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Independence Day: समाज की बेड़ियां तोड़कर आगे आईं महिलाएं, देश की आजादी के नाम कर दी जिंदगी

देश की आजादी में महिलाओं ने भी काफी अहम रोल निभाया था। जहां महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू और लाला लाजपत राय जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का नाम लिया जाता है वैसे ही रानी लक्ष्मीबाई सरोजिनी नायडू और बेगम हजरत महल को अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करने के लिए याद किया जाता है। समाज के रूढ़िवादी सोच के बीच भी इन महिलाओं ने इतिहास के पन्नों में अपना नाम लिख लिया है।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariPublished: Mon, 14 Aug 2023 05:58 PM (IST)Updated: Mon, 14 Aug 2023 05:58 PM (IST)
भारत के स्वतंत्रता में कई महिलाओं का रहा अहम योगदान

नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Independence Day 2023: 15 अगस्त, 2023 को भारत अपना 76वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाने जा रहा है। इस देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने के लिए न जाने कितने स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान कुर्बान कर दी और कई स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने साथ लोगों को जोड़कर आंदोलन किया और जेल गए।

जहां देश को आजादी दिलाने में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस और बहुत से पुरुष स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान रहा था, वहीं देश की महिलाएं भी पीछे नहीं हटी थी। देश की कई बहादुर महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी आखिरी सांस तक ब्रिटिश हुकूमत का सामना किया था और डटकर मैदान में खड़ी रही थी।

हालांकि, उस समय मैदान में आकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ना महिलाओं के लिए आसान नहीं था, क्योंकि इसके लिए उन्हें कई सामाजिक बेड़ियों को भी तोड़ना पड़ा था। कुछ महिलाओं को अपने समाज से बहिष्कृत तक होना पड़ा था, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी थी और आखिर तक लड़ी थी।

भारत की स्वतंत्रता सेनानी महिलाएं

इस खबर में हम आपको उन्हीं बहादुर, संघर्षी और प्रेरणादायक महिलाओं के बारे में बताएंगे। हालांकि, स्वतंत्रता संग्राम में शामिल महिलाओं की लिस्ट काफी लंबी है, लेकिन फिर भी इसमें रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू, भीकाजी कामा और कस्तूरबा गांधी का नाम हमेशा ऊपर रहता है। इन महिलाओं ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया है, बल्कि इन्होंने समाज के कई रूढ़िवादी रीति-रिवाजों को भी बदला है।

रानी लक्ष्मीबाई (Rani Laxmibai)

ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ी गई लड़ाई में महिलाओं की बात की जाए, तो सबसे पहले रानी लक्ष्मीबाई का नाम जहन में आता है। रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी आखिरी सांस तक ब्रिटिश सेना का सामना किया था। रानी लक्ष्मीबाई के पति राजा गंगाधर के निधन के बाद अंग्रेजों ने उनकी झांसी को अपने अधीन करना चाहा, लेकिन रानी लक्ष्मीबाई अपनी आखिरी सांस तक अंग्रेजों के खिलाफ लड़ती रही थी।

उनकी बहादुरी का यह किस्सा आज भी बच्चे-बच्चे को याद है। यूं ही नहीं कहा गया, 'खूब लड़ी मर्दानी, वो तो झांसी वाली रानी थी।'

सरोजिनी नायडू (Sarojini Naidu)

भारत की कोकिला के नाम से पहचान बनाने वाली सरोजिनी नायडू का देश की महान और प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हैं। सविनय अवज्ञा आंदोलन और असहयोग आंदोलन में यह काफी सक्रिय थी, जिसके कारण इन्हें जेल में भी रातें बितानी पड़ी थीं।

सरोजिनी नायडू 1925 में कानपुर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष रही थीं। 1928 में वह गांधीजी से अहिंसा आंदोलन का संदेश लेकर अमेरिका पहुंची। इतना ही नहीं, इनके देश की आजादी में इनका योगदान देखते हुए इन्हें भारतीय राज्य की पहली महिला राज्यपाल भी बनाया गया था।

आजादी की लड़ाई के साथ ही, सरोजिनी नायडू ने महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए भी काफी काम किया था और समाज की कई रूढ़िवादी विचारधाराओं को बदलने का भी प्रयास किया था।

विदेश में तिरंगा फहराने वाली पहली महिला भीकाजी कामा (Bhikaji Cama)

भीकाजी कामा देश की स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थी। इनको लोग मैडम कामा के नाम से भी जानते थे। सबसे खास बात यह है कि विदेश में भारतीय तिरंगा फहराने वाली पहली महिला भीकाजी कामा ही थीं।

33 वर्षों तक भारत से दूर रहने के बाद भी आजाद भारत का उनका सपना कमजोर नहीं पड़ा था। मैडम कामा के साहस और दृढ़ता को देखकर अन्य कई महिलाओं को हिम्मत मिली और वह बढ-चढ़कर स्वतंत्रता आंदोलनों का हिस्सा बनीं।

बेगम हजरत महल (Begum Hazrat Mahal)

बेगम हजरत महल को रानी लक्ष्मीबाई के समकक्ष के रूप में जाना जाता है। दरअसल, बेगम हजरत महल ने ही 1857 की लड़ाई के दौरान ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने को कहा। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ व्यापक विद्रोह की अलख जगाई।

नीरा आर्या (Neera Arya)

देश की आजादी में नीरा आर्या के बलिदान की कहानी सुनकर भी लोगों की रूंह कांप जाती है। दरअसल, नीरा आर्या ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जान बचाने के लिए अपने पति तक की हत्या कर दी थी। इतना ही नहीं, यह सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना की पहली महिला जासूस थी।

अपने पति की हत्या के लिए नीरा को ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा अंडमान और निकोबार जेल में कारावास की सजा दी गई थी, लेकिन उनका राष्ट्रप्रेम यहां नहीं थमा। नीरा को उस दौरान लालच दिया गया कि अगर वह नेताओं, खासकर नेताजी के बारे में बता देती हैं, तो उन्हें जमानत मिल जाएगी।

सभी बाधाओं के बावजूद, नीरा राष्ट्र के प्रति समर्पित रहीं। जेल में रहने के दौरान अंग्रेज इन पर रोज नए टॉर्चर कर रहे थे, ताकि यह सब बता दें, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अंग्रेजों ने नीरा के स्तन तक काट दिए थे, वहा रोती-बलिखती रहीं, लेकिन इन्होंने देश के साथ गद्दारी नहीं की। इस तरह, वह आजाद हिंद फौज की पहली महिला संपत्ति बन गईं, एक उपाधि और जिम्मेदारी जो उन्हें स्वयं बोस द्वारा प्रदान की गई थी।

कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi)

कस्तूरबा गांधी भी भारतीय अधिकारों की लड़ाई में शामिल हो गई थीं। इसके लिए उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा था। वह भारत की आजादी की लड़ाई में अंत तक लगी रही और अपने पति महात्मा गांधी के हर प्रयास में उनके साथ खड़ी रहीं।

स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ ही कस्तूरबा गांधी राजनीतिक कार्यकर्ता और नागरिक अधिकारों के लिए आवाज उठाती थीं। इंडिगो प्लांटर्स आंदोलन के दौरान उन्होंने लोगों को स्वास्थ्य, स्वच्छता, अनुशासन और पढ़ने के लिए काफी प्रेरित किया था।

कमला नेहरू (Kamala Nehru)

 पंडित जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में काफी सक्रिय रही थी। इसके साथ ही, उन्होंने सामाजिक सुधारों और महिलाओं के सम्मान के लिए काफी प्रयास किए हैं।

उन्होंने असहयोग आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और अपने पति की पहल को अटूट समर्थन प्रदान किया। शिक्षा और महिलाओं के सशक्तिकरण के प्रति कमला नेहरू के दृढ़ समर्पण ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर अमिट छाप छोड़ी।

अरुणा आसफ अली (Aruna Asaf Ali)

अरुणा आसफ अली एक असाधारण स्वतंत्रता सेनानी और प्रमुख राजनीतिक नेता थीं। यह 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए प्रसिद्ध थीं। 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया था और उन्हें नौ महीने की जेल की सजा सुनाई गई थी।

अरुणा आसफ अली ने काकोरी रेलवे धमाकों के साथ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आग को और बढ़ाया। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत का संकेत देने के लिए बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराया।


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