इसरो के खाते में एक और कामयाबी, INSAT-3DR हर 26 मिनट में भेजेगा तस्वीर
मौसम उपग्रह इनसैट 3डीआर के सफलतापूर्वक परीक्षण के साथ ही इसरो के खाते में एक और कामयाबी दर्ज हुई है।
श्रीहरिकोटा। आंध्र प्रदेश के सतीश धवन स्पेस सेंटर से गुरुवार शाम 4.50 बजे रॉकेट GSLV-F5 को लॉन्च किया गया। इसके साथ वेदर सैटेलाइट इनसैट-3डीआर को स्पेस में भेजा गया। ये मॉडर्न सैटेलाइट 36 हजार KM की ऊंचाई से हर 26 मिनट में तस्वीरें भेजेगा और रात में भी मौसम की सटीक जानकारी मिलेगी। इसरो का ये मिशन 4.10 बजे शुरू होना था, लेकिन तकनीकी वजहों से इसमें 40 मिनट की देरी हुई।
पहली बार क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल
गुरुवार को लॉन्च हुए इनसैट-3डीआर का वजन 2,211 किलो है। इसका कंट्रोल कर्नाटक के हासन स्थित इसरो सेंटर के पास होगा।सैटेलाइट को पृथ्वी के आॅर्बिट में पहुंचने में 17 मिनट का समय लगा। पहले इसे 28 अगस्त को स्पेस में भेजा जाना था, लेकिन टेक्निकल इश्यू के चलते देरी हो गई। ये पहला मौका है जब इसरो ने एडवांस्ड स्वदेशी क्रायोजेनिक (क्रायोजेनिक अपर स्टेज) इंजन के जरिए ज्यादा वजनी सैटेलाइट स्पेस में भेजा है। सैटेलाइट लॉन्चर जीएसएलवी-एफ5 की ये चौथी उड़ान है। सैटेलाइट आईएमडी दिल्ली, अहमदाबाद सेंटर को जानकारी भेजेगा। इस मिशन पर 400 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। अगर यह सैटेलाइट विदेश से खरीदकर लॉन्च करवाया जाता तो इससे दोगुना खर्च होता।
INSAT-3DR की खासियत?
इनसैट-3डीआर में 6 चैनल इमेजर और 19 चैनल साउंडर उपकरण लगे हैं। इनके जरिए सैटेलाइट रात में बादलों और धुंध के बीच भी मौसम की सटीक जानकारी देगा। थर्मल इंफ्रारेड बैंड से समुद्र के टेम्परेचर का सही अनुमान लगाया जा सकता है। सैटेलाइट हिंद महासागर के रेडियो मैसेज को पहचानकर कोस्ट गार्ड को फौरन अलर्ट करेगा।जिससे समुद्र में आपदा समय फंसे लोगों तक जल्द मदद पहुंचाई जा सकेगी। इसमें लगे 1,700 वाॅट सौर पैनल के जरिए सैटेलाइट खुद इलेक्ट्रिसिटी बनाएगा।
देश का चौथा मौसम उपग्रह
इनसैट-3डीआर इसरो के द्वारा बनाया गया चौथा वेदर सैटेलाइट है। इससे पहले 2002 में कल्पना-1, 2003 में इनसैट-3ए और 2013 में इनसैट-3डी लॉन्च हो चुके हैं।
क्या है क्रायोजेनिक इंजन?
क्रायोजेनिक इंजन में फ्यूल के तौर पर लिक्विड हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का यूज होता है। यह लिक्विड रॉकेट इंजन की तुलना में बेहतर होता है।भारत छठा ऐसा देश है जिसने क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन डेवलप किया है। इसी इंजन से अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के स्पेस व्हीकल अंतरिक्ष में पहुंचते हैं।क्रायोजेनिक इंजन को जीएसएलवी में तीसरे स्टेज में लगाया गया है। अगले साल चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग में भी इसी इंजन का इस्तेमाल होगा।