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क्या इस साल पड़ेगी कड़ाके की ठंड? औसत तापमान सितंबर से 2 डिग्री ज्यादा; सामने आई वेदर रिपोर्ट

ऑस्ट्रेलिया और देश के अधिकतर हिस्सों में अक्टूबर अमेरिका ने घटाई संभावना के पहले पखवाड़े में औसत तापमान सितंबर के औसत तापमान से भी 2 डिग्री तक ज्यादा है। हल्की सर्दी की शुरुआत की बजाय गर्मी महसूस होने से आईएमडी समेत दुनियाभर की मौसम एजेंसियों की भविष्यवाणियों पर सवाल खड़े हो गए हैं। ला-नीना परिस्थितियां पैदा होने के अनुमान से कहा गया था कि इस साल कड़ाके की सर्दी पड़ेगी

By Jagran News Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Sun, 20 Oct 2024 05:42 PM (IST)
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क्या इस साल पड़ेगी कड़ाके की ठंड?

अनिरुद्ध शर्मा, नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया और देश के अधिकतर हिस्सों में अक्टूबर अमेरिका ने घटाई संभावना के पहले पखवाड़े में औसत तापमान सितंबर के औसत तापमान से भी 2 डिग्री तक ज्यादा है। हल्की सर्दी की शुरुआत की बजाय गर्मी महसूस होने से आईएमडी समेत दुनियाभर की मौसम एजेंसियों की भविष्यवाणियों पर सवाल खड़े हो गए हैं।

ला-नीना परिस्थितियां पैदा होने के अनुमान से कहा गया था कि इस साल कड़ाके की सर्दी पड़ेगी, लेकिन अब तक ला-नीना नहीं बन सका है। हालांकि भारतीय मौसम विभाग अब भी मान रहा है कि इस बार सर्दी में सामान्य से कम तापमान रहने के आसार हैं।

नवंबर के आखिर में क्या है ला नीना की संभावना?

ला-नीना पर अमेरिकी एजेंसी एनओएए, ऑस्ट्रेलियाई एजेंसी एबीएम से लेकर भारतीय मौसम एजेंसी आईएमडी ने अप्रैल में अनुमान लगाया था कि जून में ला-नीना विकसित होने की संभावना 85 फीसदी थी। इसके बाद मानसून निकल गया, लेकिन ला-नीना नहीं बना अब एजेंसियों का ताजा अनुमान है कि नवंबर के आखिर में ला नीना बनने की संभावना 60% है।

ऑस्ट्रेलिया वेदर ब्यूरो: इसी हफ्ते जारी बयान में कहा, आने वाले महीनों में ला नीना विकसित होने की संभावना घटती जा रही है। छह क्लाइमेट मॉडल्स में से चार ने इसकी पुष्टि की है। यह बना भी तो कमजोर होगा और कम दिनों के लिए सक्रिय रहेगा। अमेरिकी एजेंसी एनओएएः

नवंबर के आखिर में ला नीना परिस्थितियां पैदा होने की संभावना 60% है। जनवरी से मार्च तक बने रहने की संभावना 71% है। (दो महीने पहले अक्टूबर में ला-नीना विकसित होने की संभावना 75% बताई थी। ) हमारा भी वही अनुमान है, जो ऑस्ट्रेलियाई ब्यूरो ने कहा है। मौसम की हर ग्लोबल एजेंसी इस वैश्विक घटना की भविष्यवाणी में फेल हुई, गहरी जांच-पड़ताल की जरूरत है।

तलाशेंगे कारण

ताकि भविष्य के पूर्वानुमान में अब गलती न हो ला-नीना या अल-नीनो जैसे अनुमान लार्ज स्केल ग्लोबल क्लाइमेट मॉडल के आधार पर किए जाते हैं, जिसे भारत भी मानता है। अब डब्ल्यूएमओ में ला नीना और अल-नीनो का पूर्वानुमान लगाने वाले फोरम में चर्चा होगी कि गलत अनुमान लगने के क्या कारण रहे ताकि भविष्य के पूर्वानुमान में गलती न हो। भारत की सर्दी पश्चिमी विक्षोभों पर ज्यादा निर्भर करती है, इनका अनुमान एक से दो हफ्ते पहले ही लगा सकते हैं स्काईमेट के विज्ञानी महेश पलावत का कहना है कि सर्दी कितनी कड़ाकेदार होंगी, यह पश्चिमी विक्षोभों की संख्या और तीव्रता पर निर्भर करता है।

ला-नीना से भारत में अच्छी बारिश होती है

जिस वर्ष ये विक्षोभ अधिक आते हैं और देश के उत्तर से मध्य क्षेत्र तक उसका असर पड़ता है, उन सालों में सर्दी ज्यादा पड़ती है। पश्चिमी विक्षोभ भूमध्य सागर में पैदा होता है और अक्टूबर से फरवरी तक उसका रास्ता हिमालय से गुजरता है। इस कारण ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी होती है और मैदानी इलाकों में बारिश होती है। पश्चिमी विक्षोभों का अनुमान एक से दो हफ्ते पहले ही लगा सकते हैं। ला-नीना या अल-नीनो समुद्र के दो सिरों पर तापमान के बढ़ने या घटने से पैदा होती हैं। ला-नीना से भारत में अच्छी बारिश होती है अल-नीनो में इसका उल्टा होता है।