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तेल के खेल में अब भारत देगा रूस और ओपेक देशों को पटखनी, रणनीति है तैयार

आपको बता दें कि भारत दुनिया में तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीददार है। भारत की जरूरत का करीब 63 फीसद तेल खाड़ी देशों से ही खरीदा जाता रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sun, 29 Apr 2018 01:01 PM (IST)
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तेल के खेल में अब भारत देगा रूस और ओपेक देशों को पटखनी, रणनीति है तैयार

नई दिल्‍ली [स्‍पेशल डेस्‍क]। अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में लगातार बढ़ रही कच्‍चे तेल की कीमतों ने सरकार के लिए चिंता बढ़ा दी है। कच्‍चे तेल की कीमतों के बढ़ने का सीधा असर घरेलू बाजार पर पड़ता है और देश में महंगाई को बढ़ावा मिलता है। भारत की सबसे बड़ी परेशानी विश्‍व बैंक की उस रिपोर्ट को लेकर भी बनी हुई है जिसमें तेल के दामों में 20 फीसद तेजी की बात कही गई है। यदि ऐसा हुआ तो कच्‍चे माल समेत दूसरी सेवाओं और उत्पादों की कीमतों में भी करीब दो फीसद की तेजी आ जाएगी। आपको बता दें कि भारत दुनिया में तेल का तीसरा सबसे बड़ा खरीददार है। भारत की जरूरत का करीब 63 फीसद तेल खाड़ी देशों से ही खरीदा जाता रहा है। पूरी दुनिया में ईरान, इराक, सऊदी अरब और वेनेजुएला इसके सबसे बड़े आपूर्तिकर्ताओं में शामिल हैं। भारत ने वर्ष 2017 में करीब 44 लाख बैरल प्रति दिन कच्‍चे तेल का आयात किया था।

75 डॉलर प्रति बैरल पहुंची तेल की कीमत

गौरतलब है कि तेल की कीमत 75 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है। जबकि डॉलर के मुकाबले रुपये लगातार कमजोर हो रहा है। यह इस लिहाज से भी अहम हो जाता है क्‍योंकि वर्ष 2014 में तेल की कीमतें 35 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी। लेकिन दूसरी तरफ तेल की कीमतों में आई गिरावट का बुरा असर सऊदी अरब, यूएई समेत दूसरे तेल उत्‍पादक देशों पर पड़ा था। तेल की कीमतों में आई गिरावट से वहां की अर्थव्‍यवस्‍था लड़खड़ा गई थी। यही वजह है कि अब ओपेक समेत रूस तेल के उत्पादन में रणनीतिक तरीके से लगातार गिरावट ला रहे हैं। ये देश तेल की कीमतों को अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में 80 से 100 डॉलर प्रति बैरल तक ले जाना चाहते हैं। इससे बचने के लिए ही भारत अब तेल खरीददार वाले देशों का एक ऐसा गठजोड़ बना रहा है जो अंतरराष्‍टीय बाजार में अपना प्रभाव डालकर तेल की कीमत कम करने में सहायक साबित हो सकेगा। इसके जरिए भारत ने एक नई रणनीति के तहत पेट्रोलियम उत्पादक देशों पर दबाव डालने की कोशिश करेगा।

तेल उत्‍पादक देशों पर दबाव बनाने की कवायद

भारत चाहता है कि किसी तरह से पेट्रोलियम उत्पादक देशों पर ऐसा दबाव बनाया जाए जिससे कि वह लगातार तेलों की कीमतों में इजाफा ना कर सकें। सस्ते तेल के लिए भारत ने गठजोड़ करने का उपाय सोचा है। इस गठजोड़ में भारत का साथ चीन, दक्षिण कोरिया और जापान देंगे। यह सब मिलकर तेल उत्पादक देशों पर दबाव बनाएंगे। आपको यहां पर ये भी बता दें कि कुछ दिन पहले ही अंतरर्राष्ट्रीय ऊर्जा सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेल उत्पादक देशों से कीमतों में बढ़ोतरी न करने की अपील की थी। उनका कहना था कि कहीं ये बढ़ोतरी उनके लिए ही घातक साबित न हो जाए। यह बात काफी हद तक जग जाहिर है कि तेल की वजह से दुनिया में अब तक कई लड़ाइयां हो चुकी हैं।

भारत की रणनीति

भारत ने खाड़ी देशों की जगह अब अमेरिका की शेल ऑयल कंपनी से बड़े सौदे किए हैं। इसके अलावा भारत का पूरा जोर तेल के बड़े रिजर्व भंडार बनाने पर भी है। भारत की रणनीति है कि रिजर्व भंडार के होने पर भारत तेल की कम कीमत होने पर ज्‍यादा खरीदारी करेगा। इसके अलावा भारत ने अमेरिका से 44 अरब डॉलर का करार किया है जिसके तहत अमेरिका रिफाइनरी का निर्माण करेगा। इसके माध्‍यम से भारत को अमेरिका से सस्‍ता कच्‍चा तेल मिलेगा। भारत का मकसद अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों को वास्‍तविक स्‍तर पर बनाए रखने का है जिससे देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़ सके। इसके लिए भारत की तेल कंपनियों को ओपेक देशों से दोबारा वार्ता करने को भी कहा गया है।

सरकार का बढ़ जाएगा तेल पर खर्च

गौरतलब है कि अप्रैल 2018 में अभी तक क्रूड की कीमतों में 5.6 फीसद का इजाफा हुआ है जबकि घरेलू बाजार में पेट्रोल की कीमत 0.5 फीसद व डीजल में 1.4 फीसद का ही इजाफा हुआ है। यही हाल रहा तो चालू वित्त वर्ष में भारत के कच्चा तेल आयात बिल 20 फीसद बढ़कर 105 अरब डॉलर हो सकता है। वहीं बीते वित्त वर्ष के दौरान यह बिल करीब 88 बिलियन डॉलर था। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने कच्चे तेल को औसत रुप से 65 डॉलर प्रति बैरल के आस पास मानते हुए यह अनुमान लगाया है, जबकि अंतरराष्‍ट्रीय बाजार में तेल की कीमत इससे कहीं अधिक पहुंच चुकी है। लिहाजा सरकार का बिल मुमकिन है कि 105 अरब डॉलर को भी पार कर दे।

ओपेक की निंदा कर चुका है अमेरिका

आपको बता दें कि चीन और भारत दुनिया में सबसे बड़े तेल आयातक हैं। जबकि अमेरिका अब भी तेल की खपत वाला सबसे बड़ा देश है। वह प्रतिदिन 19.53 मिलियन बैरल तेल का उपभोग करता है, जो कि वैश्विक खपत का 20 फीसद है। चीन के संदर्भ में यह आंकड़ा 12.02 मिलियन बैरल है और कुल वैश्विक खपत में उसकी हिस्सेदारी 13 फीसद है। तीसरे नंबर पर भारत है, जो 4 फीसद हिस्सेदारी के साथ रोज 4.14 मिलियन बैरल तेल का उपभोग करता है। अमेरिका पहले ही ओपेक और रूस की तेल की कीमत बढ़ाने के लिए निंदा कर चुका है।