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India Canada Row: कनाडा के खालिस्तानी राग से बिगड़े रिश्ते, भारत के एक कदम हटते ही होगा अरबों डॉलर का नुकसान

India Canada Row 2021 की जनगणना के अनुसार कनाडा में भारतीय मूल के लगभग 14 लाख लोग रह रहे हैं। ये कनाडा की कुल आबादी का 3.7 प्रति हिस्सा है। लगभग 7 लाख आबादी सिखों की है। कनाडा की राजनीति में सिख आबादी का अच्छा असर है। इसी वजह से जस्टिन ट्रूडो की सरकार खालिस्तान के समर्थकों को संरक्षण दे रही है।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Fri, 22 Sep 2023 07:53 AM (IST)
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भारत और कनाडा के बीच राजनयिक रिश्ते की शुरुआत 1947 में हुई थी।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। भारत और कनाडा के बीच राजनयिक रिश्ते की शुरुआत 1947 में हुई थी। इस तरह से भारत और कनाडा के रिश्ते 76 साल पुराने हैं। हालांकि कनाडा में खालिस्तानियों को सरकार का संरक्षण नई बात नहीं है। 1984 में खालिस्तान की मांग करने वाले आतंकवादियों ने एयर इंडिया की फ्लाइट को बम धमाके से उड़ा दिया था। इसकी वजह से भी दोनों देशों के रिश्तों में तनाव का दौर आया था। उस समय की कनाडा की सरकार भी खालिस्तानी आतंकवादियों को संरक्षण दे रही थी। 2015 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कनाडा की यात्रा के बाद दोनों देशों के रिश्ते रणनीतिक भागीदारी के स्तर पर पहुंचे। चीन की बढ़ती ताकत की वजह से भी कनाडा ने भारत के साथ रिश्ते मजबूत करने पर ध्यान दिया। भारत के साथ रिश्ते खराब होने से कनाडा को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि मौजूदा विश्व व्यवस्था में भारत के कद को देखते हुए उसके पश्चिमी सहयोगी भी भारत के खिलाफ बोलने से हिचकेंगे कनाडा को आर्थिक मोर्चे पर भी बडी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

7 लाख सिख आबादी का राजनीतिक असर

2021 की जनगणना के अनुसार कनाडा में भारतीय मूल के लगभग 14 लाख लोग रह रहे हैं। ये कनाडा की कुल आबादी का 3.7 प्रति हिस्सा है। लगभग 7 लाख आबादी सिखों की है। कनाडा की राजनीति में सिख आबादी का अच्छा असर है। इसी वजह से जस्टिन ट्रूडो की सरकार खालिस्तान के समर्थकों को संरक्षण दे रही है। कनाडा की सरकार इसके लिए भारत के साथ रिश्तों को भी दांव पर लगा रही है।

कनाडा को हजारों डॉलर देते हैं तीन लाख से ज्यादा भारतीय छात्र

आव्रजन शरणार्थी और नागरिकता कनाडा (आइआरसीसी) के आकड़ो के अनुसार 2022 में कुल 3,19,000 भारतीय वैध स्टडी वीजा के साथ रह रहे थे। 2022 में कनाडा में कुल 5 लाख अंतरराष्ट्रीय छात्र आए, इसमें 2,26,450 छात्र भारत से थे। यानी कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों में भारतीयों हिस्सेदारी लगभग 41 प्रतिशत थी। अगर कनाडा और भारत के रिश्ते खराब होते हैं और सरकार भारतीय छात्रों के कनाडा जाने पर रोक लगा देती है तो इससे कनाडा की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान होगा। अंतरराष्ट्रीय छात्र कनाडा की अर्थव्यवस्था में हर वर्ष 30 अरब डॉलर लेकर आते हैं । जाहिर है इसमें काफी बड़ा योगदान भारतीय छात्रों का है।

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8.16 अरब डॉलर पहुंचा कारोबार

भारत कनाडा के बीच द्विपक्षीय व्यापार तेजी से बढ़ा है और 2022-23 में ये 8.16 अरब डालर तक पहुंच गया है। कनाडा के लिए भारत का निर्यात 4.1 अरब डालर है जबकि भारत के लिए कनाडा का निर्यात 4.06 अरब डार है। कनाडा के पेंशन फंड ने भारत में 45 अरब डालर निवेश किया है।

कनाडा की अर्थव्यवस्था

2 .2 ट्रिलियन डालर की जीडीपी के साथ कनाडा दुनिया की नौवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। कनाडा की अर्थव्यवस्था में प्रमुख योगदान प्राकृतिक संसाधनों के दोहन और निर्यात का है। कनाडा अमेरिका, भारत जैसे बड़े देशों को जरूरी चीजे निर्यात करता है।

टोरंटों से कनिष्क की उड़ान और बम धमाका

1984 में एयर इंडिया की फ्लाइट 182 ने कनाडा के टोरंटों से मुंबई के लिए उड़ान भरी। ये एक बोइंग 747 जहाज था। इसका नाम कुषाण वंश के शासक 'सम्राट कनिष्क' के नाम पर रखा गया था। ये फ्लाइट मुंबई कभी नहीं पहुंची क्योंकि बम धमाके में सभी 329 यात्री मारे गए। भारत में अलग खालिस्तान की मांग करने वाले सिख आतंकवादियों ने इस बम धमाके को अंजाम दिया था। कृपाल आयोग ने अपनी जांच में बताया था कि ये बम धमाका था। बाद में केंद्रीय अन्वेशण ब्यूरो ने अपनी जांच में पाया था कि आतंकवादी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल इस धमाके के लिए जिम्मेदार है।

धमाके के मास्टरमाइंड को कनाडा का संरक्षण

कनाडा में इस धमाके की जांच बहुत सुस्त रही और दशकों बाद सिर्फ एक व्यक्ति इंदरजीत सिंह रेवत को इसके लिए दोषी ठहराया गया। मौजूदा समय में जिस तरह से कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन टूडो खालिस्तानियों को संरक्षण दे रहे हैं, उसी तरह से उनके पिता पियरे टूडो ने खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार को 1982 में भारत प्रत्यर्पित करने से इनकार कर दिया था । परमार को ही कनिष्क बम कांड का मास्टरमाइंड माना जाता है। पियरे ट्रूडो उस समय कनाडा के प्रधानमंत्री थे।