इतना ही नहीं, भारत की मदद से दूसरे देशों के सैटेलाइट भी अंतरिक्ष में लॉन्च किए जा रहे हैं। अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को आज एक महाशक्ति के रूप में देखा जाने लगा है। बता दें कि भारत सैटेलाइट लॉन्च के मार्केट में तेजी से बढ़त बना रहा है। एक साथ 100 से अधिक सैटेलाइट लॉन्च कर भारत पहले ही रिकॉर्ड बना चुका है।
भारत के स्पेस सेक्टर के बारे में सुनते ही हमारे दिमाग में ISRO, मंगलयान मिशन, चंद्रयान मिशन और न जाने कितनी ही चीजें आती हैं। हालांकि, भारत के लिए एक साइकिल पर पहला रॉकेट लाने से लेकर आज दूसरे देशों के सैटेलाइट लॉन्च करने तक का सफर आसान नहीं था।
कैसे हुई इसरो (ISRO) की शुरुआत?
एक समय था जब संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ अंतरिक्ष अन्वेषण की दौड़ में सबसे आगे थे। यहां तक कि कह सकते हैं कि एकमात्र देश थे और उस दौरान स्पेस मिशन करना तो दूर भारत के लिए वो सोचना भी मुश्किल था।
हालांकि, यह तब बदल गया जब दूरदर्शी डॉ. विक्रम साराभाई ने 1962 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति (INCOSPAR) का गठन किया। डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, जो बाद में भारत के राष्ट्रपति बने, रॉकेट इंजीनियरों की प्रारंभिक टीम में से थे, जिन्होंने INCOSPAR का गठन किया था।
पहला रॉकेट 21 नवंबर, 1963 को यहां से लॉन्च किया गया था। यह एक साउंडिंग रॉकेट था, जिसे नासा में बनाया गया था और इसे 'नाइके-अपाचे' कहा गया था। यह प्रक्षेपण कई लोगों के लिए एक चमत्कार था और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की ऐतिहासिक शुरुआत को चिह्नित करता है।
इसके बाद, 15 अगस्त, 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) बन गया। यह एकदम सही दिन था, क्योंकि भारत अपना 22 वां स्वतंत्रता दिवस भी मना रहा था। इसरो ने वर्षों से राष्ट्र की सेवा के लिए अंतरिक्ष तकनीक का उपयोग करने के अपने लक्ष्य को बनाए रखा है और धीरे-धीरे दुनिया की छह सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में से एक बन गया है।श्रीहरिकोटा का अस्तित्व भी अक्टूबर, 1971 में सामने आया था, जिसका नाम 2003 में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया। आज इसी जगह से भारत कई बड़े-बड़े मिशन को अंजाम देता है। अब इसरो, उपग्रहों का निर्माण और प्रक्षेपण करने वाले दुनिया के प्रमुख संगठन के रूप में उभर कर सामने आया है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कई सफल मिशन लॉन्च किए हैं, जिनमें मंगल ऑर्बिटर मिशन और चंद्रमा पर चंद्रयान मिशन शामिल हैं, जो अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की क्षमताओं का प्रदर्शन कर रहा है।
पहला सैटेलाइट 'आर्यभट्ट' कैसे हुआ लॉन्च?
प्रसिद्ध भारतीय खगोलशास्त्री के नाम पर, पहले सैटेलाइट का नाम 'आर्यभट्ट' रखा गया, जिसे 19 अप्रैल, 1975 को कोस्मोस -3 एम लॉन्च वाहन का उपयोग करके अस्त्राखान ओब्लास्ट में सोवियत रॉकेट लॉन्च और विकास स्थल कपस्टिन यार से लॉन्च किया गया था। यह इसरो द्वारा बनाया गया था और सोवियत इंटर कोस्मोस कार्यक्रम के एक हिस्से के रूप में सोवियत संघ द्वारा लॉन्च किया गया था। यह भारत के इतिहास में एक प्रतिष्ठित पल था।
उडुपी रामचंद्र राव की अगुवाई में साल 1975 में भारत के पहले उपग्रह 'आर्यभट्ट' को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया। उडुपी, भारत के पहले अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे, जिन्हें साल 2013 में 'सैटेलाइट हाल ऑफ द फेम' से और साल 2016 में 'आईएएफ हाल ऑफ द फेम' में शामिल करने के साथ सम्मानित भी किया गया। इसके बाद, साल 1972 में उन्होंने ही भारत में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी की स्थापना की जिम्मेदारी भी ली।
SLV-3
सैटेलाइट प्रक्षेपण यान-3 (एसएलवी-3) भारत का पहला प्रायोगिक उपग्रह प्रक्षेपण यान था। इसे 18 जुलाई, 1980 को लॉन्च किया गया था। इसरो की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, एसएलवी -3 ने रोहिणी को कक्षा में रखा और इसलिए भारत अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले देशों के एक विशेष क्लब का छठा सदस्य बन गया।रोहिणी भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा प्रमोचित उपग्रहों की एक श्रृंखला थी। रोहिणी श्रृंखला में चार उपग्रह शामिल थे, जिनमें से प्रत्येक को एसएलवी द्वारा लॉन्च किया गया था और जिनमें से तीन ने इसे सफलतापूर्वक कक्षा में बना दिया था। एसएलवी -3 परियोजना की सफल परिणति ने उन्नत प्रक्षेपण यान परियोजनाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया था।
चंद्रयान-2013
चंद्रयान-1 मिशन, भारत का पहला चंद्र मिशन था। इस चंद्रयान को इसरो द्वारा 4 अक्टूबर, 2013 को लॉन्च किया गया था। अंतरिक्ष यान में एक चंद्र ऑर्बिटर और एक इम्पैक्टर शामिल था। इसमें ऐसे कई उपकरण भी शामिल थे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया जैसे विदेशी देशों में बनाए गए थे। अंतरिक्ष यान ने चंद्रमा के चारों ओर 3,400 से अधिक परिक्रमाएं पूरी कीं। हालांकि 29 अगस्त, 2009 को अंतरिक्ष यान के साथ संचार खो जाने के बाद मिशन समाप्त हो गया था, फिर भी यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को एक बड़ा बढ़ावा देने में कामयाब रहा।
मिशन मार्स ऑर्बिटर मिशन (एमओएम)
मिशन मार्स ऑर्बिटर मिशन, भारत का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन था। रोस्कोसमोस, नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के बाद भारत मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाली दुनिया की चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गई है। इतना ही नहीं, इस मिशन के बाद भारत अपने पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। अंतरिक्ष यान, मंगलयान, 5 नवंबर, 2013 को लॉन्च किया गया था और 24 सितंबर, 2014 को मंगल की कक्षा में पहुंचा था।
चंद्रयान-2 मिशन
चंद्रयान-2,
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित दूसरा चंद्र मिशन था। इसमें एक चंद्र ऑर्बिटर, एक लैंडर और प्रज्ञान रोवर शामिल था, जो सभी भारत द्वारा बनाए गए थे। इस यान को 22 जुलाई, 2019 को आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च किया गया था। यान 20 अगस्त, 2019 को चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था, लेकिन 6 सितंबर, 2019 को उतरने का प्रयास करते समय लैंडर विक्रम अपने इच्छित प्रक्षेपवक्र से भटक जाने पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।इसरो की ओर से सौंपी गई विफलता विश्लेषण रिपोर्ट के मुताबिक, दुर्घटना एक सॉफ्टवेयर गड़बड़ी के कारण हुई थी।
चंद्रयान-3 मिशन
चंद्रयान-3 मिशन पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। चंद्रयान-3, चांद पर खोजबीन करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा तैयार किया गया तीसरा चंद्र मिशन है। इसमें चंद्रयान-2 के समान एक लैंडर और एक रोवर है। चंद्रयान-3 का लॉन्च सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र शार, श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई, 2023 को लॉन्च किया गया था।
ये मिशन चंद्रयान-2 की अगली कड़ी है, क्योंकि पिछला मिशन सफलता पूर्वक चांद की कक्षा में प्रवेश करने के बाद अंतिम समय में मार्गदर्शन सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी के कारण सॉफ्ट लैंडिंग के प्रयास में विफल हो गया था, सॉफ्ट लैन्डिंग का पुनः सफल प्रयास करने हेतु इस नए चंद्र मिशन को प्रस्तावित किया गया था। गौरतलब है कि यह चंद्रयान मिशन Failure Based Approach पर आधारित है।
भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के उभरते रुझान
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना: इसरो ने संयुक्त मिशन और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए कई देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ समझौतों और समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। हाल ही में, माइक्रोसॉफ्ट ने प्रौद्योगिकी उपकरणों और प्लेटफार्मों का उपयोग करके अंतरिक्ष तकनीकी स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए इसरो के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।अंतरिक्ष अन्वेषण मिशनों पर ध्यान दें: भारत मंगलयान मिशन (मार्स ऑर्बिटर मिशन) के साथ मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंचने वाला पहला एशियाई देश था। इतना ही नहीं, अपने पहले प्रयास में ही सफलता हासिल करने वाला दुनिया का पहला देश भारत था।नई प्रौद्योगिकियों का विकास: इसरो पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान और इन्फ्लैटेबल एयरोडायनामिक डिसलेरेटर (आईएडी) जैसी नई प्रौद्योगिकियों के विकास पर काम कर रहा है। देश के घरेलू स्टार्टअप अग्निकुल ने 3डी-प्रिंटेड रॉकेट इंजन का परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।
कई बड़े अंतरिक्ष मिशन को अंजाम दे चुका भारत
भारत एक के बाद एक कई अंतरिक्ष मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च कर चुका है। 2017 में इसरो ने एकसाथ 104 सैटेलाइट लॉन्च कर के पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था। पिछले कुछ दशकों में अमेरिका और रूस से मुकाबला करते हुए भारत उस फेहरिस्त में आ खड़ा हुआ है, जहां दुनिया के चंद देश ही पहुंच सके हैं।साल 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, यूनियन ऑफ कंसर्न्ड साइंटिस्ट सैटेलाइट डेटाबेस ने एक सूची तैयार की है, जिसमें बताया गया है कि अंतरिक्ष में अमेरिका के स्पेस में अब तक 1308 सैटेलाइट, चीन के 356, रूस के 167, जापान के 78 और भारत के 58 सैटेलाइट हैं।
अमिट छाप छोड़ने की तैयारी में भारत
भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र का भविष्य आशाजनक दिखता है, जिसमें कई प्रमुख पहल और परियोजनाएं चल रही हैं। सरकार और निजी क्षेत्र की भागीदारी से निरंतर समर्थन के साथ, भारत अंतरिक्ष अन्वेषण और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ने के लिए तैयार है।