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जानिए, ईश्‍वरचंद विद्यासागर ने कैसे नारी शिक्षा और विधवा विधवा-पुनर्विवाह के लिए समाज में जगाई अलख

ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने विधवाओं के विवाह के लिए खूब आवाज उठाई और उसी का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ। उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Updated: Sat, 26 Sep 2020 10:32 AM (IST)
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समाज सुधारक ईश्वर चंद्र विद्यासागर की फाइल फोटो।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्‍क। Ishwar Chandra Vidyasagar Birth Anniversary: ईश्वर चंद्र विद्यासागर उन्नीसवीं सदी के एक महान बहु प्रतिभाशाली समाज सुधारक थे। वे महान शिक्षाविद, एक अथक सुधारक और एक महान विद्वान थे। उन्होंने बंगाली गद्य को आधुनिक बनाने की भी कोशिश की। 

उनका जन्म 26 सितंबर, 1820 को मेदिनीपुर में एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह असाधारण कौशल वाले व्यक्ति थे। उन्होंने संस्कृत महाविद्यालय से स्नातक किया। ईश्वरचंद्र को गरीबों और दलितों का संरक्षक माना जाता था। उन्होंने स्‍त्रियों की शिक्षा और विधवा विवाह कानून के लिए आवाज उठाई। उन्हें बंगाल में पुनर्जागरण की अलख जगाई। उनके बचपन का नाम ईश्वर चंद्र बंद्योपाध्याय था। संस्कृत भाषा और दर्शन में अगाध ज्ञान होने के कारण छात्र जीवन में ही संस्कृत कॉलेज ने उन्हें 'विद्यासागर' की उपाधि प्रदान की थी। विद्यासागर दो संस्कृत शब्द का मेल है। 'विद्या' का अर्थ है 'ज्ञान' और 'सागर' का अर्थ है 'समुद्र या महासागर'। इस प्रकार, विद्यासागर का अर्थ है “ज्ञान और ज्ञान का महासागर

मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की

ईश्वर चंद्र ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की। उन्होंने इन स्कूलों को चलाने में आने वाले पूरा खर्च उठाया। स्कूली खर्च के लिए वह विशेष रूप से बच्चों के लिए बांग्ला भाषा में लिखी गई किताबों की बिक्री से फंड जुटाते थे।

1855 ई. में जब उन्हें स्कूलों का निरीक्षक/इंस्पेक्टर बनाया गया तो उन्होंने बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्कूल सहित कई नए स्कूलों की स्थापना की। अंग्रेजी सरकार के उच्च अधिकारियों को उनका ये कार्य पसंद नहीं आया और अंततः उन्होंने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। वे बेथुन के साथ भी जुड़े हुए थे, जिन्होनें 1849 ई. में कलकत्ता में स्त्रियों की शिक्षा के लिए प्रथम स्कूल की स्थापना की थी।

विचार और शिक्षाएं

विधवा-पुनर्विवाह एवं स्त्री शिक्षा के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया था।

विधवा-पुनर्विवाह को कानूनी वैधता प्रदान करने वाले अधिनियम को पारित कराने वालों में एक नाम उनका भी था।

वे विधवा-पुनर्विवाह के प्रबल समर्थक थे।

उन्होंने संस्कृत कॉलेज में आधुनिक पश्चिमी विचारों का अध्ययन शुरू कराया था।

उन्होंने बंगाली भाषा के विकास में भी योगदान दिया था और इसी योगदान के कारण उन्हें आधुनिक बंगाली भाषा का जनक माना जाता है।

वे कई समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं के साथ भी गंभीरता से जुड़े हुए थे और सामाजिक सुधारों की वकालत करने वाले कई महत्वपूर्ण लेख भी लिखे।

विधवा विवाह के खिलाफ उठाया आवाज, तब बना कानून

उन्होंने विधवाओं के विवाह के लिए आवाज उठाई और उसी का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ। उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उनके इन्हीं प्रयासों ने उन्हें समाज सुधारक के तौर पर पहचान दी। नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद् विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषाओं के ज्ञान का समन्वय करके भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है।