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Aditya-L1 Mission: स्पेस में रहकर सूर्य के रहस्य को खंगालना होगा संभव, क्या आदित्य-एल1 मिशन से खुलेंगी परतें?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज श्रीहरिकोटा से अपने पहले सूर्य मिशन आदित्य-एल1 मिशन (Aditya-L1 Mission) की सफल लॉन्चिंग कर दी है। यान को अपने लक्षित कक्षा में पहुंचने के लिए 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी जिसके लिए चार महीने का समय लगेगा। ऐसे में सवाल आता है कि क्या इस मिशन को पूर्ण सूर्य मिशन कहा जा सकता है।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Sat, 02 Sep 2023 03:40 PM (IST)
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ISRO Aditya-L1 Solar Mission: आदित्य-एल1 है एक संपूर्ण सूर्य मिशन!
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अपने पहले सौर मिशन आदित्य-एल1 मिशन (Aditya-L1 Mission) को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया है। अब इसरो ऊर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत सूरज के कई रहस्यमयी परतों के राज खोलेगा।

आदित्य-एल1 मिशन (Aditya-L1 Mission) की लॉन्चिंग 2 सितंबर को सुबह 11.50 पर श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्‍पेस सेंटर से की गई है। अब सवाल यह खड़ा होता है कि आखिर इस मिशन का उद्देश्य क्या है और क्या इस मिशन के जरिए सूर्य से जुड़े सभी सवालों और रहस्यों के जवाब मिल जाएंगे। इस खबर में हम आपको आदित्य-एल1 मिशन से जुड़े सभी सवालों के जवाब देंगे।

सूर्य से जुड़ी जानकारी

गौरतलब है कि सूर्य सौरमंडल का सबसे नजदीकी तारा और सबसे बड़ा पिंड है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी लगभग 15 करोड़ है। दरअसल, हमारे सौर मंडल का सबसे बड़ा ऊर्जा का स्रोत सूर्य ही है। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण ही सौरमंडल में चीजों को बांध कर रखता है। सूर्य के कोर में तापमान 15 मिलियन डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। सूर्य का फोटोस्फेयर कोर की तुलना में ठंडा होता है और इसका तापमान लगभग 5,500°C होता है।

सूर्य का अध्ययन करना क्यों है जरूरी?

दरअसल, सूरज सौरमंडल का सबसे नजदीकी तारा है, इसलिए इसका अध्ययन करना अन्य तारों की तुलना में ज्यादा आसान है। इसका अध्ययन करने के बाद मिल्की वे के तारों के बारे में ज्यादा-से-ज्यादा जानकारियां हासिल हो सकती हैं।

सूर्य एक गतिशील तारा है, जिसमें आए दिन कई विस्फोटककारी घटनाएं होती रहती हैं। इन घटनाओं के कारण सूर्य सौरमंडल में काफी ऊर्जा छोड़ता है। यदि यह घटना पृथ्वी की ओर बढ़ती हैं, तो इससे पृथ्वी के आसपास के अंतरिक्ष वातावरण में गड़बड़ी हो सकती हैं।

यहां तक कि यदि कोई अंतरिक्ष यात्री इन विस्फोटक गतिविधियों के संपर्क में आ जाता है, तो इससे उसकी जान तक खतरे में पड़ जाएगी। सूर्य कई ऐसी घटनाओं पर अध्ययन करने का बेहतरीन मौका देता है, जिन्हें लैब में रहकर समझ पाना शायद कभी संभव ही नहीं है।

क्या है आदित्य-एल1 मिशन?

आदित्य-एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय सौर मिशन है। इस मिशन में अंतरिक्ष यान को सोलर-अर्थ सिस्टम के लैग्रेंजियन बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक हेलो ऑर्बिट (Halo Orbit) में स्थापित करने की योजना बनाई गई है।

यह लैंग्रेंजियन बिंदु पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी की दूरी पर स्थित है। उपग्रह को इस L1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा (Halo Orbit) रखने से वह बिना किसी ग्रहण के आसानी से सूर्य को लगातार देख सकता है, जिसका फायदा अध्ययन के दौरान होगा।

इस मिशन में सौर अध्ययन के लिए अंतरिक्ष यान में सात पेलोड लगाए गए हैं। L1 में चार पेलोड सूर्य को सीधे देख सकेंगे और अन्य तीन पेलोड लाग्रेंज बिंदु L1 पर कणों और क्षेत्रों का इन-सीटू अध्ययन करेंगे।

उम्मीद है कि आदित्य एल1 पेलोड का सूरज की बाहरी परत कोरोना, कोरोनल मास इजेक्शन (सूर्य में होने वाले शक्तिशाली विस्फोट), सौर तूफान की उत्पत्ति, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियां और उनकी विशेषताएं आदि कारकों का अध्ययन करेगा। इसके साथ ही, अंतरिक्ष मौसम पर सूर्य की गतिविधियों के प्रभाव की जानकारी भी इकट्ठा की जाएगी।

गौरतलब है कि अंतरिक्ष मौसम का तात्पर्य पृथ्वी और अन्य ग्रहों के आसपास अंतरिक्ष में बदलती पर्यावरणीय स्थितियों से है। अंतरिक्ष के मौसमों को समझना बहुत ही जरूरी होता है, जिसके लिए आए दिन कई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। यदि पृथ्वी के पास का अंतरिक्ष मौसम (Space Weather) समझ लेते हैं, तो इससे आसपास के अन्य ग्रह के मौसम का भी अंदाजा लगाना काफी आसान हो जाता है।

दरअसल, सौरमंडल में सौर वायु के साथ ही सौर चुंबकीय क्षेत्र भी प्रभाव पड़ता है। साथ ही, पृथ्वी पर भूकंप आते हैं, उसी तरह सौर भूकंप भी होते हैं - जिन्हें कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई) कहा जाता है। इन सीएमई जैसी अन्य विस्फोटक सौर घटनाएं अंतरिक्ष की प्रकृति को प्रभावित करती है। इन घटनाओं से अंतरिक्ष संपत्तियों के कामकाज पर असर पड़ता है।

इस मिशन में क्या है उद्देश्य?

  • इस मिशन के जरिए कोरोनल हीटिंग और सौर पवन को समझना संभव हो सकेगा।
  • कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), फ्लेयर्स और पृथ्वी के पास के अंतरिक्ष मौसम की शुरुआत को समझने में मदद मिलेगी।
  • सौर तूफान की उत्पत्ति, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियां और उनकी विशेषताएं को समझना होगा।

क्यों हो रहा अंतरिक्ष से सूर्य का अध्ययन?

सूर्य की ओर से कई ऊर्जावान कण निकलते हैं, जो पृथ्वी की ओर बढ़ते हैं। वहीं, पृथ्वी का वायुमंडल और उसका चुंबकीय क्षेत्र एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करता है, जो कणों अन्य कई हानिकारक तरंगों को पृथ्वी में प्रवेश करने से रोकता है। ऐसे में कई कणों का पृथ्वी की उन सुरक्षा कवच के अंदर रहकर अध्ययन करना संभव नहीं है। यदि हम अध्ययन के लिए उन सुरक्षा कवच को पार कर के निकलते हैं, तो सूर्य की गहराई से जांच करना संभव हो सकेगा।

क्या सूर्य का अध्ययन करने के लिए आदित्य-एल1 एक पूर्ण मिशन साबित होगा?

दरअसल, इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर तो 'नहीं' ही है। ऐसा केवल आदित्य-एल1 (Aditya-L1) मिशन के लिए ही नहीं है, बल्कि जो भी कोई मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए लॉन्च किए जाएंगे, उनमें से किसी भी मिशन को एक पूर् मिशन नहीं कह सकते हैं। इसका कारण यह है कि अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यान सीमित मास, शक्ति और आयतन के कारण, सीमित क्षमता वाले उपकरणों का केवल एक सीमित सेट ही भेजा जा सकता है।

इस मिशन में, सभी माप लाग्रेंज बिंदु एल1 से किए जाएंगे। उदाहरण के तौर पर, सूर्य की विभिन्न घटनाएं बहु-दिशात्मक हैं और इसलिए ऊर्जा के सबसे बड़े स्त्रोत अकेले अध्ययन करना संभव नहीं है। एल1 के साथ ही, एल5 भी सीएमई घटनाओं और अंतरिक्ष मौसम का आकलन करने के लिए एक अच्छा सुविधाजनक बिंदु साबित हो सकता है।

इसके अलावा, सूर्य के ध्रुवीय क्षेत्रों का भी अच्छी तरह से अध्ययन नहीं किया जा चुका है, क्योंकि अंतरिक्ष यान को इनके कक्षाओं में भेजना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके अलावा, सूर्य के अंदर और उसके आसपास होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं को समझने के लिए विभिन्न सौर विकिरणों के ध्रुवीकरण माप की आवश्यकता होती है।

आदित्य-एल1 में सात पेलोड बनाएंगे मिशन को सफल

VELC पेलोड

वीईएलसी, आदित्य-एल1 पर मुख्य पेलोड है, जिसे मल्टी-स्लिट स्पेक्ट्रोग्राफ के साथ कोरोनोग्राफ के तौर पर डिजाइन किया गया है।

SUIT पेलोड

SUIT पेलोड सौर डिस्क की छवि लेने के लिए एक UV टेलीस्कोप है, जो अल्ट्रा-वॉइलेंट रेंज के पास से तस्वीरें लेंगी।

SoLEXS पेलोड

SoLEXS आदित्य-एल1 पर लगा एक नरम एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है। इस पेलोड को सौर फ्लेयर्स का अध्ययन करने के लिए सोलर सॉफ्ट एक्स-रे प्रवाह को मापने के लिए डिजाइन किया गया है।

HEL1OS पेलोड

HEL1OS पेलोड, आदित्य-एल1 में लगाया गया एक हार्ड एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर है। इसे हाई एनर्जी एक्स-रे में सौर फ्लेयर्स का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है।

ASPEX पेलोड में 2 सबसिस्टम शामिल हैं: SWIS और STEPS

SWIS (सोलर विंड आयन स्पेक्ट्रोमीटर) एक कम ऊर्जा वाला स्पेक्ट्रोमीटर है, जिसे सौर हवा के प्रोटॉन और अल्फा कणों को मापने और जांचने के लिए डिजाइन किया गया है।

वहीं, STEPS (सुप्राथर्मल एंड एनर्जेटिक पार्टिकल स्पेक्ट्रोमीटर) एक उच्च-ऊर्जा स्पेक्ट्रोमीटर है, जो सौर हवा के हाई-एनर्जी आयनों को मापने के लिए बनाया गया है।

PAPA पेलोड

PAPA पेलोड को सौर हवाओं और इसकी संरचना को समझने के साथ ही, सौर पवन आयनों का विश्लेषण करने के लिए डिजाइन किया गया है।

Magnetometer (MAG) पेलोड

आदित्य-एल1 पर लगे मैग्नेटोमीटर (एमएजी) को कम तीव्रता वाले अंतरिक्ष में क्षेत्र अंतरग्रहीय चुंबकीय को मापने के लिए डिजाइन किया गया है।

सोर्स- इस खबर में दी गई जानकारियां भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की आधिकारिक वेबसाइट एवं अन्य वैश्विक वैज्ञानिक वेबसाइट से कंपाइल कर के लिखी गई हैं। खबर में जागरण में प्रकाशित खबरों का संदर्भ भी लिया गया है।