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बम के हमले कहीं ज्यादा खतरनाक होता है केमिकल अटैक, प्रभावी तरीके से रोक सकेगी सेना

रासायनिक हमले की आशंका के मद्देनजर भारतीय सेना को इससे बचाव के लिए सूट-5 मुहैया करवा दिया गया है। यूं तो रासायनिक हथियार का प्रयोग पूरी दुनिया में प्रतिबंधित है, फिर भी इसका उपयोग हमले के रूप में किया जा चुका है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 02 Jan 2019 06:48 AM (IST)
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बम के हमले कहीं ज्यादा खतरनाक होता है केमिकल अटैक, प्रभावी तरीके से रोक सकेगी सेना
ग्वालियर [वरूण शर्मा]। भारतीय सेना के पास ग्वालियर के रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीआरडीई) की ओर से ईजाद 50 हजार से ज्यादा न्यूक्लियर बायोलॉजिकल केमिकल (एनबीसी) सूट-5 पहुंच गए हैं। डीआरडीई ने इसी साल इस सूट का यह बल्क ऑर्डर पूरा किया है। इन सभी सूटों का क्वालिटी टेस्ट डीआरडीई ने किया है जिन्हें 80 पैरामीटर से गुजारा गया है। फरवरी 2018 में एनबीसी मार्क-5 सूट को तैयार करने वाले डीआरडीई ने इस सूट को भारतीय सेना की विभिन्न इकाईयों को प्रदान किया है। 50 हजार एनबीसी सूट से लैस भारतीय सेना अब जैविक और रासायनिक हमलों को विफल बनाने में ताकतवर हो चुकी है।

क्या है एनबीसी सूट मार्क-5

एनबीसी सूट मार्क-5 का विकास भारतीय सेना एवं सशस्त्र बलों के जवानों को जैविक एवं रासायनिक हमले की स्थिति में सुरक्षा प्रदान करने के लिए ग्वालियर स्थित डीआरडीई ने किया है। यह सूट वर्तमान में मौजूद अन्य विदेशी सूटों की तुलना में सस्ता, हल्का और प्रभावी है। इस सूट को पहले जर्मनी से आयात कराया जाता था।

सिर्फ शुद्घ हवा को अंदर आने देता है सूट

एनबीसी मार्क-5 सूट में दो कपड़ों के बीच एक परत में सक्रिया स्फैरिकल कार्बन के कण कोटिंग किए हुए होते हैं। इन कणों को कपड़े में एक विशेष तकनीक के द्वारा चिपकाया जाता है। कार्बन के यह कण रासायनिक एवं जैविक अभिकारकों से जवान की रक्षा करते हैं। इस सूट में जैकेट, हुड, पैंट आपस में जुड़े होते हैं। चेहरे की सुरक्षा के लिए विशेष प्रकार का मास्क प्रयोग में लाया जाता है। मास्क में लगा कैनिस्टर विशेष है जो विषैली गैसों को अवशोषित कर लेता है।

हर सूट के 82 टेस्ट कर रहा डीआरडीई

एनबीसी मार्क-5 सूट को ट्रांसफर ऑफ टेक्नोलॉजी के आधार पर कोयंबटूर और सिलवासा की उत्पादक कंपनियों को दिया गया है। उनके यहां से डीआरडीई की टेक्नोलॉजी के आधार पर सूट तैयार करके दिया जाता है और इसके बाद सेना में सप्लाई से पहले डीआरडीई इस पर 82 तरह के टेस्ट करता है। यह टेस्ट ओके होने के बाद ही उस सूट को सेना को दिया जाता है।

तकनीक और प्रदर्शन दोनों बेहतर 

एनबीसी सूट मार्क-5 तकनीक और प्रदर्शन दोनों में बेहतर है। यही कारण है कि तकनीक तैयार होने के बाद ही भारतीय सेना के लिए 50 हजार से ज्यादा एनबीसी सूट का ऑर्डर पूरा किया है। यह सूट अपने पूर्व संस्करण मार्क-4 की तुलना में हल्का एवं प्रभावी है। यह तरल एवं गैस में घातक रसायनों से 24 घंटे तक बचाव प्रदान करने में सक्षम है। यह सूट माइनस 5 डिग्री से प्लस 55 डिग्री तक तापमान में कार्य करता है।

केमिकल हमलों पर नजर

रासायनिक हथियारों को इसलिए भी खतरनाक मानें जाते हैं क्‍योंकि इनकी मारक क्षमता दूसरे हथियारों की तुलना में अधिक होती है। इसकी चपेट में आने वालों में ज्‍यादातर आम जनता ही होती है। यही वजह है कि इन्‍हें प्रतिबंधित किया गया है। इसके बाद भी इस तरह के हथियारों का उपयोग सीरिया समेत कुछ दूसरी जगहों पर भी देखने को मिला है। रासायनिक हथियारों को वेपन्स ऑफ मास डिस्क्ट्रक्शन यानी भयंकर तबाही मचा देने की क्षमता रखने वाले हथियारों की श्रेणी में रखा जाता है। इस श्रेणी में रेडियोलॉजिकल, जैविक और परमाणु हथियार भी शामिल हैं। इन सबमें से रासायनिक हथियारों का सबसे ज्‍यादा इस्तेमाल होता है। तकनीकी भाषा में इन्‍हें पुअर मेन्स वेपन भी कहा जाता है। इसकी वजह ये है कि इनका रखरखाव और इस्‍तेमाल दोनों ही आसान होता है। रासायनिक हथियारों की तुलना में जैविक हथियारों का इस्‍तेमाल अब तक न के ही बराबर देखा या सुना गया है। युद्ध के समय तो इनका कोई जिक्र नहीं है।  

रासायनिक हमलों में क्‍लोरीन का इस्‍तेमाल 

रायायनिक हमलों की बात की जाए तो बीते कुछ समय में क्लोरीन गैस का काफी इस्तेमाल किया गया है। इसका इस्‍तेमाल वॉटर फिल्टरेशन प्लांट में होता है। इसे बड़े पैमाने पर तैयार किया जाता है और सिलिंडर में ट्रांसपोर्ट किया जाता है। इस गैस का पूरी दुनिया में आम इस्तेमाल होता है। यही वजह है कि इसका रासायनिक हमले के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। पिछले वर्ष सीरिया में इसी तरह के हमलों में कई लोगों की जान गई थी। 

 

क्‍लोरीन से शुरू हुआ था रासायनिक हथियारों का सफर

सायनिक पदार्थों को आधुनिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का सिलसिला 100 साल पहले शुरू हुआ। इसकी शुरुआत क्लोरीन से हुई थी मगर इन 100 सालों में बेहद घातक केमिकल वेपन तैयार हो चुके हैं। क्लोरीन सबसे पहला रासायनिक हथियार था। इसकी वजह से इंसान का दम घुट जाता है और उसकी तड़पकर मौत हो जाती है। पहली बार 1915 में इसका इस्तेमाल किया गया था। इसके बाद मस्टर्ड गैस आई। इससे शरीर में घाव बन जाता है। इसके बाद में नाजियों ने कीटनाशकों से नर्व एजेंट बनाए, जिसका उन्‍होंने भरपूर इस्‍तेमाल किया और हजारों की जानें ली।  1984 से लेकर 1988 तक ईरान-इराक युद्ध मे नर्व एजेंट जमकर इस्तेमाल हुए जो कि नर्वस सिस्टम को ठप कर देते हैं। इराकी कुर्दिस्तान के हलब्जा में इसकी वजह से एक ही दिन में 5000 लोगों की मौत हुई थी। इसके अलावा 1995 में जापान के ओम शिनरिक्यो संप्रदाय के सदस्यों ने सरीन नर्व गैस जैसे एक रासायनिक पदार्थ से तोक्यो सबसे सिस्टम पर हमला किया था, जिसमें 13 यात्रियों की मौत हो गई थी और 54 जख्‍मी हो गए थे।

OPCW का गठन

रासायनिक हथियारों के खतरे को देखते हुए साल 1997 में ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपन्स (OPCW) का गठन हुआ था, जिसका काम रासायनिक हथियारों को खत्म करने की दिशा में काम करना है। यह संगठन संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करता है और वर्तमान में इसके 193 देश इसके सदस्य है, जिनमें सीरिया भी शामिल है। किसी देश के पास इस तरह के रासायनिक हथियारों का शक होने पर ओपीसीडब्ल्यू उसकी जांच करवा सकता है। वर्ष 2013 में सीरिया इसमें शामिल हुआ था। ओपीसीडब्ल्यू इस संबंध में यूएन को जानकारी देता है। इसके आगे की कार्रवाई की जिम्‍मेदारी यूएन की ही होती है। यूएन इस तरह के हथियार साबित होने पर अमुक देश पर प्रतिबंध लगाने से लेकर सैन्य कार्रवाई तक का निर्णय ले सकता है। आपको यहां पर बता दें कि परमाणु, रासायनिक और जैविक हथियारों को इस्तेमाल न करने को लेकर अलग-अलग करार हैं और कुछ देशों ने इन पर हस्ताक्षर किए हैं तो कुछ ने नहीं।