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राष्ट्रीय ध्वज में पहले अशोक चक्र की जगह थे 8 कमल, जानिए- भारत के नेशनल फ्लैग का इतिहास

22 जुलाई 1947 में भारतीय संविधान सभा की बैठक में सभी भारतवासियों को एक सूत्र में बांधने वाले तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था। राष्ट्रीय ध्वज अंगीकरण दिवस (22 जुलाई) पर योगेंद्र माथुर बता रहे हैं हमारे राष्ट्रीय ध्वज की गौरवगाथा...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 13 Jul 2022 04:22 PM (IST)
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जब हमारा देश ब्रिटिश सरकार की सत्ता से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष कर रहा था
योगेंद्र माथुर। प्रत्येक देश का एक राष्ट्रीय ध्वज होता है और उसकी संरचना का अपना एक विशेष अर्थ होता है। हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा है, जो हमें अपनी जान से भी बढ़कर प्यारा है। इसमें हमारी आशा, अभिलाषा, संकल्प व बलिदान सब कुछ निहित है। इसी तिरंगे से प्रेरणा और शक्ति पाकर आजादी की हर लड़ाई हमनें लड़ी है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास पर यदि हम दृष्टि डालें तो पाएंगे कि भारत के राष्ट्रीय ध्वज की विकास यात्रा में कई महत्वपूर्ण पड़ाव आए हैं। वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज के पहले कई ध्वज बदल चुके हैं।

भारत के राष्ट्रीय ध्वज की सर्वप्रथम कल्पना सन 1906 में कई गई थी। भारत का पहला गैर आधिकारिक ध्वज 7 अगस्त 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के पास बागान चौक (ग्रीन पार्क) में कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। यह ध्वज स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा तैयार किया गया था। इस ध्वज में हरे, पीले व लाल रंग की तीन आड़ी पट्टियाँ थीं। ऊपर की ओर हरी पट्टी में आठ कमल थे और नीचे की लाल पट्टी में सूरज व चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी में "वंदे मातरम" लिखा गया था।

लगभग इसी समय फ्रांस में अपना निर्वासन काल व्यतीत कर रहीं महिला क्रांतिकारी भीकाजी रुस्तम जी कामा द्वाराअपने साथियों के साथ भारत के एक और राष्ट्रीय ध्वज की योजना को मूर्त रूप दिया गया। उनकी योजना के अनुसार ध्वज में तीन रंग थे। आरंभ में केसरिया, मध्य में पीला व अंत में हरा रंग रखा गया। केसरिया भाग में आठ तारे, पीले भाग में नागरलिपि में "वंदे मातरम" एवं हरे भाग में द्वितीया का चंद्र व सूर्य अंकित किये गए थे। यह ध्वज 22 अगस्त 1907 को जर्मनी के स्टटगार्ड में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में फहराया गया था।

सन 1918 के होमरूल आंदोलन ने एक नये राष्ट्रध्वज को जन्म दिया। डॉ. एनी बेसेन्ट, लोकमान्य तिलक व अन्य नेताओं ने, जिस बंगले में वे नजरबंद थे, एक झंडा फहराया। इस ध्वज में पाँच लाल व चार हरे रंग की पट्टियाँ एक के बाद एक क्रमवार थीं। ऊपर बाईं ओर यूनियन जेक तथा दाईं ओर चंद्रमा अंकित था। निचले भाग पर सप्तऋषि मंडल के सात तारों का अंकन था। उस समय भारत में नौ प्रांत थे और यह नौ पट्टियाँ उन्ही की प्रतीक थीं। लाल तथा हरा रंग हिन्दू-मुस्लिम एकता के द्योतक थे।

असहयोग आंदोलन के दौरान एक बार पुन: राष्ट्रीय ध्वज पर विचार की आवश्यकता महसूस की गई। सन 1921 के कांग्रेस के बेजवाड़ा ( वर्तमान विजयवाड़ा ) अधिवेशन में आंध्रप्रदेश के पिंगली वैंकेया नें महात्मा गांधी के सम्मुख एक नए ध्वज की डिजाइन प्रस्तुत की, जिसमें लाल व हरे रंग की दो पट्टियाँ थीं, जो कि हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक मानी गईं। बाद में गांधी जी के कहे अनुसार अन्य धर्मों का सूचक श्वेत रंग भी उसमें सम्मिलित कर लिया गया क्योंकि राष्ट्रीय ध्वज के लिए अत्यंत आवश्यक था कि वह प्रत्येक धर्म तथा वर्ग का प्रतिनिधित्व करता हो।अत: राष्ट्रीय ध्वज का तिरंगा स्वरूप स्वीकार किया गया। इस ध्वज में सबसे ऊपर श्वेत, मध्य में हरी व सबसे नीचे की पट्टी लाल रंग की रखी गई और तीनों पट्टियों पर पूरे आकार का चरखे का चिन्ह अंकित किया गया।

सन 1923 राष्ट्रीय ध्वज के इतिहास में विशेष रूप से स्मरणीय है। इस वर्ष राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान की रक्षा के लिए किये गए जबलपुर व नागपुर के झंडा आंदोलन ने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को देशव्यापी लोकप्रियता प्रदान की तथा साथ ही जनमानस में राष्ट्रीय ध्वज के प्रति श्रद्धा व सम्मान के भाव उतपन्न किए। 31 दिसम्बर 1929 की संध्या व नूतन वर्ष के आगमन की बेला में राष्ट्रीय ध्वज के आरोहण के साथ रावी के तट पर कांग्रेस ने पूर्ण स्वतंत्रता को अपना लक्ष्य बनाया।

चूंकि उपरोक्त राष्ट्रीय ध्वज के रंग सम्प्रदाय के प्रतीक माने गए थे। अत: इस सम्बन्ध में मतभेद बढऩे के कारण बाद में कांग्रेस कार्यसमिति नें राष्ट्रीय ध्वज समिति का गठन कर उसे सर्वमान्य राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने का कार्य सौंपा। इस समिति ने सुझाव प्रस्तुत किया कि ध्वज में तीन रंगों के स्थान पर केवल एक रंग केसरिया रखा जाए तथा ऊपर बाईं ओर कोने में चरखे का चिन्ह अंकित किया जाए। किंतु कांग्रेस कार्यसमिति नें इस सुझाव को अस्वीकृत कर स्वयं अपने ऊपर यह कार्यभार ले लिया।

इस कार्यसमिति नें जो ध्वज तैयार किया, उसमें पूर्व ध्वज में क्रमिक संशोधन कर आड़े आकार में तीन रंग रखे गए। आरंभ में केसरिया, मध्य में श्वेत और अंत में हरा रंग रखा गया। श्वेत रंग की पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का चरखा अंकित किया गया। ध्वज के सम्बन्ध में जो नई परिभाषा की गई उसके अनुसार रंगों को साम्प्रदायिकता के प्रतीक न मानते हुए गुणों का प्रतीक माना गया। केसरिया रंग साहस व त्याग, श्वेत रंग सत्य व शांति और हरा रंग विश्वास व शौर्य का प्रतीक माना गया। चरखा जनता की आशा का प्रतीक माना गया।

वर्ष 1931 तिरंगे के इतिहास का वह महत्वपूर्ण पड़ाव है जब कांग्रेस के कराची अधिवेशन में तिरंगे ध्वज को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किये जाने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया और इसे राष्ट्र ध्वज के रूप में मान्यता मिली। भारत की आजादी की प्रक्रिया के दौरान पूर्व ध्वजों में सकारात्मक बदलाव के साथ राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने हेतु डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक ध्वज समिति का गठन किया गया। इस समिति ने यह निर्णय लिया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के झंडे को कुछ परिवर्तनों के साथ राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया जाए। यह तिरंगा हो और इसके बीच मे अशोक चक्र हो।

सन 1906 के बाद से अनेक रूप, रंग व अर्थ बदलता हुआ हमारे राष्ट्रीय ध्वज का वर्तमान स्वरूप भारत की संविधान सभा द्वारा 22 जुलाई 1947 को अपनाया गया तथा 14 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि को राष्ट्र को सौंपा गया। वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज अनुप्रस्थ तीन रंगों का बना है। इसमें समान अनुपात की तीन आड़ी पट्टियाँ हैं। सबसे ऊपर की पट्टी केसरिया रंग की, मध्य में श्वेत रंग की व अंत में हरे रंग की पट्टी है। बीच की श्वेत पट्टी के मध्य में, जहाँ पहले चरखा था, वहाँ 24 शलाकाओं का गहरे नीले रंग का गोल चक्र है, जिसका स्वरूप सारनाथ स्थित सम्राट अशोक निर्मित सिंह स्तम्भ पर बनें चक्र की भाँति है। इस चक्र का व्यास श्वेत पट्टी की चौड़ाई के बराबर होता है। ध्वज की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है।

राष्ट्रीय ध्वज में प्रयुक्त रंगों व चक्र के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की व्याख्याएँ की गईं हैं।। सर्वमान्य व्याख्या के अनुसार केसरिया रंग शौर्य व त्याग का, श्वेत रंग शांति व सत्य का एवं हरा रंग प्रकृति की सुंदरता व समृद्धि का प्रतीक माना गया है। बौद्ध धर्म के अनुसार चक्र धर्म व न्याय का प्रतीक है। चक्र की शालाकाएँ दिन-रात के 24 घण्टों की प्रतीक हैं जो सक्रियता के द्योतक हैं।

आजादी की लड़ाई के साक्षी राष्ट्रीय ध्वज "तिरंगे" के गौरव, मान-मर्यादा और सम्मान की रक्षा व संरक्षा अत्यंत आवश्यक मानी गई है। जाने-अनजाने में स्वाधीनता के इस महान प्रतीक "तिरंगे" के प्रति अज्ञानतावश अपकार न हो, इसलिए एक राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई है। तिरंगे की प्रतिष्ठा सुरक्षित रखने के उद्देश्य से इस ध्वज संहिता में तात्कालिक आवश्यकताओं को देखते हुए राष्ट्रहित में समय-समय पर संशोधन किये जाते रहे हैं लेकिन तिरंगे के प्रति हमारी आस्था व विश्वास सदैव एक-सा बना रहा है। हम भारतवासी राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को आज स्वतंत्रता दिवस पर शत-शत नमन करते हैं।

(देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लेखक के 500 से अधिक आलेख, लघुकथा, व्यंग्य व हाइकु आदि प्रकाशित हो चुके हैं)