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Independence Day 2023: आजादी से पहले ये राज्य भारत में नहीं थे शामिल, जानिए कैसे हुआ देश में रियासतों का विलय

15 August 1947 Historyआजादी के समय भारत कई रियासतों में बंटा हुआ था।1947 में जब भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली तो ऐसे कई राज्य थे जो नवगठित भारतीय गणराज्य में शामिल नहीं थे। ये राज्य या तो रियासती शासकों के नियंत्रण में थे या ब्रिटिश के भारत से जाने के बाद उनके पास अपना भाग्य स्वयं चुनने का विकल्प था। जानें आजादी 1947 के भारत के मानचित्र को-

By Babli KumariEdited By: Babli KumariUpdated: Thu, 10 Aug 2023 03:38 PM (IST)
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भारतीय गणराज्य में रियासतों के विलय की कहानी (जागरण ग्राफिक्स)
नई दिल्ली, जागरण डेस्क। Independence Day 2023: देश इस साल अपनी आजादी की 77वीं वर्षगांठ मना रहा है। मतलब भारत को आजाद हुए 76 साल पूरे हो चुके हैं लेकिन आज से ठीक 76 साल पहले जब देश आजाद हुआ था तो उस आजादी के जश्न में कुछ ऐसे भी राज्य थे जिन्होंने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था। भारत का मानचित्र जैसा अब दिखता है ठीक आज से 76 साल पहले ऐसा बिल्कुल नहीं था। 

आजादी के साथ ही नए भारत का ताना-बाना बुना जा रहा था। आजादी के समय भारत कई रियासतों में बंटा हुआ था। 1947 में जब भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली, तो ऐसे कई राज्य थे जो नवगठित भारतीय गणराज्य में शामिल नहीं थे। ये राज्य या तो रियासती शासकों के नियंत्रण में थे या अंग्रेजों के भारत से जाने के बाद उनके पास अपना भाग्य स्वयं चुनने का विकल्प था। यहां उन राज्यों पर एक विस्तृत लेख है जो स्वतंत्रता प्राप्त होने पर भारत का हिस्सा नहीं थे-

भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के अंतर्गत दो स्वतंत्र एवं पृथक प्रभुत्व वाले देश भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आए। देशी रियासतों के सामने तीन विकल्प रखे गये थे-

1. भारत में शामिल हो जाना

2. पाकिस्तान के साथ शामिल हो जाना

3. या तो स्वतंत्र रहना

आजादी के दौरान भारत 500 से ज्यादा रियासतों में बंटा था। ये देशी रियासतें स्वतंत्र शासन में यकीन रखती थीं जो सशक्त भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा थी। हैदराबाद, जूनागढ़, और कश्मीर को छोड़कर सभी रियासतों ने स्वेच्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी। जहां जूनागढ़़ रियासत पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुकी थी वहीं कश्मीर ने स्वतंत्र बने रहने की इच्छा व्यक्त की थी। हालांकि भोपाल की रियासत भी भारत में शामिल नहीं होना चाहती थी लेकिन बाद में वह भारत में शामिल हो गयी। सबसे आखिर में शामिल होने वाली रियासत भोपाल ही थी।

त्रावणकोर रियासत 

आजादी के वक्त दक्षिण भारतीय समुद्री तट पर स्थित त्रावणकोर पहला ऐसा राज्य था जिसने भारतीय गणराज्य में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इसके साथ ही उसने देश में कांग्रेस के नेतृत्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया था। दरअसल सोने-चांदी और दौलत के अलावा इस अमीर रियासत के पास समुद्री व्यापार की चमक और बेशकीमती 'मोनाज़ाइट' का भंडार था, साथ ही मानव और खनिज संसाधनों से भी यह धनी था, जिसे हर कोई अपना बनाना चाहता था।

हैदराबाद रियासत 

हैदराबाद राज्य पर निजाम का शासन था, जो भारत या पाकिस्तान में शामिल होने के बजाय स्वतंत्रता चाहता था। भारत सरकार ने निजाम से भारत में शामिल होने का आग्रह किया, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। असफल वार्ता के बाद, भारत सरकार ने 1948 में "ऑपरेशन पोलो" नामक एक सैन्य अभियान शुरू किया और हैदराबाद पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया, जिससे यह भारत का हिस्सा बन पाया।

जूनागढ़ रियासत 

जूनागढ़ आधुनिक गुजरात में स्थित एक रियासत थी। जूनागढ़ के नवाब, जो एक मुस्लिम थे, ने बहुसंख्यक आबादी हिंदू होने के बावजूद पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला किया। इस निर्णय के कारण विरोध और विपक्षी आंदोलन हुआ, जिसके परिणामस्वरूप अंततः भारत सरकार ने फरवरी 1948 में जनमत संग्रह का आयोजन किया। जूनागढ़ के लोगों ने भारत में विलय होने का फैसला किया, जिससे यह भारतीय संघ का हिस्सा बन गया।

जम्मू और कश्मीर रियासत 

जम्मू और कश्मीर भी रियासतों के विलय होने में सबसे उल्लेखनीय उदाहरणों में से एक है। इस रियासत पर महाराजा हरि सिंह का शासन था। आजादी के समय महाराजा हरि सिंह अपने राज्य के भविष्य को लेकर अनिश्चित थे। हालांकि, 1947 में, जब पाकिस्तान के कबाइली लड़ाकों ने कश्मीर पर आक्रमण किया, तो उन्होंने भारत से सहायता मांगी। विलय पत्र पर हस्ताक्षर के परिणामस्वरूप जम्मू और कश्मीर को एक विशेष दर्जा दिया गया। हालांकि, पाकिस्तान समर्थित बलों के आक्रमण के बाद अंततः यह भारत में शामिल हो गया और आज तक एक विवादित क्षेत्र बना हुआ है।

मणिपुर रियासत

भारतीय स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर मणिपुर एक स्वतंत्र रियासत थी। हालांकि, विभिन्न आंतरिक चुनौतियों का सामना करने के बाद मणिपुर के महाराजा ने 1949 में राज्य का भारत में विलय करने का निर्णय लिया। इस निर्णय ने मणिपुर को भारत का अभिन्न अंग बना दिया।

भारत से ये बहिष्कार मुख्य रूप से ऐतिहासिक, धार्मिक और राजनीतिक कारकों से प्रेरित थे। भारत के विभाजन और विभिन्न क्षेत्रों द्वारा चुने गए विकल्पों का उपमहाद्वीप की जनसांख्यिकी और भू-राजनीतिक परिदृश्य पर स्थायी प्रभाव पड़ा है।