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Independence Day 2023: 15 अगस्त 1947 को कहां थे महात्मा गांधी, आजादी के दिन आखिर क्या कर रहे थे बापू?

15 अगस्त 1947 को देश ब्रिटिश हुकूमत के 200 साल के शासन से आजाद हुआ था। इस दिन पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था लेकिन इस दौरान आजादी के लिए लंबा इंतजार करने वाले महात्मा गांधी आजादी के किसी भी जश्न में शामिल नहीं हुए थे। ऐसे में कई लोगों को शायद ही मालूम होगा कि महात्मा गांधी कहां थे और क्या कर रहे थे।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Fri, 11 Aug 2023 05:37 PM (IST)
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Independence Day 2023: आजादी के दिन आखिर कहां थे महात्मा गांधी?
नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Independence Day 2023 Special: 15 अगस्त 1947 का दिन भारतीय इतिहास के लिए बेहद अहम दिन है। इसी दिन भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिली थी। यहीं वो दिन है, जब भारतीयों ने करीब 200 साल के उत्पीड़न के बाद राहत की सांस ली थी।

भारत को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने के लिए सैकड़ों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान तक गंवा दी थी। वहीं, कुछ ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे, जो अपने जीवन को देश की आजादी के लिए समर्पित कर चुके थे। उन्हीं में से एक थे महात्मा गांधी, जिन्हें हम प्यार से बापू बुलाते हैं।

जब भी देश की आजादी की जिक्र किया जाता है, तो महात्मा गांधी का नाम जरूर याद आता है, लेकिन आपको पता है कि जब देश में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था, तो महात्मा गांधी किसी भी जश्न में शामिल नहीं थे। साथ ही, बहुत कम लोगों को पता होगा कि आखिर इस दौरान महात्मा गांधी कहां थे और क्या कर रहे थे।

इस खबर में हम आपको बताएंगे कि वो कौन-सी बड़ी वजह थी, जिसके कारण महात्मा गांधी किसी जश्न में शामिल नहीं हुए थे और आखिर उस दौरान बापू कहां थे।

आजादी के किसी जश्न में बापू ने नहीं की थी शिरकत

देश की आजादी के घोषणा करते हुए जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर तिरंगा झंडा लहराया और इसके बाद आधिकारिक तौर पर ब्रिटिश हुकूमत से आजादी मिल गए। झंडा फहराने के बाद जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले पर अपना पहला भाषण दिया। उस दौरान लाल किले पर कई नेता और स्वतंत्रता सेनानी मौजूद थे, लेकिन उस दौरान आजादी के लिए लंबा संघर्ष करने वाले महात्मा गांधी किले पर मौजूद नहीं थे।

15 अगस्त 1947 को कहां थे महात्मा गांधी?

दरअसल, 15 अगस्त, 1947 को महात्मा गांधी बंगाल के नोआखली (जो अब बांग्लादेश में है) में मौजूद थे। यहां पर वह हिंदू-मुस्लिमों के बीच चल रहे सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए आए थे। महात्मा गांधी 9 अगस्त, 1947 को ही कलकत्ता पहुंच गए थे। यहां पर वह मुसलमानों की बस्ती में स्थित हैदरी मंजिल में ठहरे और बंगाल में शांति लाने और खून-खराबे को रोकने के लिए अनशन पर बैठ गए। उन्होंने 13 अगस्त, 1947 को लोगों से मुलाकात करते हुए शांति के प्रयास शुरू कर दिए थे।

सांप्रदायिक दंगे को शांत करना ज्यादा जरूरी

जहां एक तरफ पूरा देश आजादी का जश्न मना रहा था, वहीं दूसरी ओर आजादी के लिए इतना लंबा इंतजार करने वाले महात्मा गांधी भूख हड़ताल पर बैठे थे। हालांकि, महात्मा गांधी को दिल्ली से न्योता भी गया था, लेकिन उस समय बंगाल में हिंदू-मुस्लिम समुदाय में बंटवारे के लेकर लगी आग को शांत कराना गांधी को ज्यादा जरूरी लगा था।

नेहरू और पटेल ने लिखा था पत्र

इस दौरान महात्मा गांधी को जवाहर लाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल ने एक संयुक्त खत लिखकर जश्न में शामिल होने को कहा था। हालांकि, महात्मा गांधी ने ये भी कहा था कि मेरे लिए आजादी के ऐलान के मुकाबले में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच अमन कायम करना ज्यादा अहम है। गांधी ने एक खत के जरिए कहा था कि जहां हिंदू-मुस्लिम एक-दूसरे की जान ले रहे हैं, ऐसे में मैं जश्न मनाने कैसे आ सकता हूं।

आजादी में गांधी का अहम योगदान

आजादी का नाम लेते ही हमारे दिमाग में महात्मा गांधी का नाम आ जाता है। देश की आजादी में महात्मा गांधी का बेहद अहम योगदान रहा था। देश को आजाद कराने के लिए कई बार वह जेल गए, कितनी बार उन्होंने धमकियों का सामना भी किया था, लेकिन उनके इरादे कमजोर नहीं पड़े और वह डटे रहे। आखिर में अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।

महात्मा गांधी ने अहिंसा की राह पर चलकर आजादी हासिल करने की बात कही थी और आखिर तक उन्होंने अहिंसा की राह पर चलकर आजाद भारत का सपना देखा और उसे पूरा भी कर लिया।

पहली बार लाल किले पर नहीं फहराया था तिरंगा

15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस के दिन देश के प्रधानमंत्री लाल किले पर तिरंगा झंडा फहराते हैं, लेकिन आपको बता दें कि पहली बार तिरंगा लाल किले पर नहीं फहराया गया था। लाल किले के प्राचीर पर जवाहर लाल नेहरू ने 16 अगस्त, 1947 को तिरंगा झंडा फहराया था। हालांकि, उस दौरान जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री पद की शपथ नहीं ली थी।

आपको बता दें, उस दौरान ध्वजारोहण के दौरान राष्ट्रगान भी नहीं गाया गया था। दरअसल, रवींद्रनाथ टैगोर के जन-गण-मन को 1950 में राष्ट्रगान बनाया गया था। हालांकि, रवींद्रनाथ टैगोर ने 1911 में ही राष्ट्रगान लिख लिया था।