National Ayurveda Day: भारतीय आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति के साथ अनेक बीमारियों में कारगर
National Ayurveda Day भारतीय आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है। लेकिन भारत में अब तक इसका यथोचित विकास नहीं हो पाया है। लिहाजा संबंधित शोधकार्यो को अंजाम देते हुए अनेक प्रकार की बीमारियों का इलाज इससे संभव बनाया जा सकता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 02 Nov 2021 10:10 AM (IST)
निरंकार सिंह। National Ayurveda Day राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस हर साल धन्वंतरी जयंती या धनतेरस के दिन मनाया जाता है। वर्ष 2016 में आयुष मंत्रलय द्वारा इसकी शुरूआत की गई थी। तब से हर साल धन्वंतरि जयंती के दिन आयुर्वेद दिवस मनाया जा रहा है। इसका उद्देश्य आयुर्वेद क्षेत्र से जुड़े हितधारकों और उद्यमियों को कारोबार के नए अवसरों के प्रति जागरूक करना है।
आयुर्वेद दुनिया की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है और इसका प्रादुर्भाव भारत में ही हुआ था, पर यह आज बहुत पिछड़ा हुआ है। हम अपने प्राचीन ज्ञान से ही संतुष्ट हैं और उसकी डींगे हांकते रहते हैं, लेकिन उसमें कोई नया अनुसंधान और विकास नहीं करते हैं। मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद आयुर्वेद और अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों के लिए एक अलग ‘आयुष मंत्रलय’ बनाकर एक नई शुरूआत जरूर की है, लेकिन अभी इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना शेष है।
आज से लगभग दो हजार वर्ष पहले लिखी गई चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टांग हृदयम नामक तीन प्राचीन किताबों को आयुर्वेद का प्रमुख ग्रंथ माना जाता है। आयुर्वेदिक चिकित्सा औषधीय पौधों, जड़ी-बूटियों और अन्य प्राकृतिक तत्वों पर आधारित है। इसलिए इसका शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। यह बीमारी की जड़ पर वार करती है। एलोपैथी के मुकाबले आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति सस्ती है, क्योंकि यह हानिकारक रसायनों से मुक्त है। आयुर्वेद की अधिकतर दवाओं को घर में ही तैयार किया जा सकता है। योग भी आयुर्वेद का एक बड़ा भाग है। यह पद्धति शरीर के साथ ही मन पर भी काम करती है। लोग अपनी जीवनशैली में मामूली बदलाव करके आयुर्वेदिक चिकित्सा से खुद को ठीक कर सकते हैं। पिछले कुछ वर्षो के दौरान दुनियाभर के चिकित्सा विज्ञानियों की आयुर्वेद में रूचि बढ़ी है। आयुर्वेद में प्रकृति की एक अनूठी अवधारणा है। हमारी प्रकृति हमारे जीवन के प्रारंभिक चरण में बनती है और बाद में इसे बदला नहीं जा सकता।
आयुष मंत्रलय ने अपने अनुसंधान संगठनों के माध्यम से आयुर्वेद के द्वारा कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक आदि की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य इन बीमारियों की रोकथाम और शीघ्र निदान, जटिलताओं को कम करने के साथ आयुर्वेद के माध्यम से दवा निर्भरता को कम करना है। कैंसर पर विशेष ध्यान के साथ ही पारंपरिक चिकित्सा पर एक भारत-अमेरिका कार्यशाला नई दिल्ली में मार्च 2016 में आयोजित की गई। संबंधित विशेषज्ञों द्वारा व्यापक विचार-विमर्श के बाद अनुसंधान के लिए योजना बनाई गई। अश्वगंधा, शतावरी, गुडूची, आमलकी जैसी कई जड़ी-बूटियों में प्रसिद्ध आयुर्वेदिक रसायन हैं जो कि शोध के बाद प्रतिरक्षा बढ़ाने में प्रमाणित साबित हुए हैं। ये दवाएं बेहतर और सुरक्षित प्रतिरक्षा दवाओं की पेशकश कर सकती हैं और गैर-संचारी रोगों में उचित रूप से उपयोग मे लाई जा सकती हैं। आज शोध के बाद आयुर्वेदिक उपचार पर इस तरह की अनेक वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में इसकी उपयोगिता का पता चलता है।
आयुर्वेद के अत्यंत प्राचीन चिकित्सा पद्धति होने का मतलब यह नहीं है कि यह आज के वैज्ञानिक मापदंडों पर खरी नहीं उतर सकती। तीन हजार वर्ष पूर्व जो नीम का वृक्ष त्वचा के रोगों में प्रयुक्त होता था, आज सीएसआइआर ने परीक्षण कर प्रमाणित किया है कि इसमें एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल आदि गुण पाए गए हैं जो कि त्वचा के रोगों को दूर करने के लिए आवश्यक होते हैं। आज ऐसी खोज हो रही है जिनमें आयुर्वेद में वर्णित औषधियों के प्रभावों को आधुनिक वैज्ञानिक पद्धतियों से पुनस्र्थापित किया जा रहा है। आयुष मंत्रलय के अंतर्गत एक स्वायत्त इकाई सेंट्रल काउंसिल फार रिसर्च इन आयुर्वेदिक साइंसेज (सीसीआरएएस) ने हाल ही में मधुमेह के लिए दो आयुर्वेदिक औषधियों का विकास किया है। भारत में परंपरागत आयुर्वेद स्वास्थ्य सेवा का बाजार फिलहाल 24,800 करोड़ रुपये का है और माना जा रहा है कि यह 20 प्रतिशत के हिसाब से बढ़ेगा। आयुष मंत्रलय ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के साथ एक समझौता किया है जो आयुष प्रणाली की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता और ब्राडिंग के मामले में मदद देगा तथा इस प्रणाली के प्रति जागरूकता का प्रसार करेगा। साथ ही यह आयर्वुेदिक उत्पादों के निर्यात में भी मदद करेगा।
बीते दिनों देश के पहले अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आयुर्वेद के पुनरूद्धार के लिए कुछ सुझाव दिए थे। प्रधानमंत्री के अनुसार, ‘देश के आयुर्वेद विशेषज्ञ एलोपैथी जैसी दवाएं तैयार करें जिससे तुरंत राहत मिले और कोई दुष्प्रभाव न हो। कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी फंड का उपयोग आयुर्वेद के क्षेत्र में भी हो। आयुर्वेद के पाठ्यक्रम का पुनर्निर्धारण हो ताकि मानक स्तर कायम हो। आयुर्वेद शिक्षा का प्रत्येक स्तर पूर्ण करने पर सर्टिफिकेट दिया जाए। आयुष व कृषि मंत्रलय किसानों को औषधीय पौधे लगाकर आय बढ़ाने की सलाह दे।’
इसमें कोई संदेह नहीं कि इन सभी सुझावों पर अमल किया जाए तो आयुर्वेद का कायाकल्प हो सकता है। हमारे देश में बड़े-बड़े संस्थान और प्रयोगशालाएं खड़ी कर दी जाती हैं और उनपर करोड़ों रुपयों की धनराशि भी खर्च की जाती है, लेकिन वहां दुनिया को बताने लायक कोई नया उत्पाद या तकनीक का आविष्कार नहीं हो पाता है। शायद अभी तक देश में ऐसा माहौल तैयार करने में पिछली सभी सरकारें विफल ही रही हैं। इसलिए मोदी सरकार को इस ओर विशेष ध्यान देना होगा। यह काम विशेषज्ञों की समिति गठित करके की जा सकती है जो इसकी निगरानी करें।[स्तंभकार]