Zorawar Tank: चीन की चुनौती का जवाब देने के लिए सेना ने बनाया लाइट टैंक 'जोरावर', ये हैं उसकी प्रमुख खासियतें
सैन्य चुनौतियों के साथ भविष्य के हाइटेक युद्ध के खतरों के लिए सेना को पूरी तरह तैयार करने की इस पहल के बारे में रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि लाइट वेट टैंक जोरावर किसी भी सैन्य आपरेशनल जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा।
By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Fri, 26 Aug 2022 09:15 PM (IST)
संजय मिश्र, नई दिल्ली। पूर्वी लद्दाख में सीमा पर चीन के साथ सैन्य टकराव के लंबे दौर और भविष्य के युद्ध की बदलती प्रकृतियों के मद्देनजर भारतीय सेना अपने बख्तरबंद विंग के आधुनिकीकरण को गति दे रही है। इसके चलते पूरी तरह से स्वदेश में विकसित लाइट टैंक 'जोरावर' को सेना में शामिल करने की प्रक्रिया तेज होगी।
बीते दो सालों से LAC पर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चीन के साथ चल रहे टकराव के मद्देनजर सेना को अपने विरोधी पर आपरेशनल बढ़त हासिल करने के लिए हल्के टैंकों की जरूरत महसूस हो रही है। इसी लिहाज से 'जोरावर' को उच्च ऊचाई वांले पहाड़ी क्षेत्रों, सीमांत इलाकों से लेकर द्वीप क्षेत्रों तक अलग-अलग इलाकों में तैनात करने के लिए डिजाइन किया गया है। इतना ही नहीं सेना भविष्य की जंग के लिए अपने बख्तरबंद वाहनों के आधुनिकीकरण से लेकर नए हथियार के रूप में झुंड ड्रोन के साथ-साथ काउंटर ड्रोन सिस्टम को भी शामिल कर रही है।
कठिन भौगोलिक इलाकों में ले जाना सुगम
उत्तरी और पश्चिमी सीमा पर मौजूदा सैन्य चुनौतियों के साथ भविष्य के हाइटेक युद्ध के खतरों के लिए सेना को पूरी तरह तैयार करने की इस पहल के बारे में रक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि लाइट वेट टैंक जोरावर किसी भी सैन्य आपरेशनल जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा। हल्के होने के कारण इसे कठिन भौगोलिक इलाकों में कम समय में ले जाना ज्यादा सुलभ होगा।
खास बात यह है कि जोरावर लाइट टैंक होने के बावजूद दुश्मन पर निशाना साधने में लगभग भारी टैंक की क्षमता के समान होगा। पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ टकराव की ओर इशारा करते हुए सूत्र ने कहा कि उत्तरी सीमाओं पर बढ़ी हुई चुनौती का यह खतरा निकट भविष्य में भी बना रह सकता है। चीन ने बड़ी संख्या में अपनी सेना में अत्याधुनिक हथियारों को शामिल किया है और इसमें लाइट टैंक भी शामिल हैं। ऐसे में जोरावर जैसा टैंक बेहद कारगर होगा।
रक्षा मंत्रालय की रक्षा खरीद परिषद अगले महीने जोरावर के लिए स्वीकृति की आवश्यकता (AON) को मंजूरी देगी। वैसे रक्षा मंत्रालय इस पर अपनी सैद्धांतिक मंजूरी पहले ही दे चुका है।
यह है खास - मेक-इन-इंडिया टैंक जोरावर का वजन लगभग 25 टन है- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन एकीकरण, एक सक्रिय सुरक्षा प्रणाली -टैंक में मिसाइल सिस्टम और मुख्य तोपों सहित अन्य हथियार प्रणालियां भी
2020 में हुई थी जरूरत महसूस सेना को भारी व मीडियम रेंज टैंक के रहते हुए भी हल्के टैंकों की जरूरत का अहसास तब हुआ जब 2020 में चीनी सैनिकों ने पैंगोंग त्सो झील के उत्तर की ओर बढ़ना शुरू किया तो भारतीय सेना ने पैंगोंग त्सो के दक्षिण में 15000 फीट की ऊंचाइयों की कुछ चोटियों पर कब्जा जमाकर चीनी सेना को चौंका दिया। इस आपरेशन के दौरान सेना ने अपने टी-72 और टी-90 टैंकों को ऊंचाइयों पर ले जाकर तैनात किया था।
झुंड ड्रोन सिस्टम को भी भारतीय सेना अपने सैन्य बेड़े का बना रही हिस्साभारतीय सेना के रणनीतिक कदम के इस दांव ने चीनी सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर बातचीत की टेबल पर आने के लिए बाध्य किया। इसके साथ ही सेना भारतीय कंपनियों से आपातकालीन खरीद के तहत सामरिक ड्रोन और झुंड ड्रोन सिस्टम को भी तेजी से अपने आधुनिक सैन्य बेड़े का हिस्सा बना रही है।
इस दिशा में प्रयोग और संचालन प्रक्रिया का दौर गति पकड़ चुका है। जहां तक टैंकों की युद्ध में भूमिका का सवाल है तो भारतीय सेना ने अतीत में कई युद्ध हल्के टैंकों का सफल प्रयोग किया है। द्वितीय विश्व युद्ध में कोहिमा की लड़ाई में 254 भारतीय टैंक ब्रिगेड के स्टुअर्ट टैंकों की तैनाती हुई थी।
नौशेरा, झंगर, राजौरी के साथ भारत-पाक युद्ध में 1947-48 में जोजिला में भी यह शामिल था। एएमएक्स-13 टैंक 1962 में चुशुल और बोमडिला में और 1965 में चांब में तैनात किए गए थे। पीटी-76 प्रकाश टैंक 1971 में सफलतापूर्वक तैनात किए गए थे और यह टैंक ढाका की सड़कों पर दौड़ में अग्रणी थे।