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संयुक्त राष्ट्र में भारत ने परोक्ष तौर पर की चीन की मदद, अमेरिका द्वारा लाया गया प्रस्ताव हुआ खारिज

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उइगर मुस्लिमों की स्थिति पर चीन को घेरने की अमेरिका व पश्चिमी देशों की कोशिशों को उस समय करारा झटका लगा जब भारत व यूक्रेन समेत 11 देशों ने मतदान के समय अनुपस्थित रहकर चीन की परोक्ष तौर पर मदद कर दी।

By Jagran NewsEdited By: Amit SinghUpdated: Fri, 07 Oct 2022 04:43 AM (IST)
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चीन के खिलाफ प्रस्ताव से दूर रहा भारत
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उइगर मुस्लिमों की स्थिति पर चीन को घेरने की अमेरिका व पश्चिमी देशों की कोशिशों को उस समय करारा झटका लगा, जब भारत व यूक्रेन समेत 11 देशों ने मतदान के समय अनुपस्थित रहकर चीन की परोक्ष तौर पर मदद कर दी। 47 सदस्यीय परिषद में इस प्रस्ताव का गिरना अमेरिका व पूरी पश्चिमी लाबी के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है।

अमेरिका द्वारा रखा गया प्रस्ताव अस्वीकृत

परिषद के 16 वर्षों के इतिहास में यह सिर्फ दूसरा मौका है, जब अमेरिका द्वारा रखा गया प्रस्ताव अस्वीकृत हुआ है। यह बदलते वैश्विक समीकरणों को भी बता रहा है। सबसे ज्यादा चर्चा भारत के रुख को लेकर है। चीन के साथ रिश्तों की मौजूदा स्थिति को देखते हुए अमेरिका को भारत से समर्थन की उम्मीद थी। भारत का कहना है कि वह यूएनएचआरसी जैसे संस्थानों में किसी देश के खिलाफ वोटिंग नहीं करने की अपनी नीति पर अडिग रहा है। हालांकि, माना यह जा रहा है कि भविष्य में जम्मू-कश्मीर पर वोटिंग की आशंका की काट के तहत भारत ने यह कदम उठाया है।

परोक्ष तौर पर भारत ने की चीन की मदद

भारत ने गुरुवार को चीन की परोक्ष मदद तब की है, जब नई दिल्ली स्थित चीनी दूतावास की तरफ से बताया गया है कि चीन गणराज्य के 73वें स्थापना दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु और पीएम नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पीएम ली कछ्यांग को पत्र लिखा है। मई, 2020 से भारत के पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों के बीच चल रहे सैन्य विवाद को सुलझाने और सैनिकों की वापसी को लेकर सहमति भी हाल ही में बनी है। हालांकि, इस दौरान सुरक्षा परिषद में पाक में छिपे आतंकियों को प्रतिबंधित करने की भारत की कोशिशों को चीन ने वीटो पावर का इस्तेमाल करके नाकाम भी किया है।

यूएन में भारत अपनी नीति पर अडिग

भारत पहले भी कहता रहा है कि यूएनएचआरसी जैसे संगठन में किसी एक देश को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। भारत की यह भी चिंता है कि भविष्य में उसके हितों को सीधे तौर पर प्रभावित करने वाला प्रस्ताव भी परिषद में पेश में किया जा सकता है। जम्मू व कश्मीर का मामला एक अहम उदाहरण हो सकता है। पाकिस्तान व अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक संगठन (ओआइसी) के कई देश इसके सदस्य हैं, जो जम्मू-कश्मीर को लेकर प्रस्ताव ला सकते हैं। वैसे भी इस परिषद में पाकिस्तान आए दिन कश्मीर का मुद्दा उठाता रहता है।

वैश्विक कूटनीति में आ रहा बदलाव

अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा की तरफ से लाए गए प्रस्ताव के पक्ष में 17 और विरोध में 19 वोट पड़े। 11 देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया। गुरुवार को यूएनएचआरसी में वोटिंग वैश्विक कूटनीति में हो रहे बदलाव को भी बताता है। अमेरिका का सबसे करीबी रणनीतिक साझेदार भारत तो अनुपस्थित रहा ही है, यूक्रेन भी वोटिंग से गायब रहा। अमेरिका, ब्रिटेन व कनाडा इस समय रूस के खिलाफ यूक्रेन की मदद करने में जुटे हैं। यह प्रस्ताव चीन में मुस्लिमों की स्थिति की तरफ दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए लाया गया, लेकिन पाकिस्तान, इंडोनेशिया, कतर, यूएई, उज्बेकिस्तान, सूडान, सेनेगल ने इसका विरोध किया।

रिपोर्ट में उठाया गया है उइगर मुसलमानों का मुद्दा

मानवाधिकार परिषद ने अगस्त में उइगरों के उत्पीड़न पर विस्तृत रिपोर्ट जारी की है। इसमें कहा गया है कि उइगर मुसलमानों का उत्पीड़न हो रहा है और उनकी धार्मिक आजादी पूरी तरह से छीन ली गई है। हजारों युवा, बुजुर्गों और बच्चों को विशेष शिविरों में नजरबंदी बना कर रखा गया है। 2017 में भी परिषद की एक रिपोर्ट में चीन को लेकर ऐसी बातें कही गई थीं। प्रस्ताव के पारित होने की स्थिति में चीन में उइगर की स्थिति पर पहले बहस होती। आगे जाकर चीन के खिलाफ कार्रवाई का रास्ता खुल जाता। पारित प्रस्ताव के आधार पर चीन पर प्रतिबंध लगाया जा सकता था।

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