Book Review: आध्यात्मिक अनुभवों की अनोखी यात्रा है 'इन लव, एट ईज-एवरीडे स्प्रिचुअलिटी विद प्रमुख स्वामी'
इन लव एट ईज-एवरीडे स्प्रिचुअलिटी विद प्रमुख स्वामी में भक्ति प्रेम निस्वार्थ सेवाभाव गुरु के प्रति शिष्य के समर्पण के अनेक दृष्टांत हैं। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं मैं को पीछे छोड़कर हम तक की यात्रा के अगले पड़ाव पर जाने का अहसास होता है।
By Jagran NewsEdited By: Shashank MishraUpdated: Tue, 25 Apr 2023 12:00 AM (IST)
नई दिल्ली, मयंक शुक्ला। हमारा जीवन अनुभवों से बना है। जो समय के साथ हमारे व्यवहार को आकार देते हैं। पल रूपी पन्ने जिन्हें हम अकसर अनायास पलटते हैं। अनुभूतियों के बनाये टेढ़े-मेढ़े रास्ते जिन पर कभी जानकर तो कभी अनजाने में चलते हैं। ऐसे में अगर कोई आध्यात्मिक अनुभवों का खजाना लेकर पास आए तो पहली प्रतिक्रिया क्या होगी?
तीन दशक तक स्वामी श्री के सान्निध्य में रहकर जुटाई अनुभवों की जमापूंजी, अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में धर्म, भक्ति परंपराओं व पत्रकारिता के अध्येता योगी त्रिवेदी पाठकों के नाम करते नजर आते हैं। जैसे-जैसे आप उनकी किताब के पन्ने पलटते हैं, वह आपको अपने साथ आध्यात्मिक अनुभवों की एक लंबी लेकिन अनोखी यात्रा पर लेकर चल देते हैं।
सारा जीवन सेवा व समर्पण के मार्ग पर लगाया
प्रमुख स्वामी महाराज (स्वामीश्री) के जीवन के बहाने, हमें एक ऐसे व्यक्तित्व को करीब से जानने का मौका देते हैं, जिन्होंने अपने जीवनकाल में न सिर्फ आध्यात्मिक चेतना के शिखर को छुआ बल्कि कितनों के ही जीवन को बदलकर उन्हें सेवा व समर्पण के मार्ग पर लगाया।किताब 'इन लव, एट ईज-एवरीडे स्प्रिचुअलिटी विद प्रमुख स्वामी' में भक्ति, प्रेम, निस्वार्थ सेवाभाव, गुरु के प्रति शिष्य के समर्पण के अनेक दृष्टांत हैं। जैसे-जैसे आप आगे बढ़ते हैं, 'मैं' को पीछे छोड़कर 'हम' तक की यात्रा के अगले पड़ाव पर जाने का अहसास होता है। भगवान स्वामीनारायण के पांचवें आध्यात्मिक उत्तराधिकारी प्रमुख स्वामी महाराज की अमिट छाप आज दुनिया भर में अलग-अलग रूपों में देखी जा सकती है।
भारत की आध्यात्मिक चेतना व चिंतन के प्रतिनिधि के तौर पर उसे उन्होंने दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाया। वह जहां भी गये सेवा, समर्पण व विश्व बंधुत्व की भावना साथ ले गए। बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था के आध्यात्मिक व प्रशासनिक प्रमुख रहे स्वामीश्री को बहुत से लोग देश व विदेश में पारंपरिक स्थापत्य कला वाले हिंदू मंदिर और स्वामीनारायण अक्षरधाम परिसरों के निर्माण के लिए भी याद करते हैं।
स्वामीश्री के व्यक्तित्व की झलक किताब में उनके जीवन से जुड़े अनेक प्रसंगों से मिलती है। इनमें से एक रोचक प्रसंग ब्रह्मविहारीदास स्वामी से जुड़ा है। 'ब्रह्मविहारीदास स्वामी स्वामीश्री के आशीर्वाद के लिए एक छोटी सी पुस्तक और पेन लेकर आए। वह चाहते थे कि उनके गुरु आज अंग्रेजी में उनके लिए कुछ लिखें। स्वामीश्री आमतौर पर गुजराती में लिखते थे। उन्होंने कलम और कागज स्वामीश्री के हाथ में रख दिया और उनसे लिखने को कहा, I Bless You (मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं)'।
स्वामीश्री ने लिखा i BLESS YOU। स्वामीश्री की भाषाई त्रुटि को सुधारने के लिए ब्रह्मविहारीदास स्वामी आगे आए। 'अंग्रेजी में, I हमेशा बड़ा होना चाहिए।' लेकिन स्वामीश्री व्याकरण के अलग नियमों के साथ लिख रहे थे। वे सेवा और भक्ति के जीवन दर्शन के अनुरूप लिख रहे थे। स्वामीश्री ने ब्रह्मविहारीदास स्वामी की बात को ठीक करते हुए कहा, 'आध्यात्मिक पथ पर, "i (मैं)" हमेशा छोटा होना चाहिए।’
ऐसा ही एक वाकया विश्वहरिदास स्वामी से जुड़ा हुआ है जिसका उल्लेख किताब में है। गोंडल में एक महत्वपूर्ण बैठक समाप्त करने के बाद, स्वामीश्री कुछ महत्वपूर्ण तिथियों को एक नोटपैड पर लिख रहे थे। विश्वविहारीदास स्वामी अक्सर अपने गुरु से मजाक करते थे, 'स्वामीश्री, आप अपनी व्यक्तिगत डायरी में क्या लिख रहे हैं? मुझे इसकी एक झलक देखना अच्छा लगेगा।'स्वामीश्री ने गम्भीरता से उत्तर दिया, 'मेरी कोई व्यक्तिगत डायरी नहीं है, कोई व्यक्तिगत बात नहीं है। मेरे पास रहस्य नहीं है। मेरा जीवन लोगों के सामने है। यदि किसी के पास कोई रहस्य है, तो वह हमेशा उस रहस्य के प्रकट होने से डरता है। मैं अपना जीवन परमेश्वर के सामने खुले में जीता हूं। मुझे लगता है कि यह मुझे निडर बनाता है।'
अपने जीवनकाल में स्वामीश्री ने सेवा के अनेकों उदाहरण प्रस्तुत किए। किताब में ऐसे अनेक उद्धरण हैं, इनमें से एक गुजरात के मोरबी में पाछू बांध के टूटने के बाद का है। वर्ष 1979 में हादसे के बाद बीएपीएस स्वयंसेवक सेवा कार्य में लगे थे। नुकसान का जायजा लेने और आगे की कार्रवाई तय करने के लिए स्वामीश्री स्वयं मोरबी पहुंचे। एक शाम एक सभा में उन्होंने स्वयंसेवकों को इकट्ठा किया और मानवतावादी कार्य के उद्देश्यों और मंशा को स्पष्ट किया।
उन्होंने कहा कि ‘हम यह श्रेय के लिए नहीं कर रहे हैं। हम किसी को ऋणी महसूस कराने के लिए ऐसा नहीं कर रहे हैं। किसी का हम पर कुछ भी बकाया नहीं है, और किसी को यह महसूस नहीं होना चाहिए कि हम उन पर एहसान कर रहे हैं।’