अब चीन के कर्ज के जाल में नहीं फंसेंगे गरीब देश, PM मोदी ने दुनिया के सामने रखा खास प्लान
Voice of Global South Summit अब छोटे और गरीब देश चीन के कर्ज के जाल में नहीं फंस सकेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को वायस ऑफ ग्लोबल साउथ समिट को संबोधित किया। इसमें पीएम मोदी ने नई व्यवस्था “ग्लोबल डेवलपमेंट काम्पैक्ट का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत विकासशील और गरीब देशों को विकास प्राथमिकताओं के आधार पर कर्ज मुहैया कराया जाएगा।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पिछले वर्ष जी-20 देशों की शिखर बैठक में भारत ने कुछ देशों की तरफ से विकास के नाम पर कर्ज दे कर ग्लोबल साउथ यानी विकासशील व गरीब देशों को कर्ज-जाल में फंसाने की व्यवस्था का मुद्दा उठाया था। अब शनिवार को भारत के पीएम नरेन्द्र मोदी ने इन देशों को अपनी विकास प्राथमिकताओं के आधार पर कर्ज मुहैया कराने या वित्त सुविधा देने के लिए एक नई व्यवस्था “ग्लोबल डेवलपमेंट काम्पैक्ट'' (वैश्विक विकास समझौता) का प्रस्ताव रखा है।
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भारत ने रखा 35 लाख डॉलर का प्रस्ताव
यह प्रस्ताव पीएम मोदी ने तीसरे वायस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में अपने समापन भाषण में रखा। शुरुआत में भारत ने इस फंड में 35 लाख डॉलर की मदद देने का प्रस्ताव रखा है जिसके उद्देश्य के बारे में पीएम मोदी ने कहा कि, “यह डेवलपमेंट फायनेंस के नाम पर जरूरतमंद देशों को कर्ज तले नहीं दबाएगा। यह पार्टनर देशों के संतुलित और सतत विकास में सहयोग देगा।''चीन के कर्ज पर गंभीर सवाल
मोदी ने दुनिया के सभी गरीब व विकासशील देशों को मौजूदा चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल में एकजुट होने का आह्वान किया। भारत ने विकासशील देशों के समक्ष विकास परियोजनाओं के लिए कर्ज लेने की एक नई व्यवस्था का प्रस्ताव तब रखा है जब कई देशों ने चीन की विकास के लिए कर्ज देने के तरीके को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं।जी-20 के तहत भी इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है लेकिन अभी तक कोई ऐसा समाधान नहीं निकाला जा सका है। पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा कि आज मैं आपके सामने भारत की ओर से एक व्यापक “ग्लोबल डेवलमेंट काम्पैक्ट '' का प्रस्ताव रखना चाहता हूं। इस समझौते की नींव भारत की विकास यात्रा और विकास साझेदारी के अनुभवों पर आधारित होगी।
कर्ज तले नहीं दबाएगा ग्लोबल डेवलमेंट काम्पैक्ट
पीएम मोदी ने कहा कि यह ग्लोबल साउथ के देशों द्वारा स्वयं निर्धारित की गई विकास प्राथमिकताओं से प्रेरित होगा। यह मानव केंद्रित होगा, विकास के लिए बहु-आयामी होगा और मल्टी-सेक्टोरल एप्रोच को बढ़ावा देगा। यह डेवलपमेंट फायनेंस के नाम पर जरूरतमंद देशों को कर्ज तले नहीं दबाएगा। यह पार्टनर देशों के संतुलित और सतत विकास में सहयोग देगा।