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इशरत मुठभेड़ मामले में अमित शाह को बड़ी राहत

केंद्रीय जांच ब्यूरो [सीबीआइ] ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले के पूरक आरोपपत्र में भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के खासमखास, यूपी के प्रभारी व पार्टी महासचिव अमित शाह का नाम शामिल नहीं किया है। साथ ही मुठभेड़ की साजिश में शामिल खुफिया ब्यूरो [आइबी] के अधिकारियों पर मुकदमे की अनुमति के मामले में विधि मंत्रालय की राय मांगी है।

By Edited By: Updated: Tue, 24 Dec 2013 10:17 PM (IST)
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नई दिल्ली। केंद्रीय जांच ब्यूरो [सीबीआइ] ने इशरत जहां फर्जी मुठभेड़ मामले के पूरक आरोपपत्र में भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के खासमखास, यूपी के प्रभारी व पार्टी महासचिव अमित शाह का नाम शामिल नहीं किया है। साथ ही मुठभेड़ की साजिश में शामिल खुफिया ब्यूरो [आइबी] के अधिकारियों पर मुकदमे की अनुमति के मामले में विधि मंत्रालय की राय मांगी है। हालांकि, सीबीआइ ने आरोपपत्र पर अभी अंतिम फैसला नहीं लिया है।

जांच एजेंसी के वरिष्ठ अधिकारियों ने स्पष्ट कर दिया है कि अमित शाह को आरोपी बनाने के लिए एक भी कानूनी रूप से ठोस सुबूत उपलब्ध नहीं है। मामले में मुख्य आरोपी पूर्व आइजी डीजी वंजारा ने आरोप लगाया था कि पूर्व मंत्री ने उन्हें व अन्य पुलिस अफसरों को धोखा दिया है। सीबीआइ ने इन सभी पुलिस अफसरों पर विभिन्न मुठभेड़ मामलों में केस दर्ज किया है। हाल में सीबीआइ ने शाह से इशरत जहां मुठभेड़ मामले में पूछताछ की थी। सूत्रों के मुताबिक पूछताछ के दौरान शाह से वंजारा के इस्तीफे में लगाए गए आरोपों के बारे में सवाल-जवाब किए गए थे। आरोप लगाया गया था कि गुजरात सरकार ने हर पुलिस कार्रवाई में निर्देश देने के साथ ही निगरानी भी की। जांच एजेंसी एक भी ऐसा सुबूत नहंी जुटा पाई, जिससे शाह की मुठभेड़ या साजिश में सीधी संलिप्तता की पुष्टि की जा सके। हालांकि, सीबीआइ की प्रवक्ता कंचन प्रसाद ने बताया कि पूरक आरोपपत्र को लेकर अब तक अंतिम फैसला नहंी लिया गया है। इस पर अब भी विचार किया जा रहा है। सोहराबुद्दीन शेख और तुलसी प्रजापति मुठभेड़ मामले के आरोपपत्र में शाह को आरोपी बनाया गया है। इन मामलों में शाह को जुलाई, 2010 में गिरफ्तार किया गया था। फिलहाल वह जमानत पर बाहर हैं।

सीबीआइ ने इशरत और उसके तीन साथियों के फर्जी मुठभेड़ मामले में गुजरात पुलिस की अपराध शाखा के सात अधिकारियों को आरोपपत्र में शामिल किया है। जांच एजेंसी ने आरोप लगाया है कि इशरत जहां मुठभेड़ फर्जी थी और इसे गुजरात पुलिस व आइबी ने मिलकर अंजाम दिया। सूत्रों का कहना है कि जांच एजेंसी ने आइबी अफसरों के साजिश में शामिल होने से जुड़े पर्याप्त सुबूत जुटा लिए हैं, लेकिन ब्यूरो के विशेष निदेशक (सेवानिवृत्त) राजिंदर कुमार, पी. मित्तल, एमके सिन्हा और राजीव वानखेड़े पर मुकदमा चलाने के लिए गृह मंत्रालय की अनुमति लेने को लेकर मतभेद है। जांच एजेंसी अधकचरे मामले के साथ आगे नहंी बढ़ना चाहती। लिहाजा, विधि मंत्रालय से राय मांगी गई है। सूत्रों ने कहा कि अगर विधि मंत्रालय गृह मंत्रालय से मंजूरी को जरूरी बताएगा तो जांच एजेंसी इसके लिए कदम उठाएगी।

अवैध जासूसी मामले में नए टेप उजागर

गुजरात में एक युवती की अवैध जासूसी को लेकर उठे विवाद के बीच 'गुलेल डाट काम' वेबसाइट ने फिर से कुछ नए टेप जारी कर राज्य सरकार को घेरने की कोशिश की। गुजरात सरकार के दो वरिष्ठ आइपीएस अधिकारियों के बीच बातचीत के टेप से यह साबित करने की कोशिश हुई कि सरकार के किसी 'साहेब' के इशारे पर कथित युवती के व्यक्तिगत जीवन में ताकझांक की गई।

'गुलेल डाट काम' के प्रमुख आशीष खेतान के मुताबिक राज्य पुलिस नियमित तौर पर गैर कानूनी निगरानी और फोन टैपिंग करवाती थी। माधुरी (काल्पनिक नाम) के मामले में ऐसा ही अनुरोध पत्र कर्नाटक सरकार को भी भेजा गया था। मगर तब की कर्नाटक की भाजपा सरकार ने इसे गैरकानूनी बताते हुए अमल से मना कर दिया था।

खेतान के मुताबिक इन 40 नए टेप से भाजपा का यह दावा भी गलत साबित हो गया है कि लड़की के घरवालों के कहने पर उनकी सुरक्षा के लिए यह सब किया जा रहा था। खेतान ने कहा कि टेप में स्पष्ट है कि महिला के होने वाले पति, भाई और दोस्त ही नहीं उनके माता-पिता भी निगरानी की जा रही थी। ऐसे एक टेप में राज्य के एक वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी एके शर्मा ने दूसरे अधिकारी जीके सिंघल से कहा कि ऊपर के आदेश पर वह दो महीने से माधुरी की बातचीत सुन रहे थे। वेबसाइट ने पिछले खुलासे में दावा किया था कि राज्य के तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह अपने 'साहेब' के कहने पर यह निगरानी करवा रहे थे। एक सवाल के जवाब में खेतान ने कहा कि आइपीएस सिंघल ने ही अपनी सुरक्षा के लिए बातचीत को टेप किया था।

पढ़ें: सोहराबुद्दीन मामले में जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे पांडियन

केंद्र करेगा जांच आयोग का गठन

अवैध जासूसी मामले में केंद्र सरकार एक जांच आयोग का गठन कर सकती है। केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय ने इस संबंध में एक नोट भी तैयार किया है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त जज से मामले की जांच कराने की बात कही गई है। गृह मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक हम उच्च अधिकारियों से हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद कैबिनेट के समक्ष इसे पेश करेंगे। सूत्रों के मुताबिक जांच आयोग को तीन महीने का समय दिया जाएगा। आयोग को आधिकारिक दस्तावेज हासिल करने और लोगों को पूछताछ के लिए बुलाने का अधिकार होगा। उनके मुताबिक राज्य गृह सचिव को राज्य की परिधि में फोन टैपिंग का आदेश देने का अधिकार है लेकिन अन्य राज्यों के लिए केंद्रीय गृह सचिव की अनुमति जरूरी है। इस मामले में गुजरात के बाहर महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी युवती की अवैध तरीके से जासूसी की गई।

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