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Video: ISRO का SSLV-D2 रॉकेट श्रीहरिकोटा से लॉन्च, 3 उपग्रहों के साथ अंतरिक्ष में करेगा प्रवेश, खास है मिशन

ISRO New Rocket Launch इसरो ने श्रीहरिकोटा से SSLV-D2 दूसरी बार तीन उपग्रहों EOS-07 Janus-1 और AzaadiSat-2 को लांच कर दिया है। SSLV-D2 का कुल वजन 175.2 किलोग्राम है। इसरो का पहला परिक्षण विफल रहा था। (फोटो- एएनआई)

By AgencyEdited By: Mahen KhannaUpdated: Fri, 10 Feb 2023 09:34 AM (IST)
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ISRO New Rocket Launch इसरो रॉकेट लांच।
चेन्नई, एजेंसी। ISRO New Rocket Launch भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आज लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (SSLV-D2) के दूसरे संस्करण को लॉन्च कर दिया है। आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा रॉकेट पोर्ट के पहले लॉन्चपैड से आज सुबह 9.18 बजे इसको लॉन्च किया गया। इसरो के अनुसार ये रॉकेट तीन उपग्रहों- इसरो के अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS-07), अमेरिका के ANTARIS की Janus-1 और चेन्नई की स्पेस किड्ज इंडिया की AzaadiSat-2 को 450 किलोमीटर पर पृथ्वी की गोलाकार कक्षा में स्थापित करेगा।

लॉन्चिंग इसलिए है खास

  • इसरो ने एसएसएलवी को 550 किलोग्राम की पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) तक ले जाने की क्षमता के साथ विकसित किया है। यह छोटे उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने के बाजार पर आधारित है।
  • SSLV-D2 का कुल वजन 175.2 किलोग्राम होगा, जिसमें 156.3 किलोग्राम EOS, 10.2 किग्रा Janus-1 और 8.7 किग्रा AzaadiSat-2 का होगा।
  • एसएसएलवी रॉकेट अंतरिक्ष के लिए कम लागत वाली पहुंच प्रदान करता है, जो कई उपग्रहों को समायोजित करने में कम समय और लचीलापन प्रदान करता है और न्यूनतम लॉन्च इंफ्रास्ट्रक्चर में अपना काम पूरा करता है।

  • इसरो के अनुसार एसएसएलवी रॉकेट की लगभग 56 करोड़ रुपये है और यह 34 मीटर लंबा है। रॉकेट का भार 120 टन है। अपनी उड़ान के लगभग 13 मिनट में, SSLV रॉकेट EOS-07 और उसके तुरंत बाद अन्य दो उपग्रहों Janus को बाहर निकाल देगा। इसरो ने बताया कि तीनों उपग्रहों को 450 किलोमीटर की ऊंचाई पर छोड़ा जाएगा।
  • बता दें कि यह रॉकेट लॉन्चिंग इसलिए भी खास है क्योंकि एसएसएलवी की पहली उड़ान एसएसएलवी-डी1 पिछले साल 7 अगस्त को विफल रही थी।
  • इसरो ने जब विफलता का पता लगाने की कोशिश की तो पता चला कि दूसरे चरण के पृथक्करण के दौरान कंपन के कारण लाॉन्चिंग प्रभावित हुई थी। रॉकेट का सॉफ्टवेयर उपग्रहों को बाहर निकालने में सक्षम था, लेकिन इजेक्शन गलत कक्षा में किए गए थे। उपग्रहों में एक स्थिर कक्षा में होने के लिए आवश्यक वेग का भी अभाव था, जिसके चलते उपग्रह गलत दिशा में चले गए।