ISRO Chandrayaan Mission: चंद्रयान-1 ने अंतरिक्ष में पानी का लगाया था पता, नासा ने भी थपथपाई थी भारत की पीठ
ISRO Chandrayaan-1 Mission। इसरो के ड्रीम प्रोजक्ट चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग 14 जुलाई 2023 को होगी। साल 2019 में चंद्रयान-2 की क्रैश लैडिंग के बाद इसरो ने इस पर काम शुरू किया था। ऐसे में हम सबके मन में यह सवाल आता है कि भारत ने पहली बार चंद्रयान की लॉन्चिंग कब की थी और इसके क्या फायदे हुए थे। आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब...
NASA ने भी थपथपाई थी भारत की तारीफ
#WATCH | ISRO chief S Somanath gives details on Chandrayaan-3; says, "...In nutshell if you tell what was the problem in Chandrayaan-2, it is simple to say that the ability to handle parameter variation or dispersion was very limited. So, what we did this time is simply expand it… pic.twitter.com/RhOCntcEEV
— ANI (@ANI) July 10, 2023
चांद तक पहुंचने में चंद्रयान-1 को कितने दिन लगे?
चंद्रयान-1 को चांद तक पहुंचने में पांच दिन और इसका चक्कर लगाने के लिए कक्षा में स्थापित होने के लिए 15 दिन लगे थे। भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने एमआईपी की कल्पना की थी।चांद की सतह से इंपैक्टर शोध यान कब टकराया?
चांद पर मिले पानी के संकेत
चंद्रयान-1 का वजन कितना था?
चंद्रयान-1 का वजन एक हजार 380 किलोग्राम था। इसमें हाई रेजोल्यूशन रिमोट सेंसिंग उपकरण लगे हुए थे, जिनके जरिए चांद के वातावरण और उसकी सतह की बारीकी से जांच की गई थी। इसमें चांद की मैपिंग, टोपोग्राफी और रासायनिक कैरेक्टर शामिल हैं। इसी के चलते 25 सितंबर 2008 को इसरो ने घोषणा की थी कि चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी के सबूत खोजे हैं। चंद्रयान-1 में कुल 11 स्पेशल उपकरण लगाए गए थे।इसरो ने अपना लैंडर कहां उतारा था?
चंद्रयान-1 से जुड़ी खास बात यह है कि इसरो ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपना लैंडर उतारा था, जहां कई बड़े गड्ढे मौजूद हैं। सबसे बड़ा गड्ढा, जिसका नाम साउथ पोल आइतकेन बेसिन है, यहीं पर स्थित है। इसकी कुल चौड़ाई 2500 किमी और गहराई 13 किमी है।चंद्रयान-1 को कहां से लॉन्च किया गया था?
चंद्रयान-1 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी11 राकेट के जरिए लॉन्च किया गया था। इस मिशन से भारत की साख पूरी दुनिया में बढ़ी थी। चंद्रयान-1 ने चांद के चारों ओर तीन हजार बार चक्कर लगाया था। इसने करीब 70 हजार तस्वीरें भेजी थीं। इसके अलावा, उसने चंद्रमा के पहाड़ों और क्रेटर की तस्वीरें भी भेजी थी।भारत सरकार ने चंद्रयान-1 को कब मंजूरी दी?
भारत सरकार ने चंद्रयान-1 को नवंबर 2003 में पहली बार मंजूरी दी थी। इसके पांच साल बाद ही भारत ने चंद्रयान-1 की लॉन्चिंग कर पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। इसरो को यह कामयाबी पहली बार में ही मिली थी।चंद्रयान-1 मिशन कितने दिन का था?
चंद्रयान-1 मिशन दो साल का था। चांद के गुरुत्वाकर्षण बल से जुड़ा डाटा जुटाने के लिए जब सतह से इसकी ऊंचाई 100 किमी से बढ़ाकर 200 किमी की, उसी दौरान 29 अगस्त 2009 को इससे रेडियो संपर्क टूट गया। हालांकि, तब तक यह अपना काम कर चुका था।चंद्रयान-1 मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है?
चंद्रयान-1 मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि चांद की सतह पर पानी होने का पता लगाना था। इस उपलब्धि के लिए नासा ने भी भारत की तारीफ की थी।चंद्रयान-1 के बाद भारत ने कौन से मिशन लॉन्च किए?
चंद्रयान-1 के बाद भारत ने मंगलयान, और चंद्रयान-2 मिशन की लॉन्चिंग की। मंगलयान को पहली बार में भी मंगल ग्रह पर उतारकर भारत ने पूरी दुनिया को आश्चर्यचकित कर दिया। इस मिशन की लागत भी बेहद कम थी।अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
चंद्रयान-1 को लॉन्च करने का विचार इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. कस्तूरीरंगन का था। उनके अंदर इसरो के जरिए भारत को महाशक्ति बनाने की महत्वाकांक्षा थी।
चंद्रयान-1 की सबसे बड़ी उपलब्धि चंद्रमा की सतह पर पानी का पता लगाना था। इसके लिए नासा ने भी इसरो की तारीफ की थी।
चंद्रयान-1 से अंतिम बार संपर्क 28 अगस्त 2009 को हुआ था। इसके बाद उससे संपर्क नहीं हो पाया। इसरो का कहना है कि मिशन के तब तक 95 फीसद उद्देश्य पूरे हो गए थे।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, चंद्रयान-1 का कुल बजट 386 करोड़ था। वहीं, चंद्रयान-2 का बजट 978 करोड़ था।