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Independence Day 2023: महात्मा गांधी के अहिंसावादी सिद्धांत से प्रेरित हुए कई देश, इन नेताओं पर रहा गहरा असर

अमेरिका में नागरिक अधिकारों की लड़ाई से लेकर दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन तक भारतीय आंदोलनों का काफी प्रभाव पड़ा है। यहां तक कि घाना जाम्बिया तंजानिया और नाइजीरिया में भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और महात्मा गांधी के विचारों का काफी असर देखने को मिला था। गांधीवादी अहिंसक दृष्टिकोण ने दुनिया भर में भविष्य के राजनीतिक आंदोलनों के लिए भी प्रेरणा दी।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Sun, 13 Aug 2023 05:54 PM (IST)
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भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का कई देशों पर पड़ा गहरा प्रभाव
नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Independence Day 2023: लंबे संघर्ष और न जाने कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान के बाद 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश ब्रिटिश हुकूमत के शासन से आजाद हुआ था। इस साल भारत अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है।

इस आजादी के लिए कितने ही स्वतंत्रता सेनानियों ने आंदोलन किए हैं, जिसमें महात्मा गांधी के अहिंसा आंदोलन का काफी अहम रोल रहा था। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन न केवल वर्तमान पीढ़ी के राजनीतिक आंदोलनों के लिए प्रेरणादायक रहा है, बल्कि विरोध के लिए गांधीवादी अहिंसा दृष्टिकोण ने दुनिया भर में भविष्य के राजनीतिक आंदोलनों के लिए भी प्रेरणा दी।

क्या आप जानते हैं कि भारत की आजादी की लड़ी गई लड़ाई ने दुनिया भर के राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित किया है? इस खबर में हम आपको बताएंगे कि आखिर आजादी के लिए शुरू किए गए भारतीय आंदोलनों ने कितने देशों और प्रेरणा दी है और इसका क्या असर पड़ा है।  

गांधीवादी दृष्टिकोण से प्रेरित एक और ऐसा आंदोलन 20वीं सदी के मध्य में अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन था। डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ईसाई मान्यताओं और गांधी की अहिंसक सक्रियता से प्रेरित थे। एक साक्षात्कार में, किंग ने कहा कि वह स्वतंत्रता सेनानियों की प्रशंसा करते हैं, चाहे वे कहीं भी हों और उनका मानना है कि अहिंसा सबसे अच्छा तरीका है।

अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movement)

अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन, महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से काफी प्रभावित था। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने महात्मा गांधी को काफी गहराई से पढ़ा और समझा था। इसके साथ ही, मार्टिन ने उनके अहिंसा आंदोलन को भी काफी गहराई से समझने की कोशिश की थी।

1968 में अपनी आखिरी सांस तक लूथर अफ्रीकी-अमेरिकियों के लिए नागरिक अधिकार आंदोलन का नेतृत्व करते रहें और उनके प्रभाव को गांधी से कम करके नहीं आंका जा सकता। जानकारी के मुताबिक, मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि उन्हें लगता है कि गांधी आधुनिक दुनिया के सबसे महान व्यक्ति थे।

वेबसाइट Biography.com के मुताबिक, किंग ने सबसे पहले अहिंसा के सिद्धांत को मोंटगोमरी बस बहिष्कार के दौरान इस्तेमाल किया था। दरअसल, रोजा पार्क्स द्वारा एक श्वेत यात्री को अपनी सीट देने से इनकार करने के कारण यह आंदोलन शुरू हुआ था।

अलबामा में बस सिस्टम को अलग करने के लिए अफ्रीकी-अमेरिकियों ने सामूहिक विरोध प्रदर्शन किया था, जो पूरे 13 महीने तक चला था। इस आंदोलन का अंत 1956 में तब हुआ था, जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा बस प्रणाली पर अलगाव को असंवैधानिक करार दिया गया था। इस फैसले के बाद लूथर ने लोगों के भीड़ के सामने कहा था, "जीसस क्राइस्ट ने हमें यह रास्ता दिखाया और भारत के महात्मा गांधी ने हमें दिखाया कि इस रास्ते पर हमें कैसे चलना है।"

किंग ने अपनी किताब, स्ट्राइड टुवर्ड फ्रीडम में गांधी की अहिंसा के बारे में कई शिक्षाओं का विस्तार से वर्णन किया है। किंग ने लिखा है कि 'अहिंसक प्रतिरोधी, न केवल अपने प्रतिद्वंद्वी को गोली मारने से इनकार करता है, बल्कि वह उससे नफरत करने से भी इनकार करता है।'

1959 में किंग अपनी पत्नी कोरेटा स्कॉट किंग के साथ पांच सप्ताह यात्रा के लिए भारत आए थे, जिस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी के परिवार, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और अन्य कई भारतीय कार्यकर्ताओं से मिले थे।

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन को भी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन से काफी प्रेरणा मिली थी। संघर्ष के अग्रणी नेता, नेल्सन मंडेला ने महात्मा गांधी को अपना प्रेरणास्त्रोत बताया और कहा था कि महात्मा गांधी की वजह से ही उन्हें आंदोलन चलाने की प्रेरणा मिली है।

मंडेला ने अपनी जीवनी में लिखा है कि "अहिंसक आंदोलन तब तक प्रभावी है, जब तक आपका विपक्ष उन्हीं नियमों का पालन करता है, जिनका पालन आप कर रहे हैं, लेकिन अगर शांतिपूर्ण प्रदर्शन को हिंसा से जोड़ा जाता है, तो इसका असर खत्म हो जाता है। मेरे लिए अहिंसा कोई नैतिक सिद्धांत नहीं, बल्कि एक रणनीति थी।"

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि मंडेला ने अहिंसा को रंगभेद विरोधी आंदोलन के एक अभिन्न अंग के रूप में देखा। जिस दौरान मंडेला जेल में थे, उन तीन दशकों तक उन्होंने महात्मा गांधी के बारे में काफी गहन अध्ययन किया और उन्हें समझा। जेल से रिहा होने के बाद मंडेला रंगभेद-मुक्त दक्षिण अफ्रीका के पहले राष्ट्रपति बने और अपने सत्य और सुलह के माध्यम से देश को एक साथ लाने में सफल रहे।

भारत में दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राजदूत हैरिस माजेके ने कहा है, "नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पिता हैं, जबकि महात्मा गांधी हमारे दादा हैं।" उन्होंने कहा, "मंडेला, गांधी के सत्याग्रह अभियान से प्रेरित थे।"

आंग सान सू की ने ली लोकतंत्र की प्रेरणा

नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग जूनियर की तरह ही आंग सान सू की भी महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और गांधी द्वारा अपनाए गए अहिंसक सिद्धांतों से प्रेरित थी। आंग सान सू की के हवाले से साल 2012 में कहा गया था कि महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू जैसे कई नेताओं ने उन्हें लोकतांत्रिक म्यांमार की उनकी खोज के लिए प्रेरित किया था।

हालांकि, एक भाषण के दौरान उन्होंने कहा था, "मैं अहिंसा के मार्ग की ओर आकर्षित थी, लेकिन जैसा कुछ लोग मानते है कि मैं नैतिक आधार पर भी ऐसा महसूस करती थी, तो यह गलत है।"

विदेशी मीडिया ने 2012 में सू की को म्यांमार के राजनीतिक संघर्ष के बारे में कहा था, "हम अपने पूर्वजों की जीत से प्रेरणा ले सकते हैं, लेकिन हम उन विचारों और रणनीति की तलाश में खुद को अपने इतिहास तक ही सीमित नहीं रख सकते हैं, जो हमारे अपने संघर्ष में सहायता कर सकें।"

श्रीलंका का स्वतंत्रता आंदोलन

श्रीलंका को 1948 में अंग्रेजों से आजादी मिली थी, जिसकी प्रेरणा भी गांधी के विचारों से ली गई थी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक उस दौरान श्रीलंकाई स्वतंत्रता सेनानी चार्ल्स एडगर कोरिया के निमंत्रण पर महात्मा गांधी ने 1927 में श्रीलंका, जिसे पहले सीलोन के नाम से जाना जाता था, उसका दौरा भी किया था।

महात्मा गांधी ने श्रीलंका में कई भाषण दिए और वहां एक स्थायी प्रभाव छोड़ा था। महात्मा गांधी की अहिंसा नीति ने बौद्ध पुनरुत्थानवादी अनागारिका धर्मपाल सहित कई उल्लेखनीय नेताओं को आंदोलन के लिए प्रभावित किया।

लेख में आगे कहा गया है कि कैसे लंका समा समाज पार्टी (एलएसएसपी), जो 1935 में यूथ लीग से आई थी, वह स्वतंत्रता की मांग करने वाली पहली पार्टी थी। ठीक उसी तरह जैसे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंग्रेजों से पूर्ण स्वतंत्रता की मांग की थी। लेख के अंत में कहा गया है, 'इस प्रकार, गांधी के अहिंसक सत्याग्रह की अवधारणा को अपनाकर श्रीलंका ने भी अपनी स्वतंत्रता हासिल कर ली।'

घाना में महसूस हुआ सबसे ज्यादा असर

डेनियल येर्गिन और जोसेफ स्टैनिस्लाव की पुस्तक द कमांडिंग हाइट्स के मुताबिक, भारतीय स्वतंत्रता ने दुनिया भर में उपनिवेशवाद से मुक्ति और स्वतंत्रता के लिए एक खाका तैयार करके दिया था, लेकिन यह बदलाव अफ्रीका में सबसे ज्यादा महसूस किया गया था।

घाना को आजादी दिलाने वाले एक सुनार के बेटे क्वामे न्क्रुमा (जो घाना के पहले अफ्रीकी मूल के प्रधानमंत्री बने) गांधी के जीवन और उनकी शिक्षाओं से काफी प्रभावित थे। विदेशी मीडिया के मुताबिक, घाना के स्वतंत्रता आंदोलन के दोनों बड़े चेहरे न्क्रूमा और जेबी दानक्वा ने गांधी से प्रेरित होने की बात को स्वीकार भी किया है।

1945 में, न्क्रुमा ने मैनचेस्टर में पांचवीं पैन-अफ्रीकी कांग्रेस का आयोजन किया। इस सम्मेलन के दौरान, गांधी के अहिंसक आदर्शों को सबके सामने लाया गया और विदेशी शासकों को एक निहत्थे लोगों की इच्छाओं का सम्मान करने के एकमात्र प्रभावी साधन के रूप में समर्थन दिया गया।" 30 जनवरी, 1948 को गांधी की हत्या के बादन्क्रुमा ने लिखा था, 'हमने भी उनकी मृत्यु पर शोक व्यक्त किया था।" 1957 में नक्रुमाह ने अपने देश को स्वतंत्रता के लिए नेतृत्व किया।

जाम्बिया की स्वतंत्रता के लिए सविनय अवज्ञा जैसे आंदोलनों का किया अनुसरण  

केनेथ कौंडा, जिन्हें 'अफ्रीका के गांधी' के रूप में जाना जाता है, अंग्रेजों से जाम्बिया की स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए सविनय अवज्ञा, हड़ताल और बहिष्कार करके महात्मा का अनुकरण किया था। केनेथ कौंडा, दक्षिण अफ्रीका में गांधी के कार्यों को प्रतिबिंबित करते थे। 2012 में, केके को शांति और सुलह के लिए महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

तंजानिया में, जूलियस न्येरेरे उस देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में महात्मा गांधी से प्रभावित थे। न्येरेरे को 1995 में गांधी शांति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

नाइजीरिया में, चीफ सोएमी कोकर, नाम्दी अजीकिवे और ओबाफेमी अवोलोवो गांधी और उनके अहिंसक तरीकों के बहुत बड़े प्रशंसक थे। तीनों 1945 में मैनचेस्टर में पांचवीं पैन-अफ्रीकनिस्ट कांग्रेस में थे, जिसे नक्रुमाह द्वारा आयोजित किया गया था।

इन बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्वतंत्रता के लिए भारत की लड़ाई की गूंज दुनिया भर में महसूस की गई है। यहां तक कि आज भी कई देशों में राजनीतिक मुद्दों में गांधी और भारत के विचारधाराओं का अनुसरण किया जाता है।