अवैध शिकार का गढ़ रहा है भारत, अंतरराष्ट्रीय तस्करों से लेकर सेलिब्रिटी तक हैं सक्रिय
भारत काफी समय से संरक्षित वन्य जीवों के अवैध शिकार के लिए गढ़ रहा है। भारत के अंतरराष्ट्रीय तस्कर संसार चंद को दुनिया का सबसे खूंखार शिकारी माना जाता है।
By Amit SinghEdited By: Updated: Wed, 26 Dec 2018 02:41 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत में संरक्षित जंगली जानवरों का अवैध शिकार कोई नई बात नहीं है। इस अवैध शिकार में खूंखार तस्करों से लेकर नामी सेलिब्रिटि तक सब शामिल हैं। तस्कर जहां मोटी कमाई के लिए इनका अवैध शिकार और अंगों की तस्करी करते हैं, वहीं सेलिब्रिटि महज अपना शौक पूरा करने के लिए इन बेजुबानों की जान ले लेते हैं।
बुधवार सुबह बहराइच के कतर्नियाघाट वन्य जीव प्रभाग में शिकार कर लौट रहे फिल्म अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह के पति व इंटरनेशनल गॉल्फर जोतिंदर सिंह रंधावा उर्फ ज्योति सिंह को खपरिया वन चौकी के पास गिरफ्तार कर लिया गया। तलाशी के दौरान उनकी गाड़ी से जंगली मुर्गे, सांभर की खाल व जीरो प्वाइंट 22 की रायफल बरामद हुई है। इसके बाद से भारत में संरक्षित वन्य जीवों के अवैध शिकार का मामला फिर गर्म हो गया है।
इससे पहले बॉलिवुड के दिग्गज अभिनेता सलमान खान भी 1998 के काला हिरण शिकार मामले में फंस चुके हैं। इस केस में जोधपुर की अदालत ने उन्हें पांच साल की सजा भी सुनाई थी। इस अवैध शिकार मामले में सलमान के साथ बॉलिवुड कलाकार सैफ अली खान, तब्बू, सोनाली बेंद्रे और नीलम का नाम भी आया था। हालांकि जोधपुर कोर्ट ने बाकी आरोपियों को बरी कर दिया था। इन कलाकारों ने राजस्थान में फिल्म ‘हम साथ साथ हैं’ की शूटिंग के दौरान ये अवैध शिकार किया था।
काजीरंगा में गैंडों के शिकारियों का सरगना गिरफ्तार
सितंबर 2016 में असम पुलिस ने 35 वर्षीय साबर इंगलेंग को गिरफ्तार किया था। वह राज्य में गैंडों का अवैध शिकार करने वाले खूंखार शिकारियों के एक गिरोह का सरगना था। साबर इंगलेंग के गिरोह ने गिरफ्तार से पहले के चार वर्षों में गुवाहाटी स्थित काजीरंगा नेशनल पार्कट में 20 से ज्यादा गैंडों का अवैध शिकार किया था। इस वजह से वह वन विभाग की मोस्ट वांटेड सूची में भी शामिल था। उसे कारबी आंगलोंग जिले से गिरफ्तार किया गया था। वह इस इलाके में काजीरंगा नेशनल पार्क की सीमा से सटे घने जंगली क्षेत्र में छिपने के लिए शरण लेता था। इसके गिरोह ने वर्ष 2016 में ही काजीरंगा पार्क में 14 गैंडों का अवैध शिकार किया था। बावरिया गिरोह भी करता है अवैध शिकार
मार्च 2016 में ही उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वन क्षेत्रों में बावरिया गिरोह द्वारा संरक्षित वन्य जीवों का अवैध शिकार कर उनके अंगों की नेपाल व तिब्बत में तस्करी करने का मामला सामने आया था। इस पर रोक लगाने के लिए यूपी एसटीएफ ने उस वक्त अवैध शिकार करने वाले अंतरराष्ट्रीय गिरोह के एक सदस्य रामचंद्र उर्फ चंदर पुत्र बीरबल को गिरफ्तार किया था। उसके पास से पांच शेरों की खाल और तीन शेरों की करीब 125 किलो हड्डियां बरामद हुईं थीं। उसके साथी हजारी, रामभगत, मुख्तयार और माडिया भाग निकलने में कामयाब रहे थे। वन्य जीवों का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय तस्कर था संसार चंद
संसार चंद, भारतीय वन अधिकारियों के लिए एक दशक से ज्यादा समय तक ये नाम एक बुरे सपने की तरह रहा है। कई राज्य नहीं, बल्कि कई देशों में संसार चंद एक वक्त तक दहशत का पर्याय रहा है। संसार चंद, भारत में एक पीढ़ी के बाघों को खत्म करने के लिए कुख्यात है। उसका नेटवर्क भारत से लेकर नेपाल, चीन, तिब्बत समेत कई देशों में फैला था। उसके खिलाफ भारत के कई राज्यों में अवैध शिकार और वन्य जीवों के अंगों की तस्करी के मामले दर्ज थे। उसे 2013 में गिरफ्तार किया गया था। मार्च 2014 में जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में कैंसर से उसकी मौत हो चुकी है। उस वक्त उसकी उम्र 61 वर्ष थी। उसका इलाज न्यायिक हिरासत में चल रहा था। आशंका है कि उसकी मौत के बाद भी उसका गिरोह भारत में अवैध शिकार कर रहा है।वन्य जीव ही नहीं पेड़ भी हैं संरक्षित
भारत में संरक्षित वन्य जीवों के संरक्षण के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 लागू है। इसके तहत संरक्षित जीवों की छह अनुसूची निर्धारित की गई है। अनुसूची एक में सबसे संरक्षित जीवों को रखा गया है, जो भारत समेत दुनिया में लुप्तप्राय हैं। ये अधिनियम वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने, उनका अवैध शिकार और अंगों की तस्करी को रोकने के लिए बनाया गया था। जनवरी 2003 में इसमें संशोधन कर इसे और कठोर कर दिया गया। अब इसमें सजा और जुर्माने का भी प्रावधान कर दिया गया है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत किए गए अपराधों में तीन से सात साल तक के कारावास और 10 हजार रुपये से 25 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत केवल वन्य जीव ही नहीं बल्कि पक्षियों, पेड़ों और मछलियों को भी संरक्षण प्राप्त है। अनुसूची वार सजा का प्रावधान
1. अनुसूची एक व दो के वन्य जीवों, मछलियों और पक्षियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान है। इसमें कठोरतम सजा का प्रावधान है।
2. अनुसूची तीन और चार भी वन्य जीवों, मछलियों और पक्षियों को संरक्षण देती है, लेकिन इसमें निर्धारित सजा कम है।
3. अनुसूची पांच में शामिल वन्य जीवों, मछलियों और पक्षियों का शिकार किया जा सकता है।
4. अनुसूची छह में संरक्षित पौधों की खेती और रोपण पर रोक लगाई गई है।वन्य जीवों के संरक्षण के लिए देश में अन्य कानून
1. मद्रास वाइल्ड एलीफैंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1873
2. ऑल इंडिया एलीफैंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1879
3. दि वाइल्ड बर्ड एंड एनिमल्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1912
4. बंगाल राइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1932
5. असम राइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1954
6. इंडियन बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (IBWL), 1952 यह भी पढ़ेंः 14 साल पहले आयी इस आपदा ने छोटे कर दिए दिन और बदल दिया दुनिया का नक्शा
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सितंबर 2016 में असम पुलिस ने 35 वर्षीय साबर इंगलेंग को गिरफ्तार किया था। वह राज्य में गैंडों का अवैध शिकार करने वाले खूंखार शिकारियों के एक गिरोह का सरगना था। साबर इंगलेंग के गिरोह ने गिरफ्तार से पहले के चार वर्षों में गुवाहाटी स्थित काजीरंगा नेशनल पार्कट में 20 से ज्यादा गैंडों का अवैध शिकार किया था। इस वजह से वह वन विभाग की मोस्ट वांटेड सूची में भी शामिल था। उसे कारबी आंगलोंग जिले से गिरफ्तार किया गया था। वह इस इलाके में काजीरंगा नेशनल पार्क की सीमा से सटे घने जंगली क्षेत्र में छिपने के लिए शरण लेता था। इसके गिरोह ने वर्ष 2016 में ही काजीरंगा पार्क में 14 गैंडों का अवैध शिकार किया था। बावरिया गिरोह भी करता है अवैध शिकार
मार्च 2016 में ही उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वन क्षेत्रों में बावरिया गिरोह द्वारा संरक्षित वन्य जीवों का अवैध शिकार कर उनके अंगों की नेपाल व तिब्बत में तस्करी करने का मामला सामने आया था। इस पर रोक लगाने के लिए यूपी एसटीएफ ने उस वक्त अवैध शिकार करने वाले अंतरराष्ट्रीय गिरोह के एक सदस्य रामचंद्र उर्फ चंदर पुत्र बीरबल को गिरफ्तार किया था। उसके पास से पांच शेरों की खाल और तीन शेरों की करीब 125 किलो हड्डियां बरामद हुईं थीं। उसके साथी हजारी, रामभगत, मुख्तयार और माडिया भाग निकलने में कामयाब रहे थे। वन्य जीवों का सबसे बड़ा अंतरराष्ट्रीय तस्कर था संसार चंद
संसार चंद, भारतीय वन अधिकारियों के लिए एक दशक से ज्यादा समय तक ये नाम एक बुरे सपने की तरह रहा है। कई राज्य नहीं, बल्कि कई देशों में संसार चंद एक वक्त तक दहशत का पर्याय रहा है। संसार चंद, भारत में एक पीढ़ी के बाघों को खत्म करने के लिए कुख्यात है। उसका नेटवर्क भारत से लेकर नेपाल, चीन, तिब्बत समेत कई देशों में फैला था। उसके खिलाफ भारत के कई राज्यों में अवैध शिकार और वन्य जीवों के अंगों की तस्करी के मामले दर्ज थे। उसे 2013 में गिरफ्तार किया गया था। मार्च 2014 में जयपुर के सवाई मान सिंह अस्पताल में कैंसर से उसकी मौत हो चुकी है। उस वक्त उसकी उम्र 61 वर्ष थी। उसका इलाज न्यायिक हिरासत में चल रहा था। आशंका है कि उसकी मौत के बाद भी उसका गिरोह भारत में अवैध शिकार कर रहा है।वन्य जीव ही नहीं पेड़ भी हैं संरक्षित
भारत में संरक्षित वन्य जीवों के संरक्षण के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 लागू है। इसके तहत संरक्षित जीवों की छह अनुसूची निर्धारित की गई है। अनुसूची एक में सबसे संरक्षित जीवों को रखा गया है, जो भारत समेत दुनिया में लुप्तप्राय हैं। ये अधिनियम वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने, उनका अवैध शिकार और अंगों की तस्करी को रोकने के लिए बनाया गया था। जनवरी 2003 में इसमें संशोधन कर इसे और कठोर कर दिया गया। अब इसमें सजा और जुर्माने का भी प्रावधान कर दिया गया है। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत किए गए अपराधों में तीन से सात साल तक के कारावास और 10 हजार रुपये से 25 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत केवल वन्य जीव ही नहीं बल्कि पक्षियों, पेड़ों और मछलियों को भी संरक्षण प्राप्त है। अनुसूची वार सजा का प्रावधान
1. अनुसूची एक व दो के वन्य जीवों, मछलियों और पक्षियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान है। इसमें कठोरतम सजा का प्रावधान है।
2. अनुसूची तीन और चार भी वन्य जीवों, मछलियों और पक्षियों को संरक्षण देती है, लेकिन इसमें निर्धारित सजा कम है।
3. अनुसूची पांच में शामिल वन्य जीवों, मछलियों और पक्षियों का शिकार किया जा सकता है।
4. अनुसूची छह में संरक्षित पौधों की खेती और रोपण पर रोक लगाई गई है।वन्य जीवों के संरक्षण के लिए देश में अन्य कानून
1. मद्रास वाइल्ड एलीफैंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1873
2. ऑल इंडिया एलीफैंट प्रिजर्वेशन एक्ट, 1879
3. दि वाइल्ड बर्ड एंड एनिमल्स प्रोटेक्शन एक्ट, 1912
4. बंगाल राइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1932
5. असम राइनोसेरस प्रिजर्वेशन एक्ट, 1954
6. इंडियन बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ (IBWL), 1952 यह भी पढ़ेंः 14 साल पहले आयी इस आपदा ने छोटे कर दिए दिन और बदल दिया दुनिया का नक्शा
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