रेलवे ने रचा नया कीर्तिमान, पहली बार पांच मालगाड़ी लेकर दौड़ी 'वासुकी', साढ़े तीन किलोमीटर तक थी लंबाई
परिचालन समय को कम करने क्रू-स्टाफ की बचत एवं उपभोक्ताओं को त्वरित डिलीवरी प्रदान करने के उद्देश्य से रेलवे द्वारा लांग हाल मालगाड़ियां चलाई जा रही हैं। इस प्रक्रिया में केवल एक लोको पायलट एक सहायक लोको पायलट एवं एक गार्ड की जरूरत पड़ी।
बिलासपुर, जेएनएन। दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर जोन ने रेल इतिहास में एक नया कीर्तिमान रच दिया है। देश में पहली बार पांच मालगाड़ी (वासुकी) 300 खाली वैगन के साथ पटरी पर दौड़ी। यह मालगाड़ी 3.5 किलोमीटर लंबी थी। शुक्रवार को रायपुर मंडल के भिलाई डी केबिन से बिलासपुर मंडल के कोरबा तक पांच मालगाड़ियों को एक साथ जोड़कर चलाया गया।
परिचालन समय को कम करने, क्रू-स्टाफ की बचत एवं उपभोक्ताओं को त्वरित डिलीवरी प्रदान करने के उद्देश्य से रेलवे द्वारा लांग हाल मालगाड़ियां चलाई जा रही हैं। इस प्रक्रिया में केवल एक लोको पायलट, एक सहायक लोको पायलट एवं एक गार्ड की जरूरत पड़ी। जबकि सामान्य तरीके से एक-एक मालगाड़ी चलाई जाती तो पांच लोको पायलट, पांच सहायक लोको पायलट एवं पांच गार्ड की आवश्यकता होती।
गौरतलब है कि 29 जून 2020 को तीन लोडेड मालगाड़ियों को एक साथ जोड़कर लांग हाल सुपर एनाकोंडा मालगाड़ी का परिचालन किया गया था। वहीं सुपर शेषनाग में एक लोको पायलट, एक सहायक लोको पायलट व एक गार्ड ने कार्य को अंजाम दिया था।
सात घंटे में 224 किमी की दूरी
दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे कोरबा रेलखंड के क्षेत्रीय प्रबंधक मनीष अग्रवाल ने बताया कि वासुकी ने भिलाई डी केबिन से कोरबा स्टेशन तक 224 किलोमीटर की दूरी सात घंटे से भी कम समय में तय की। कोरबा आने के बाद रैक को अलग कर कुसमुंडा व जूनाडीह रेलवे साइडिंग में कोयला लदान के लिए भेज दिया गया।
ऐसे नियंत्रित होते हैं पांच इंजन
एक साथ वासुकी में पांच मालगाड़ियों को जोड़कर एक रैक बनाई गई थी। इसमें पांच इंजन लगे थे। सबसे आगे चलने वाला लीडिंग पावर (इंजन) जिस तरह के एक्शन कर रहा होता है, रिमोट सिस्टम से जुड़े शेष चार लिंक इंजन (रिमोट लोको) भी वही कार्य करते हैं। जबकि पुराने सिस्टम से दो ट्रेन एक साथ जोड़कर चलाने पर आगे वाले लीड इंजन में बैठा क्रू पीछे वाले इंजन के चालक से वाकी टाकी के माध्यम से संपर्क में रहता है। नई तकनीक में बार-बार मैन्युअली सूचनाओं का आदान-प्रदान करने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तकनीक को विशाखापट्टनम की कंपनी लोटस ने बनाया है।