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Poverty Eradication: भारत को घोर गरीबी के उन्मूलन में मिली कामयाबी, अमेरिकी थिंक टैंक ने खपत खर्च डाटा के आधार पर किया अध्ययन

अध्ययन में कहा गया है कि कुल आबादी में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों (प्रतिदिन 1.90 डालर से कम खर्च करने वाले) की संख्या 2011-12 की 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में दो प्रतिशत आ गई। यह गरीबों की संख्या में हर वर्ष 0.93 प्रतिशत की कमी के बराबर है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या घटकर 2.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में एक प्रतिशत रह गई है।

By Agency Edited By: Amit Singh Updated: Sun, 03 Mar 2024 06:58 AM (IST)
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गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या में बड़ी गिरावट।
पीटीआई, नई दिल्ली। थिंक टैंक नीति आयोग ने पिछले महीने एक रिपोर्ट में कहा था कि सरकार के कल्याणकारी कार्यक्रमों से बीते नौ वर्षों में करीब 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकालने में मदद मिली है। अब अमेरिका के थिंक टैंक द ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन के अर्थशास्त्रियों ने राष्ट्रीय नमूना सर्वे कार्यालय (एनएसएसओ) के हालिया खर्च खपत डाटा के आधार पर तैयार अध्ययन रिपोर्ट में कहा है कि भारत को घोर गरीबी का उन्मूलन करने में सफलता मिल गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि तेज विकास और असमानता में कमी के चलते भारत को यह कामयाबी मिली है। इस अध्ययन में खर्च खपत डाटा के हवाले से कहा गया है कि 2011-12 के मुकाबले प्रति व्यक्ति खपत में 2.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। शहरी क्षेत्रों में यह वृद्धि 2.6 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में 3.1 प्रतिशत रही है। शहरी और ग्रामीण असमानता में अभूतपूर्व गिरावट : इसके अलावा, शहरी और ग्रामीण असमानता में अभूतपूर्व गिरावट आई है। शहरी क्षेत्रों में गिनी 2011-12 की 36.7 से घटकर 31.9 पर आ गई है और ग्रामीण क्षेत्रों में गिनी 28.7 से गिरकर 27 हो गई है।

गिनी एक प्रकार का सूचकांक है जो आय वितरण की असमानता को दर्शाता है। अध्ययन में कहा गया है कि असमानता में यह गिरावट ऐतिहासिक है। घोर गरीबी के लगभग खात्मे के बाद भारत को अब गरीबी रेखा का मापक स्तर ऊंचा करना चाहिए। इससे वास्तविक गरीबों तक पहुंच के लिए मौजूदा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को फिर से परिभाषित किया जा सकेगा। यह अध्ययन अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला और करण भसीन ने तैयार किया है।

गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों की संख्या में बड़ी गिरावट

अध्ययन में कहा गया है कि कुल आबादी में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों (प्रतिदिन 1.90 डालर से कम खर्च करने वाले) की संख्या 2011-12 की 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में दो प्रतिशत आ गई है। यह गरीबों की संख्या में हर वर्ष 0.93 प्रतिशत की कमी के बराबर है। ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबों की संख्या घटकर 2.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में एक प्रतिशत रह गई है।

दोनों अर्थशास्त्रियों ने जोर देकर कहा है कि इस अनुमान में सरकार की ओर से करीब दो तिहाई आबादी को दिए जाने वाले मुफ्त अनाज (गेहूं और चावल) और सार्वजनिक स्वास्थ्य व शिक्षा के आंकड़ों का उपयोग नहीं किया है। लेख में कहा गया है कि भारत में गरीबों की संख्या में जो गिरावट बीते 11 वर्षों में हुई है, इससे पहले वह गिरावट 30 वर्षों में हुई थी।