Move to Jagran APP

India China Standoff: गलवन नदी घाटी में इसलिए बढ़ाया चीन ने तनाव...

India China Standoff सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वो इलाका है जहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा स्पष्ट रूप से परिभाषित है और दोनों ही देशों ने इसे स्वीकार भी किया है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 17 Jun 2020 12:11 PM (IST)
India China Standoff: गलवन नदी घाटी में इसलिए बढ़ाया चीन ने तनाव...
India China Standoff: गलवन नदी घाटी में इसलिए बढ़ाया चीन ने तनाव...

नई दिल्ली, जेएनएन। India China Standoff: चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवान शहीद हो गए। वहीं 47 चीनी सैनिक भी मारे गए हैं। यह झड़प दोनों देशों के बीच व्याप्त तनाव को और बढ़ा सकती है। यह झड़प गलवन क्षेत्र में हुई। 1962 के बाद यह पहली बार है जब इस क्षेत्र में तनाव पैदा हुआ है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह वो इलाका है जहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा स्पष्ट रूप से परिभाषित है और दोनों ही देशों ने इसे स्वीकार भी किया है। हालांकि चीन का इस क्षेत्र में दखल बताता है कि वो अपनी आक्रामक विस्तारवादी नीति को एक बार फिर सामने रखकर आगे बढ़ रहा है। यह क्षेत्र भारत के लिए विभिन्न दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। ऐसे में जानते हैं कि क्यों चीन इस इलाके को कब्जा करने की कोशिशों में जुटा है।

1975 में चली थी आखिरी बार गोली : चीन और भारत के बीच यह 44 सालों में पहली घटना है। 1975 में भारत-चीन सीमा पर एक कार्रवाई के दौरान कुछ सैनिक शहीद हो गए थे। इससे पहले दोनों देशों के बीच 1967 में गोलीबारी हुई थी। इसके पीछे भी अलग-अलग कारण बताए जाते हैं, लेकिन मुख्य कारण चीन की विस्तारवादी नीति को माना जाता है। चीन सिक्किम से भारतीय सेना की वापसी पर जोर दे रहा था। इसी बीच भारतीय इंजीनियरों और जवानों ने सेना पर बाड़ लगाने का काम शुरू किया। चीन पहले से ही सीमा पर खाई खोद रहा था। 11 सितंबर को चीन ने हाथापाई शुरू कर दी। इसके नाथूला में गोलीबारी शुरू हुई और 14 सितंबर को युद्ध विराम हुआ। दो दिनों शवों का आदान प्रदान हुआ। एक अक्टूबर को चोला में फिर गोलीबारी हुई और दोनों पक्षों को नुकसान हुआ। इन घटनाओं में भारत के 80 से अधिक सैनिक शहीद हुए और करीब 300 से 400 चीनी सैनिक मारे गए। वहीं 1975 की घटना को आकस्मिक माना जाता है, जिसमें घने कोहरे में चार भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों की गोलीबारी में मारे गए। यह भी कहा जाता है कि भारतीय सैनिकों पर घात लगाकर हमला किया गया था।

1962 का इतिहास : 1962 में चीन ने भारत की पूर्वी और उत्तरी सीमाओं पर हमला किया। अन्य कारकों के साथ शिनजियांग और तिब्बत के बीच सड़क का निर्माण था। यहां पर चीन ने जी-219 राजमार्ग का निर्माण किया। इसका करीब 179 किमी हिस्सा भारतीय क्षेत्र अक्साई चिन से गुजरता है। सड़क निर्माण के बाद चीन इस क्षेत्र पर दावा जताने लगा। युद्ध से पहले अलग-अलग रेखाओं के जरिए अपना क्षेत्र बताता रहा। युद्ध के बाद सभी रेखाओं को पार करते हुए बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया।

इसलिए बौखलाया है चीन : चीन शिनजियांग-तिब्बत मार्ग से भारत को यथासंभव दूर रखना चाहता था। वह प्रमुख पहाड़ी दर्रों और ऊंचाई वाले प्रमुख स्थानों पर कब्जा करना चाहता है। चीन का मानना है कि यदि वह नदी घाटी के पूरे हिस्से को नियंत्रित नहीं करता है तो भारत अक्साई चिन पठार को कब्जाने के लिए नदी घाटी का उपयोग कर सकता है और खतरे में डाल सकता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा श्योक नदी के साथ आगे बढ़ती है। हाल ही में निर्मित दारबुक-श्योक गांव-दौलत बेग ओल्डी रोड (डीएसडीबीओ रोड) भी नदी के साथ बढ़ती है। संचार की यह महत्वपूर्ण रेखा भी एलएसी के नजदीक है।

मौत की नदी : पुराने समय में, जब चीन में शिनजियांग में लेह, यारकंद और काशगर के बीच कारवां चलता था, तो श्योक नदी के जमने के दौरान वे सर्दियों के दौरान इसके किनारे यात्रा करते थे। गर्मियों के दौरान जब ग्लेशियर पिघलते थे तो नदी में पानी बहुत तेज होता था। इस कारण गर्मियों में कई लोग और जानवर इस यात्रा को करने की कोशिश में खो गए थे। इसलिए नदी का नाम श्योक या मृत्यु की नदी रखा गया।

गलवन नदी और 1962 युद्ध : 1962 के युद्ध में पूर्वी लद्दाख के गलवन नदी के नजदीक के इलाकों में सेना की चौकियों की स्थापना की गई थी। हालांकि यहां पर प्रतिरोध की पर्याप्त शक्ति नहीं थी। 1962 के मध्य में 1/8 गोरखा राइफल्स के सैनिकों को चांग चेनमो नदी घाटी से उत्तर की ओर भेजा गया, जहां पर उन्होंने चीनी सैनिकों के सामने समुजुग्लिंग में चीनी पोस्ट के सामने चौकी बनाई। यह श्योक नदी के साथ गलवन के संगम से लगभग 70 से अधिक किलोमीटर पूर्व में है। अपनी शुरुआत से ही, भारतीय सेना की पोस्टें सभी तरफ से चीन से घिरी हुई थीं। नतीजतन, एमआई -4 हेलीकॉप्टरों के जरिए इन्हें बनाए रखा गया। 20 अक्टूबर 1962 को चीनी हमले से कुछ दिन पहले, मेजर एच.एस. हसबनीस की कमान में 5 जाट की अल्फा कंपनी के सैनिकों को हसबनीस से 1/8 गोरखा राइफल्स को बदल दिया गया। गलवन सेक्टर में भारतीय पोस्ट 20 अक्टूबर की सुबह से ही हमले शुरू हो गए थे और भारी बाधाओं का सामना करने के बावजूद लगभग 24 घंटों तक मुकाबला करते रहे। यहां 68 में से 36 सैनिक शहीद हुए और मेजर एच.एस. हसबनीस घायल हो गए जिन्हें युद्ध बंदी बना लिया गया।

गलवन नदी घाटी : गलवन नदी का उद्गम काराकोरम के पूर्वी हिस्से में है। यहां से यह निकलकर यह अक्साई चिन और पूर्वी लद्दाख के पहाड़ी इलाके से होते हुए आगे बढ़ती है और श्योक नदी में मिल जाती है। यह सिंधु नदी की सहायक नदी है। गलवन नदी की लंबाई करीब 80 किमी है।