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Sardar Vallabhbhai Patel Jayanti 2022: जब हैदराबाद के मुद्दे पर खुलकर सामने आए थे सरदार पटेल से नेहरू के मतभेद

Sardar Patel को देश को एकजुट करने का श्रेय जाता है। इसमें हैदराबाद को भारत में मिलाने की कहानी बड़ी दिलचस्‍प है। टाइम मैगजीन ने हैदराबाद के निजाम को एक समय में दुनिया का सबसे अमीर शख्‍स बताया था।

By Jagran NewsEdited By: Kamal VermaUpdated: Mon, 31 Oct 2022 11:18 AM (IST)
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पटेल के सामने कुछ नहीं कर सके थे हैदराबाद के निजाम
नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। जब जब सरदार पटेल का नाम आता है तो हैदराबाद को भारत में मिलाने की कहानी भी जरूर आती है। इन दोनों को कभी भुलाया ही नहीं जा सकता है। आजाद भारत के दक्षिण में हैदराबाद एक ऐसी रियासत थी, जो क्षेत्रफल में स्‍काटलैंड से बड़ी और आबादी में यूरोप से आगे थी। निजाम की हैसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1934 में टाइम मैगजीन ने उन्‍हें दुनिया का सबसे अमीर इंसान घोषित किया था। हैदराबाद को कैसे भारत में शामिल किया जाए इसको लेकर तत्‍कालीन पीएम पंडित नेहरू और सरदार पटेल में काफी मतभेद भी थे। 

निजाम के पास था दौलत का अंबार

दुनिया का सबसे बड़ा हीरा निजाम के पास था, जिसको वो एक पेपरवेट की तरह इस्‍तेमाल करते थे। ये हीरा 185 कैरेट का था। कोहिनूर हीरा भी हैदराबाद की खान से ही निकला था। निजाम जहां जाते थे, उन्‍हें 21 तोपों की सलामी दी जाती थी। मुस्लिम बहुल होने की वजह से इस रियासत पर उनकी पकड़ थी। अपनी सत्‍ता को बनाए रखने के लिए निजाम भारत में मिलना नहीं चाहते थे।

हैदराबाद को लेकर गंभीर थे पटेल

सरदार पटेल इस बात को लेकर काफी गंभीर थे कि इसका भारत के खिलाफ जाना भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता था। यही वजह थी कि उन्‍होंने इसको भारत में शामिल करने के लिए जी-जान लगा दी थी। हालांकि, इसको देश में शामिल करने के लिए अन्‍य रियासतों के मुकाबले अधिक समय लगा था। पटेल निजाम के अस्तित्‍व को भी जारी नहीं रखना चाहते थे। प्रधानमंत्री पंडित नेहरू और पटेल के बीच इस बात को लेकर मतभेद भी था।

पटेल को नहीं था निजाम पर विश्‍वास 

हैदराबाद के निजाम पर पटेल को कोई विश्‍वास नहीं था। वो पंडित नेहरू को भी इसके लिए आगाह करते थे कि निजाम से सिर्फ धोखा ही मिलेगा। राजमोहन गांधी द्वारा लिखी गई सरदार पटेल की जीवनी में इस बात का जिक्र किया गया है कि नेहरू हैदराबाद में सेना भेजने के हक में नहीं थे। उनका मानना था कि इससे नुकसान होगा। एक अन्‍य किताब द डिस्‍ट्रक्‍शन आफ हैदराबाद में भी इसका जिक्र किया गया है। इसमें लिखा गया है कि नेहरू सैन्‍य कार्रवाई को अंतिम विकल्‍प के रूप में आजमाना चाहते थे। वहीं, पटेल पहली बार में ही इस विकल्‍प का इस्‍तेमाल कर लेना चाहते थे।

बैठक में पटेल और नेहरू के बीच नाराजगी 

व्‍यक्तिगत रूप से नेहरू का निजाम से कोई विरोध नहीं था, लेकिन वो उनकी नीतियों के विरोधी जरूर थे। हैदराबाद को भारत का हिस्‍सा बनाने की कहानी बयां करने वाली किताबों में उस बैठक का जिक्र है, जो पंडित नेहरू ने बुलाई थी। इसमें पटेल भी शामिल थे। ये बैठक उन विकल्‍पों को तलाशने के लिए थी जिससे हैदराबाद को भारत में मिलाया जा सकता था। इसमें रिफार्म कमिश्‍नर के तौर पर वीपी मेनन भी शामिल थे। इस बैठक में नेहरू और पटेल के विचारों में गतिरोध साफतौर पर दिखाई दिया। इसका नतीजा ये हुआ कि पटेल बीच बैठक में ही बाहर आ गए। इसके बाद उनके पीछे-पीछे मेनन भी बैठक से बाहर निकल आए। हालांकि, इस बैठक में हैदराबाद पर सैन्‍य कार्रवाई को मंजूरी दे दी गई। एक इंटरव्‍यू में मेनन ने उसके बाद जो कुछ हुआ उसके बारे में विस्‍तार से बताया है।

जब नेहरू पर गुस्‍साए थे पटेल 

उन्‍होंने कहा था कि पटेल बैठक में जो कुछ हुआ उसको लेकर बेहद गुस्‍से में थे। पंडित नेहरू के शब्‍द उनके मन और मस्तिष्‍क में किसी नश्‍तर की भांति चुभ रहे थे। पटेल और हैदराबाद के बारे में एक बात और बेहद प्रचलित है। जब पटेल जूनागढ़ को भारत में मिलाने की कवायद कर रहे थे, तब हैदराबाद में उनका मजाक बनाया जा रहा था। लेकिन जब पटेल जूनागढ़ रियासत को भारत में मिलाने में सफल हो गए तो पटेल ने हैदराबाद को करारा जवाब दिया था। पटेल ने कहा था कि यदि हैदराबाद नहीं माना तो उसका हाल भी जूनागढ़ की ही तरह होगा।

निजाम के करीबी को पटेल का जवाब 

हैदराबाद को लेकर पटेल ने जो पासा फेंका था, वो पूरी तरह से कामयाब रहा था। हैदराबाद दबाव में था। इस दबाव के चलते निजाम ने अपने सबसे करीब सैयद कासिम रिजवी को पटेल से मुलाकात के लिए दिल्‍ली भेजा था। पटेल ने रिजवी को साफ शब्‍दों में दो विकल्‍प दिए। पहला कि वो चुपचाप भारत में शामिल हो जाएं और दूसरा जनमत संग्रह करवा लिया जाए। दूसरे विकल्‍प पर रिजवी का कहना था कि ये केवल तलवार के बल पर ही हो सकता है। पटेल जानते थे निजाम पाकिस्‍तान को लेकर गंभीर हैं और वहां से मदद की भी उम्‍मीद रखते हैं। इतना ही नहीं, गोपनीय सूचनाओं में यहां तक कहा गया था कि निजाम विदेशों से हथियारों की बड़ी डील करने की फिराक में है, जिसका इस्‍तेमाल वो भारतीय सेना के खिलाफ करना चाहते थे।

निजाम का दांव 

इतना ही नहीं, निजाम ने पुर्तगाल के शासन वाले गोवा से भी समझौता करने का मन बना लिया था। अमेरिका तक से निजाम ने मदद की गुहार लगाई थी। एक किताब स्ट्रेट फ्राम द हार्ट में पूर्व उपसेना प्रमुख जनरल एसके सिन्हा ने लिखा है कि जनरल करियप्‍पा को पटेल ने हैदराबाद में सैन्‍य कार्रवाई करने के लिए सवाल जवाब को बुलाया था। इसके फौरन बाद इस कार्रवाई को लेकर शुरुआत कर दी गई। जब भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी तो पाकिस्‍तान के पीएम लियाकत अली ने एक आपात बैठक बुलाई। इसका मकसद उन विकल्‍पों पर गौर करना था, जिससे हैदराबाद की मदद की जा सके, लेकिन बात नहीं बनी। इतिहास में दर्ज हो चुकी इस घटना के बारे में कुछ किताबों में यहां तक कहा गया है कि लियाकत अली दिल्‍ली पर बम गिराने तक के बारे में सोच रहे थे।

पटेल के सामने झुका निजाम का सिर 

13 सितंबर 1948 को भारतीय सेना हैदराबाद में घुसी थी। उसी दिन पंडित नेहरू ने पटेल को फोन पर कहा कि सेनाध्‍यक्ष जनरल बूचर हैदराबाद में सैन्‍य कार्रवाई को रुकवाना चाहते हैं। वो क्‍या करें। इस पर पटेल ने नेहरू को कहा कि आप भी सो जाइये, मैं भी सोने जा रहा हूं। भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद हैदराबाद के निजाम ने आत्‍मसमर्पण की पेशकश की। फरवरी में पटेल खुद हैदराबाद के एयरपोर्ट पर उतरे, वहां पर निजाम भी मौजूद थे। निजाम ने पटेल के सामने सिर झुकाया और हाथ जोड़ लिए। इसके बाद हैदराबाद भारत में शामिल हो गया।  

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