसे अवगत कराया गया कि व्यवसायी को पुलिस हिरासत में भेज दिया गया था और कथित तौर पर 1.65 करोड़ रुपये की उगाही के लिए शिकायतकर्ता की मौजूदगी में उसे धमकी दी गई और पीटा गया।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा- 'ऐसा लगता है कि गुजरात अलग कानूनों का पालन करता है। यह दुनिया की हीरे की राजधानी में हो रहा है। यह पूरी तरह से हमारे आदेशों का उल्लंघन है। मजिस्ट्रेट और जांच अधिकारी हमारे सामने पेश हों और बताएं कि हिरासत आदेश कैसे पारित किए गए। हम पुलिस महानिदेशक को निर्देश देंगे कि अवमाननाकर्ताओं को साबरमती जेल या कहीं और भेजें। उन्हें 29 जनवरी को यहां पेश होने के लिए आने दें और एक हलफनामे में हमें हिरासत के कारण बताएं। यह घोर अवमानना का मामला है।'
शाह की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इकबाल एच. सैयद और अधिवक्ता मोहम्मद असलम ने कहा कि उन्होंने 13 दिसंबर से 16 दिसंबर, 2023 तक सूरत के वेसु पुलिस थाने के सीसीटीवी फुटेज को संरक्षित करने के लिए पुलिस आयुक्त के समक्ष एक आवेदन किया है। इसी अवधि के दौरान याचिकाकर्ता पुलिस हिरासत में था। पीठ ने पूछा कि अदालत के आदेश का उल्लंघन करते हुए याचिकाकर्ता को हिरासत में कैसे लिया जा सकता है? आइओ (जांच अधिकारी) याचिकाकर्ता की हिरासत मांगने की हिम्मत कैसे कर सकता है?
कोर्ट ने गुजरात सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू से सीसीटीवी फुटेज के बारे में पूछा, जिस पर उन्होंने कहा कि कैमरे काम नहीं कर रहे थे। इस पर नाराज जस्टिस मेहता ने कहा- 'यह अपेक्षित था। यह जानबूझकर किया गया है। कैमरे उन चार दिनों तक काम नहीं कर रहे होंगे। पुलिस ने पुलिस डायरी में उनकी (शाह) उपस्थिति को चिह्नित नहीं किया होगा। यह सरासर सत्ता का दुरुपयोग है।' दीवानी प्रकृति के अपराध में हिरासत की आवश्यकता क्यों थी? क्या कोई हत्या से संबंधित हथियार था, जिसे बरामद किया जाना था?' जस्टिस गवई ने पूछा कि जब शीर्ष अदालत ने आठ दिसंबर, 2023 को याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दे दी थी तो हिरासत आदेश कैसे पारित किया गया और शाह को हिरासत में कैसे लिया गया?
जस्टिस गवई ने एएसजी से कहा कि सभी को 29 जनवरी को आने को कहें। हम 29 जनवरी को तय करेंगे कि उनके साथ क्या किया जाना चाहिए। एएसजी ने स्थिति संभालने की कोशिश की और पीठ से माफी मांगी तथा स्वीकार किया कि जांच अधिकारी ने गलती की है। पीठ ने गुस्से में कहा, 'जो कुछ हुआ वह घृणास्पद है। यह चार दिन की अवैध हिरासत थी। मजिस्ट्रेट और आइओ को भी चार दिनों के लिए अंदर रहने दीजिए।' इसके बाद शीर्ष अदालत ने राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, सूरत के पुलिस आयुक्त, पुलिस उपायुक्त, वेसू पुलिस थाने के निरीक्षक और संबंधित अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को नोटिस जारी किए और 29 जनवरी तक उनसे जवाब मांगे।