दुश्मन की फौज को लड़ाई से पहले ही बेकार कर देगा भारत का E-Bomb और EMP
इस पूरी लड़ाई के खाके को वैज्ञानिक इलैक्ट्रानिक वारफेयर का नाम देते हैं, जहां निशाने पर दुश्मन की फौज बाद में होती है, पहले उसके संचालन में काम आने वाले इलैक्ट्रानिक डिवाइस होते हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। बदलते दौर में जिस तेजी से रक्षा तकनीक में बदलाव आया है उसको देखते हुए हर देश अपनी सुरक्षा के लिए लगातार बेहतर करने की कोशिशों में लगा हुआ है। अमेरिका, चीन, रूस समेत दुनिया के सभी विकसित देश पहले ही काफी मजबूत स्थिति में है। ऐसे में भारत भी अपनी सुरक्षा के नए आयाम तलाश करने में लगा है। भारत के इस नए आयाम का नाम है ई-बम। यह घातक होने के साथ ही दुश्मन को हमारे सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर देगा। डीआरडीओ इस तकनीक पर काफी लंबे समय से काम कर रहा है। इतना ही नहीं भारत इस तकनीक पर काम करने वाला फिलहाल एशिया का पहला देश है। इसके अलावा अमेरिका में भी इस तकनीक पर काम हो रहा है। इस पूरी लड़ाई के खाके को वैज्ञानिक इलैक्ट्रानिक वारफेयर का नाम देते हैं, जहां निशाने पर दुश्मन की फौज बाद में होती है, पहले उसके संचालन में काम आने वाले इलैक्ट्रानिक डिवाइस होते हैं।
अमेरिका बना रहा चैंप
आपको बता दें कि अमेरिका ने अपने इस हाईटैक वैपन प्रोजेक्ट का नाम चैंप दिया है। इसकी खासियत यह है कि वैपन इंसान को नुकसान पहुंचाए बिना अपना काम करेगा। इसका टारगेट केवल कुछ मशीनें होंगी। दरअसल, यह वही तकनीक है जिस पर भारत भी काम कर रहा है। इस हाईटेक डिफेंस सिस्टम का नाम इलैक्ट्रोमैगनेटिक पल्स वैपन सिस्टम है। यह हथियार भविष्य में युद्ध की तस्वीर को पूरी तरह से बदल कर रख देगा।
कैसे करेगा काम
इसमें एक ड्रान टाइप वैपन खास इमारतों के ऊपर से गुजरता हुआ एक मैगनेटिक फील्ड बनाता है। इसके सहारे एक करंट छोड़ा जाता है जिससे इमारत में रखे सभी इलैक्ट्रोनिक सिस्टम जिसमें कंप्यूटर भी शामिल होता है, काम करना बंद कर देता है। यह वैपन सेना और सरकार की मदद के लिए साबित होने वाली उन तमाम चीजों को पंगु बना देता है जिनसे जानकारी लेकर वह आगे का फैसला करते हैं या अपनी रणनीति बनाते हैं। ईएमपी वैपन सिस्टम वास्तव में सेना और सरकार की मदद कर रहे कंप्यूटर के लिए घातक साबित होता है। यह हवा में रहते हुए ही उन तमाम सिस्टम को पूरी तरह से नाकाम बना देता है जो सेना और सरकार की रणनीति बनाने में सहायक साबित हो सकते हैं। इसको यदि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कंप्यूटर के नाकाम हो जाने के बाद सैटेलाइट से इनका कनेक्शन खत्म हो जाता है।
टूट जाएगा कनेक्शन
इसका सबसे घातक परिणाम यह होगा कि सैटेलाइट से कनेक्शन टूट जाने की वजह से सीमा पर चौकसी कर रही सेना का संपर्क भी एक दूसरे से टूट जाएगा। ऐसे में न तो किसी फैसले की जानकारी सुरक्षाबलों तक पहुंचाई जा सकेगी और न ही उनका कोई आपात संदेश ही आ सकेगा। यह किसी भी देश के लिए सबसे घातक होगा। ऐसे वक्त में कोई भी देश अपनी सुरक्षा करने में पूरी तरह से विफल हो जाएगा और उस वक्त यदि उस पर हमला होता है तो वह कुछ नहीं कर पाएगा।
लेजर वेपन से ज्यादा घातक है काली
यह सिर्फ एक प्रोजेक्ट ही नहीं है जो भारत की सुरक्षा के लिए अहम भूमिका निभाएगा। इसके अलावा भारतीय वैज्ञानिक काली नाम की दूसरी तकनीक पर भी काम कर रहा है। काली का अर्थ है किलो एंपेयर लाइनर इंजेक्टर। इस हाईटेक डिफेंस सिस्टम की सबसे बड़ी खासियत है कि यह हमारी तरफ आने वाली किसी भी मिसाइल को पूरी तरह से नाकाम बना देता है। दुश्मन की मिसाइल की पहचान के साथ ही इस सिस्टम से पावरफुल बीम निकलती है जो हमारी तरफ आने वाली मिसाइल के अंदर मौजूद तमाम उपकरणों को फेल कर देती है। काली दरअसल किसी भी दूसरे लेजर वेपन से ज्यादा खतरनाक है। लेजर वेपन और इसमें यही फर्क है कि लेजर वेपन किसी भी मिसाइल में छेद कर उसको तबाह कर देती है, लेकिन काली में यह सब नहीं होता है।
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