Rajendra Prasad: 'सिपाही से भी बड़े आदमी बन गए हो', राष्ट्रपति बनने के बाद जब गांव पहुंचे राजेंद्र बाबू
Rajendra Prasad राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार राजेंद्र प्रसाद अपने गांव पहुंचे तो उनका बहुत ही जोरदार तरीके से स्वागत किया गया था। गांव वालों के साथ परिवार के सदस्यों ने उन्हें आर्शीवाद दिया। इस दौरान दादी ने कहा कि सिपाही से भी बड़े आदमी बन गए हो।
By Mohd FaisalEdited By: Mohd FaisalUpdated: Tue, 28 Feb 2023 12:46 PM (IST)
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भारत के पहले राष्ट्रपति और महान स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राजेंद्र प्रसाद की आज पुण्यतिथि है। देश के पहले राष्ट्रपति की पुण्यतिथि पर उन्हें आज देश याद कर रहा है। राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के तत्कालीन सारण जिले (अब सीवान) के जीरादेई गांव में हुआ था। उनके पिता महादेव सहाय संस्कृत और फारसी के विद्वान थे।
देश की आजादी में रहा राजेंद्र प्रसाद का अहम योगदान
- राजेंद्र प्रसाद का देश की आजादी में अहम योगदान रहा। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाली थी।
- राजेंद्र प्रसाद ने भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
- भारत का राष्ट्रपति बनने से पहले उन्होंने भारत के पहले मंत्रिमंडल में कृषि और खाद्यमंत्री की जिम्मेदारी को निभाया था।
राजेंद्र बाबू कहकर बुलाते थे लोग
राजेंद्र प्रसाद को राजेंद्र बाबू कहकर बुलाया जाता था। राजेंद्र बाबू एक बुद्धिमान छात्र, आदर्श शिक्षक, सफल वकील, प्रभावशाली लेखक, गांधीवादी समर्थक और देश प्रेमी व्यक्ति थे। उन्होंने राष्ट्रपति रहते हुए अपना जीवन बेहद ही सादे तरीके से जिया। उन्होंने सारा जीवन देश की सेवा की और इस दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बता दें राजेन्द्र प्रसाद अपने गांव के पहले ऐसे व्यक्ति थे जो उस दौर में कलकत्ता विश्विद्यालय में प्रवेश पाने में सफल रहे थे।राजेंद्र प्रसाद का राजनीतिक जीवन
दरअसल, बिहार में नील की खेती करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने मजदूर रखे थे। हालांकि, इस दौरान उन्हें मुनासिब पैसा सरकार की तरफ से नही मिलता था। जब ये बात 1917 में महात्मा गांधी को पता चली तो उन्होंने इसके लिए राजेंद्र प्रसाद से मुलाकात की थी। इस दौरान महात्मा गांधी उनसे इतने प्रभावित हुए कि चंपारण आंदोलन के दौरान उनके बीच संबंध और भी मजबूत हो गए।
इसके बाद राजेंद्र प्रसाद ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा। साल 1934 में राजेंद्र प्रसाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुंबई अधिवेशन में अध्यक्ष चुने गये। नेताजी सुभाषचंद्र बोस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देने पर कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार उन्होंने एक बार पुन: 1939 में संभाला था। इसके बाद साल 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई।
राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार पहुंचे अपने गांव
राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार राजेंद्र प्रसाद अपने गांव पहुंचे तो उनका बहुत ही जोरदार तरीके से स्वागत किया गया था। गांव वालों के साथ परिवार के सदस्यों ने उन्हें आर्शीवाद दिया। इस दौरान उनकी दादी ने राजेंद्र प्रसाद को आर्शीवाद देते हुए कहा था कि, 'ऐसा सुना है कि तुम बहुत बड़े आदमी बन गए हो, ऐसे ही खूब जीयों और आगे बढ़ते रहो।' उन्होंने आगे कहा कि, 'लाल टोपी वाला (सिपाही) से भी बड़े बन गए हो?भारतीय संविधान समिति के अध्यक्ष बनें राजेंद्र प्रसाद
- देश की आजादी के बाद राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभाली।
- 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने पर देश के पहले राष्ट्रपति का पदभार संभाला।
- राष्ट्रपति रहते हुए उन्हें कई अहम कार्यों को कराया, जिसमें गुजरात के सौराष्ट्र के ‘सोमनाथ शिव मंदिर’ का जीर्णोद्धार भी शामिल है।
- भारत के प्रथम राष्ट्रपति होने के चलते उन्हें भारतीय संविधान समिति का अध्यक्ष भी बनाया गया
- जब देश का संविधान लागू किया गया तो उससे एक पहले उनकी बहन का निधन हो गया था। हालांकि, उन्होंने अपनी बहन के अंतिम संस्कार में शामिल होने के बाद संविधान लागू होने की रस्म में हिस्सा लिया था।
- राजेंद्र प्रसाद ने 12 सालों तक देश के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया और साल 1962 में उन्होंने अपना पदभार छोड़ा था।
- इसके बाद भारत सरकार की तरफ से देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।
- हालांकि, 28 फरवरी 1963 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद का निधन हो गया।