Sampurnanand Telescope: उपलब्धियों के अनंत आकाश में 50 वर्ष से जगमगा रहा भारतीय टेलीस्कोप
एरीज के निदेशक प्रो. दीपांकर बनर्जी के अनुसार इस टेलीस्कोप की बुनियाद इतनी मजबूत है कि यह इतने लंबे समय से निरंतर कार्यरत है। जबकि दुनिया में इसके साथ स्थापित कई टेलीस्कोप बंद हो गए हैं। हमारा लक्ष्य है कि यह टेलीस्कोप अगले 50 वर्ष और कार्य करे।
By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalUpdated: Tue, 18 Oct 2022 09:05 AM (IST)
नैनीताल, रमेश चंद्रा। विश्व में बीते 50 वर्ष से अंतरिक्ष के गूढ़ रहस्यों को सुलझाने में डटा है भारत का संपूर्णानंद टेलीस्कोप। बदलती तकनीकी दुनिया में जब इसके समकक्ष स्थापित अधिकांश टेलीस्कोप दम तोड़ चुके हैं तो इसके निरंतर क्रियाशील रहने और अहम शोध-अनुसंधान में भागीदार बने रहने की उपलब्धि और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। आइए सोमवार को इसके 50 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर जानें-समझें और गर्व करें नैनीताल के आर्यभट़ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) नैनीताल में स्थापित 104 सेंटीमीटर व्यास की संपूर्णानंद टेलीस्कोप के बारे में:
पूर्वी जर्मनी से आए थे उपकरण, 15 लाख का खर्च
संपूर्णानंद टेलीस्कोप की स्वर्ण जयंती पर एरीज दो दिवसीय समारोह मना रहा है। यही वह टेलीस्कोप है जिससे भारत की ओर से गामा-रे विस्फोट (जीआरबी) की पहली बार खोज में अहम योगदान दिया गया था। ब्लैक होल की तरह गैलेक्सी के केंद्र में विशालकाय काले छिद्र यानी क्वेजार को वर्ष 1999 में खोजने वाला यह पहला टेलीस्कोप है। खास बात यह है कि 1972 में नैनीताल में स्थापित दुनिया का यह ऐसा पहला टेलीस्कोप है जो आज भी अंतरिक्ष के रहस्यों की खोज की दुनिया में भारत का मान बढ़ा रहा है।
इसलिए पड़ा संपूर्णानंद नाम
-एरीज के वरिष्ठ खगोल विज्ञानी डा. शशिभूषण पांडेय के अनुसार अक्टूबर 1972 में इस दूरबीन को मनोरा पीक नैनीताल में स्थापित किया गया था। पूर्वी जर्मनी से इसके उपकरण आयात किए गए थे और इसके निर्माण में 15 लाख रुपये खर्च आया था। इसे स्थापित करने में उप्र के पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजस्थान के पूर्व राज्यपाल डा. संपूर्णानंद का विशेष योगदान रहा इसलिए इसे संपूर्णानंद टेलीस्कोप नाम दिया गया। 1990 में इसका अपग्रेडेशन किया गया। स्टार क्लस्टर, अरुण (यूरेनस) व शनि ग्रह के बाहरी छल्ले, बायनरी स्टार के साथ अनेक ग्रह-नक्षत्रों के आब्जर्वेशन में संपूर्णानंद दूरबीन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस टेलीस्कोप के माध्यम से पांच अंतरराष्ट्रीय, 60 राष्ट्रीय स्तर के अलावा 400 अन्य शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं।
- 15 लाख रुपये से वर्ष 1972 में नैनीताल की मनोरा चोटी पर यह टेलीस्कोप स्थापित किया गया था
- 1999 में गैलेक्सी में क्वेजार (विशाल काला छिद्र) की खोज करने वाला यह पहला टेलीस्कोप है
- 450 से अधिक राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय शोधपत्र इस टेलीस्कोप के प्रयोग के आधार पर विज्ञानी प्रस्तुत कर चुके हैं