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भारतीय सेना ने मनाया केपांग ला दिवस, 1962 के भारत-चीन युद्ध में सर्वोच्च बलिदान देने वाले नायकों को दी श्रद्धांजलि

भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित केपांग ला रणनीतिक रूप से बेहद अहम है। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान सियांग घाटी में स्थित गेलिंग के ग्रामीणों ने भारतीय सेना की मदद की थी। यही वजह है कि केपांग ला भारतीय सैनिकों और ग्रामीणों के बलिदान का साझा प्रतीक है। हर साल भारतीय सेना यहां अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले नायकों के सम्मान में केपांग दिवस मनाती है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Mon, 18 Nov 2024 03:47 PM (IST)
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सेना और ग्रामीणों ने अरुणाचल प्रदेश के गेलिंग में केपांग दिवस मनाया। (फोटो- @airnewsalerts)
पीटीआई, ईटानगर। भारतीय सेना ने अरुणाचल प्रदेश के ऊपरी सियांग जिले गेलिंग में केपांग दिवस मनाया। इस दौरान भारतीय सेना की स्पीयर कोर ने 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान सर्वोच्च बलिदान देने वाले बहादुरों को श्रद्धांजलि दी।

सोमवार को एक विज्ञप्ति में सेना ने बताया कि यह दिवस रविवार को चीन के साथ युद्ध के दौरान भारतीय सेना के साथ मजबूती से खड़े रहने वाले ग्रामीणों की याद में मनाया गया। इन ग्रामीणों की वीरगाथा को भी याद किया गया। सियांग घाटी में केपांग ला दर्रा भारत की शौर्य विरासत का अभिन्न हिस्सा है। केपांग ला भारतीय सैनिकों और ग्रामीणों के बलिदान का साझा प्रतीक है।

गेलिंग मठ में प्रार्थना भी की गई

शहीदों को पुष्पांजलि और गार्ड ऑफ ऑनर दिया गया। इसके आलावा सेना और ग्रामीणों के बीच पवित्र बंधन का प्रतीक ऐतिहासिक गेलिंग मठ में प्रार्थना भी की गई। सेना ने उन ग्रामीणों के प्रति भी आभार व्यक्त किया, जिन्होंने अपने पूर्वजों के साहस और एकता को पहचाना और भारतीय सेना के साथ खड़े रहे हैं।

कार्यक्रम में अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) तूतिंग, स्कूली बच्चे और स्थानीय लोगों ने भाग लिया। इस दौरान लोगों ने सियांग घाटी की वीरता, एकता और सांस्कृतिक विरासत की गाथा और शौर्य को देखा।

कहां पर हैं केपांग ला

केपांग ला वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर भारत-तिब्बत सीमा पर एक अहम दर्रा है। खास बात यह है कि केपांग ला रणनीतिक स्थान यारलुंग त्सांगपो के मार्ग के नजदीक स्थित है। केपांग ला का अरुणाचल प्रदेश के लोगों के दिलों में एक विशेष स्थान है। यारलुंग त्सांगपो को असम में ब्रह्मपुत्र और अरुणाचल प्रदेश में सियांग के नाम से जाना जाता है। यह नदी देश की सीमाओं की रक्षा करने वाली भारतीय सेना के कई वीर बलिदानियों के शौर्य और पराक्रम की गवाह है।

ग्रामीणों ने दी थी पीएलए की सूचना

1962 में सियांग घाटी के लोगों और भारतीय सैनिकों ने अद्भुत पराक्रम का प्रदर्शन किया था। यहां गेलिंग के ग्रामीणों ने न्यौगोंग नदी के पास चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों के पैरों के निशान देखे। ग्रामीणों की सूचना पर भारतीय सेना अलर्ट हुई। चीनी सेना से झड़प में आठ भारतीय सैनिकों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। बलिदान देने वाले सैनिकों में 2 मद्रास रेजिमेंट के सूबेदार शेख सुबानी, हवलदार बी रामलिंगा जी, सिपाही मुर्री राजा, अप्पा राव और एलियास शामिल थे।

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