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1971 में शेख हसीना के परिवार को कत्‍ल कर देने के थे आदेश, मेजर तारा बने थे 'देवदूत'

1971 में भारतीय सेना के जिस बहादुर जवान ने शेख हसीना और उनके परिवार को पाकिस्‍तान की सेना के चंगुल से सुरक्षित रिहा कराया था 46 वर्ष बाद वही शेख हसीना के सामने खड़े थे।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 09 Apr 2017 03:34 PM (IST)
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1971 में शेख हसीना के परिवार को कत्‍ल कर देने के थे आदेश, मेजर तारा बने थे 'देवदूत'

नई दिल्‍ली। प्रधानमंत्री शेख हसीना के साथ बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में मारे गए भारतीय सैनिकों को सम्मानित करने के लिए आयोजित एक समारोह में गुजरे हुए दिन फिर सामने आ गए। शेख हसीना के लिए यह पल काफी भावुक भी था क्‍योंकि उनके सामने वह इंसान खड़ा था जिसने 1971 में उनके पूरे परिवार को सकुशल पाकिस्‍तान की सेना के चंगुल से छुड़ा कर सुरक्षित स्‍थान पर भिजवाया था। उनके इस परिवार में हसीना के पिता और बांग्‍लादेश के सबसे बड़े नेता शेख मुजीबुर रहमान भी शामिल थे। यह शख्‍श कोई और नहीं बल्कि 14 गार्ड के रिटायर्ड कर्नल अशोक तारा थे।

तारा के साथ खिंचवाए फोटो

1971 में मेजर तारा ने ही बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्ररहमान के परिवार को धनमंडी में उस घर से बचाकर निकाला था जहां पाकिस्तानी सैनिकों ने उन्हें कैद कर रखा था। रहमान हसीना के पिता थे। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में शामिल भारतीय नायकों का अभिनंदन करते हुए पीएम मोदी ने उनके योगदानों का स्मरण भी किया। इससे पहले मोदी और हसीना ने मेजर अशोक तारा के साथ फोटो भी खिंचवाए।

तारा को मिली थी बड़ी जिम्‍मेदारी

1971 में बांग्‍लादेश मुक्ति संग्राम में भारत की दखल के बाद मिली जीत के बाद मेजर अशोक तारा को एक बड़ी जिम्‍मेदारी दी गई थी। यह जिम्‍मेदारी थी बांग्‍लादेश के सबसे बड़े नेता शेख मुजीबुर्ररहमान के परिवार को उनके घर से निकालकर सकुशल सुरक्षित जगह पर पहुंचाना। इनमें शेख हसीना भी शामिल थीं। तारा के सामने इस मिशन में सबसे बड़ी मुश्किल यह थी कि रहमान के घर को पाकिस्‍तान के सेना के जवानों ने घेर रखा था। ढाका एयरपोर्ट से महज बीस मिनट की दूरी पर स्थित धनमंडी इलाके में रहमान के परिवार को नजरबंद करके रखा गया था।

रहमान के परिवार को खत्‍म करने के थे निर्देश्‍ा

तारा को यह मिशन अपने तीन जवानों के साथ पूरा करना था। उन्‍होंने अप्रत्‍याशित रूप से इस मिशन में खून की एक बूंद गिराए इसको सफलता से पूरा किया। उन्‍होंने बताया कि वह नहीं जानते थे कि पाकिस्‍तान की सेना भारतीय सेना के समक्ष हार मानते हुए आत्‍मसमर्पण कर चुकी है। वहीं रहमान के घर के बाहर मौजूद जवानों को सख्‍त निर्देश थे कि किसी भी तरह का खतरा होते ही रहमान के पूरे परिवार को खत्‍म कर दिया जाए। ऐसे में तारा ने अपनी जान का जोखिम  उठाते हुए अपने जवानों को सुरक्षित दूरी पर खड़ा कर दिया था और खुद निहत्‍थे पाकिस्‍तानी सैनिकों के समक्ष खड़े हो गए थे। उन जवानों को वह यह बताने में सफल हो पाए कि यदि वह रहमान के परिवार को वहां से सकुशल जाने देते हैं तो सभी पाकिस्‍तानी जवानों की सकुशल घरवापसी सुनिश्चित की  जाएगी।

तारा को दिया 'फ्रेंड ऑफ बांग्‍लादेश' का सम्‍मान

इस घटना के 46 वर्ष बाद रिटायर्ड कर्नल अशोक तारा शनिवार को बांग्‍लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के समक्ष खड़े थे। उन्‍होंने इन पलों का जिक्र करते हुए कहा कि हसीना उन्‍हें अपने समक्ष देखकर काफी खुश थीं। उन्‍होंने वहां मौजूद पीएम मोदी से कहा कि इन्‍होंने ही उनके परिवार को उस मुश्किल घड़ी में सुरक्षित निकाला था। भारतीय सैनिकों ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में अपना जीवनोत्सर्ग कर दिया। इस लडाई में भारतीय सेना का संघर्ष भुलाया नहीं जा सकता। हसीना ने इस मौके पर कर्नल अशोक तारा को 'फ्रेंड ऑफ बांग्‍लादेश' के सम्‍मान से भी नवाजा।

पाकिस्‍तान के 93 हजार जवानों ने किया था आत्‍मसमर्पण

13 दिन तक चली इस लड़ाई में भारत ने 3643 जवानों को खोया था। 13 दिन की इस लड़ाई में भारत ने पाकिस्‍तान के 93 हजार जवानों को बंदी बनाया था और बाद में उनकी सुरक्षित रिहाई तय की थी। इस लड़ाई में पाकिस्‍तान के जनरल नियाजी ने सभी के समक्ष आत्‍मसमर्पण के कागजों पर हस्‍ताक्षर किए थे और अपनी रिवाल्‍वर भारतीय सेना को सौंप दी थी।

युद्धबंदियों की हुई सुरक्षित रिहाई

इस अवसर पर पीएम मोदी ने कहा कि भारतीय सेना ने अपना कर्तव्य निभाने में कभी संकोच नहीं किया और उसने युद्ध की परंपराओं का पालन कर मिसाल कायम की। 1971 के संग्राम के बाद 93,000 युद्धबंदियों को सुरक्षित रिहा किया गया। भारत की मानवीय सद्भावना इस सदी की सबसे बडी घटनाओं में एक है। उन्होंने कहा कि 1971 में पाकिस्‍तान ने बांग्लादेश की पूरी पीढ़ी तथा बांग्लादेश के विचार पर गर्व करने वाले हरेक व्यक्ति को मिटा देने के लिए नरसंहार किया था।

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