Move to Jagran APP

Chandrayaan-3: Failure Based Approach पर आधारित है चंद्रयान मिशन, क्या है ये और ISRO को कैसे आया इसका आइडिया?

Chandrayaan-3 14 जुलाई 2023 को भारत एक नया इतिहास रचने के लिए पूरी तरह से तैयार है। दरअसल इस दिन श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन के लिए इसरो ने विफलता आधारित दृष्टिकोण (Failure-Based Approach) का विकल्प चुना है। मिशन की सफलता की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए सॉफ्टवेयर हार्डवेयर और लैंडिंग अनुक्रम में संशोधन किए गए हैं।

By Shalini KumariEdited By: Shalini KumariUpdated: Tue, 11 Jul 2023 05:29 PM (IST)
Hero Image
चंद्रयान-3 मिशन के लिए इसरो ने 'विफलता आधारित दृष्टिकोण' का विकल्प चुना
नई दिल्ली, शालिनी कुमारी। Chandrayaan-3: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) चंद्रयान-2 की असफलता के 5 साल बाद एक बार फिर चांद की जमीन पर उतरने के लिए पूरी तरह तैयार है। 14 जुलाई को भारत अपनी उपलब्धियों का एक नया अध्याय लिखने की तैयारी कर चुका है। दरअसल, 14 जुलाई, 2023 को चंद्रयान-3 की लॉन्चिंग की जाएगी, जिस पर पूरी दुनिया की नजर टिकी हुई है।

'विफलता आधारित दृष्टिकोण' पर आधारित चंद्रयान-3 मिशन

इस मिशन को सफल बनाने के लिए इसरो ने कड़ी मेहनत की और इस बार खास बात यह है कि इसरो ने 'विफलता आधारित दृष्टिकोण' का विकल्प चुना है, ताकि कुछ गड़बड़ी होने के बावजूद भी रोवर चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतर सके। इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने सोमवार को खुलासा किया कि एजेंसी ने सफलता सुनिश्चित करने के लिए चंद्रयान-3 के लिए विफलता-आधारित दृष्टिकोण डिजाइन को अपनाया है। मिशन की सफलता की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और लैंडिंग अनुक्रम में संशोधन किए गए हैं।

क्या होता है विफलता-आधारित दृष्टिकोण? (Failure-Based Approach)

दरअसल, विफलता-आधारित दृष्टिकोण डिजाइन में संभावित विफलताओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है और उन्हें कम करने के लिए उपाय कर लिए जाते हैं। इस दृष्टिकोण को अपनाकर, इसरो ने अपने लक्षित मिशन में कुछ सुधार किए हैं और इस मिशन को सफल बनाने की संभावना को बढ़ाने की कोशिश की है। हालांकि, इस पद्धति में समय लगता है, क्योंकि इसकी तैयारी सुनिश्चित करने के लिए मिशन के महत्वपूर्ण घटकों, मापदंडों और संभावित विविधताओं का गहन मूल्यांकन करना होता है।

चंद्रयान-2 मिशन से अलग दृष्टिकोण

ISRO प्रमुख एस सोमनाथ ने इस मिशन को लेकर कहा, "संक्षेप में अगर आपको बताएं कि चंद्रयान -2 में क्या समस्या थी, तो यह कहना आसान है कि पैरामीटर भिन्नता या फैलाव को संभालने की क्षमता बहुत सीमित थी, इसलिए इस बार हमने इसे और विस्तारित किया है। हमने देखने की कोशिश की है कि वो कौन-सी चीजें हैं, जो गलत हो सकती हैं। इसलिए, चंद्रयान -2 के सफलता-आधारित दृष्टिकोण डिजाइन के बजाय, चंद्रयान -3 के लिए विफलता-आधारित दृष्टिकोण डिजाइन को चुना गया है। इसमें पता चल क्या विफल हो सकते हैं और इसे कैसे सुरक्षित रखा जाए, हमने इसी दृष्टिकोण को अपनाया है।"

चंद्रयान-2 मिशन की खामियों पर किया अध्ययन

इसरो प्रमुख ने कहा है कि इस मिशन को सफल बनाने के लिए कई तकनीकी बदलाव किए गए हैं। SIA-इंडिया (सेटकॉम इंडस्ट्री एसोसिएशन) की इंडिया स्पेस कांग्रेस के मौके पर इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर जब चंद्रमा की सतह पर 500x500 मीटर लैंडिंग स्पॉट की ओर बढ़ रहा था, तब क्या गलत हुआ था, इस पर हमने गौर किया। इसरो अध्यक्ष सोमनाथ ने उन कमियों के बारे में भी बताया।  

इसरो अध्यक्ष ने बताया क्यों फेल हुआ चंद्रयान-2 मिशन

  • अध्यक्ष ने बताया कि चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर के लिए हमारे पास पांच इंजन थे, जिनका इस्तेमाल वेलॉसिटी को कम करने के लिए किया जाता है। इन इंजनों ने उड़ाने के बाद अपेक्षा से ज्यादा थ्रस्ट पैदा कर दिया, जिसके कारण बहुत-सी परेशानियां बढ़ने लगीं।
  • दूसरा कारण बताते हुए एस सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष यान को उतरते समय तेजी से मुड़ना था, लेकिन जैसे ही उसने मुड़ना शुरू किया, उसकी गति सीमित हो गई। उन्होंने कहा," हमें ऐसी स्थिति की बिल्कुल भी अपेक्षा नहीं थी।"
  • चंद्रयान-2 के फेल होने का तीसरा कारण छोटी लैंडिंग साइट बताई गई थी। दरअसल, अंतरिक्ष यान को उतारने के लिए 500 मीटर x 500 मीटर की छोटी लैंडिंग साइट थी, लेकिन चांद की जमीन उबड-खाबड थी। यान अपना वेग बढ़ाकर वहां पहुंचने की कोशिश कर रहा था। यह सतह के लगभग करीब था और लगातार वेग बढ़ा रहा था।
  • चांद की सतह पर बड़े गड्ढों और लंबे समय तक अंधेरे वाले क्षेत्रों के साथ, चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग साइट के चयन ने लैंडिंग ऑपरेशन में और भी ज्यादा जटिल बना दिया था।

चंद्रयान-3 में बढ़ाई गई लैंडिंग साइट

इसरो अध्यक्ष सोमनाथ ने कहा, "हमने चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट को 500 मीटर x 500 मीटर से बढ़ाकर 2.5 किलोमीटर कर दिया है, जिससे यह कहीं भी उतर सकता है। साथ ही, उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 में ईंधन भी अधिक है, जिससे इसके लिए यात्रा करने या पथ-विचलन को संभालने या वैकल्पिक लैंडिंग स्थल पर जाने की अधिक क्षमता रखना संभव होगा।

कब लॉन्च होगा चंद्रयान-3?

चंद्रयान-3 मिशन को 14 जुलाई, 2023 को दोपहर 2:35 बजे IST श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया जाना है। अंतरिक्ष यान को लॉन्च वाहन मार्क-III का उपयोग करके लॉन्च किया जाएगा। यह मिशन चंद्रयान-2 की अगली कड़ी है, जिसका प्राथमिक ध्यान चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंडिंग और अन्वेषण गतिविधियों को अंजाम देने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित करने पर है।

चंद्रयान-3 में क्या है खास?

चंद्रयान-3 में रोवर है, जो चंद्रयान-2 में नहीं थी। इसके अलावा, चंद्रयान 3 स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) नाम का एक पेलोड ले जाएगा, जो  चंद्रमा की सतह का अध्ययन करेगा। साथ ही, चंद्रयान-3 का न तो प्रक्षेप पथ बदलेगा, न ही इसरो के साथ इसका संपर्क टूटेगा।

कितनी है चंद्रयान मिशन-3 की लागत?

इसरो ने चंद्रयान-3 के शुरुआती बजट के लिए 600 करोड़ रुपए की उम्मीद की थी, लेकिन यह मिशन 615 करोड़ रुपए में पूरा होगा। गौरतलब है कि चंद्रयान मिशन-2 की तुलना में चंद्रयान मिशन-3 का खर्च कम रहा है।

कब लॉन्च हुआ चंद्रयान मिशन-1 और चंद्रयान मिशन-2?

  • चंद्रयान-1 को 22 अक्टूबर, 2008 को लॉन्च किया गया था और इसने 28 अगस्त, 2009 तक काम किया था। इसी मिशन के दौरान चांद पर पानी होने का पता चला था। यह इसरो का बजट स्पेसशिप माना गया था।
  • इसके अलावा, भारत ने चंद्रयान-2 को 22 जुलाई, 2019 को श्रीहरिकोटा रेंज से भारतीय समयानुसार दोपहर 02:43 बजे सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया था। इसरो की महिला वैज्ञानिक रितू करिधल चंद्रयान-2 की मिशन डायरेक्टर थीं। उन्हें रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया भी कहा जाता है।