सोनचिरैया के संरक्षण में भारत अपनाएगा UAE का मॉडल, दोनों देशों के बीच हुए करार पर तेजी से शुरू हुआ काम
देश में सोनचिरैया के संरक्षण को लेकर बड़े पैमाने पर काम हो रहा है। इसके संरक्षण के लिए संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में होउबारा के के संरक्षण को लेकर अपनाई गई तकनीक अपनायी जा रही है। आने वाले सालों में देश में सोनचिरैया की संख्या कई गुना बढ़ सकती है।
By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Thu, 20 Apr 2023 11:07 PM (IST)
अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। विलुप्त होने के कगार पर खड़ी सोनचिरैया (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) की आबादी आने वाले दिनों में यदि तेजी से बढ़ते हुए दिखे तो चौंकिएगा नहीं। देश में इसे लेकर बड़े स्तर पर काम शुरू हो गया है। इस पहल को शुरुआती स्तर पर बड़ी सफलता भी मिली है, जिसमें इनके संरक्षण में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में होउबारा (यह सोनचिरैया जैसा ही पक्षी है लेकिन उससे छोटा होता है) के संरक्षण को लेकर अपनाई गई तकनीक अपनायी जा रही है।
अब तक करीब 26 सोनचिरैया ले चुकी है जन्म
माना जा रहा है कि यह पहल सफल हुई, तो आने वाले सालों में देश में सोनचिरैया की संख्या कई गुना बढ़ सकती है। मौजूदा समय में इनकी संख्या 100- 150 के बीच ही है। सोनचिरैया के संरक्षण की इस मुहिम में उत्साह का यह संचार तब हुआ है, जब इस अभियान को अपने आरंभिक चरण में बड़ी सफलता मिली है, जिसमें अब तक करीब 26 सोनचिरैया जन्म ले चुकी है। इनमें से हाल ही में करीब नौ ऐसे सोनचिरैया के बच्चे भी पैदा हुए है, जिन्हें पालतू सोनचिरैया के अंडों से विकसित किया गया है।
वैज्ञानिक मान रहे हैं बड़ी उपलब्धि
सोनचिरैया के संरक्षण में जुटे वैज्ञानिक इस अभियान का बड़ी उपलब्धि मान रहे है। यह इसलिए है क्योंकि अब तक जंगल से सोनचिरैया के अंडों को लाकर उन्हें ब्रीडिंग सेंटर में अनुकूल तापमान देकर विकसित किया जाता था। पहली बार पालतू सोनचिरैया के अंडों से बच्चे निकले है। खासबात यह है कि यूएई को होउबारा को लेकर भी बड़ी सफलता मिली है जहां मौजूदा समय में ब्रीडिंग सेंटर के जरिए छह लाख से ज्यादा होउबारा तैयार किए जा चुके है। इनमें से करीब चार लाख को व्यस्त होने के बाद जंगल में भी छोड़ा जा चुका है।वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, वन्यजीव संस्थान की मदद से फिलहाल राजस्थान के जैसलमेर में खोले गए दो ब्रीडिग सेंटर में यूएई की तकनीक पर काम शुरू किया गया है। इस दौरान यूएई से इस क्षेत्र में किए अनुसंधान की भी मदद ली जा रही है। इसके साथ ही विशेषज्ञों की टीम को कई बार यूएई के अबूधाबी में स्थित इस सेंटर को देखने के लिए भी भेजा जा चुका है। एक सितंबर 2022 को दोनों देशों के बीच हुई इस समझौते के बाद 28 सितंबर 2022 को खुद वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव भी इस सेंटर को देखने गए थे।
विशेषज्ञों के मुताबिक, इस पहल से सोनचिरैया के एक भी अंडे खराब नहीं जाते है। वैसे भी सोनचिरैया की आबादी घटने के पीछे जो बड़ी वजह थी, वह यह थी कि जंगल में उनके ज्यादातर अंडे नष्ट हो जाते थे। उन्हें जंगल में घूमने वाले पशु नष्ट कर देते थे। ऐसे में उनकी संख्या ही नहीं बढ़ पाती थी।
मंत्रालय से जुडे वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक जैसलमेर के बाद देश में उन सभी हिस्सों में सोनचिरैया के ब्रीडिंग सेंटर खोलने की भी तैयारी है, जहां मौजूदा समय में सोनचिरैया पायी जाती है या फिर उस क्षेत्र उनका पुराना रहवास रहा है। इनमें गुजरात का कच्छ, महाराष्ट्र का सोलापुर, कर्नाटक का बेल्लारी और आंध्र प्रदेश का कूरनूल क्षेत्र शामिल है। इनमें क्षेत्रों में 2017-18 में हुई इनकी अंतिम गणना में दस से अधिक सोनचिरैया पायी गई थी।
मंत्रालय पहले से ही इनके संरक्षण को लेकर एक एक्शन प्लान पर काम कर रहा है, जिसमें इनके रहवासों को संरक्षित करना शामिल है।