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ISRO Mission: चांद, सूरज के बाद अब शुक्र पर इसरो की निगाहें, विश्व में लहराएगा देश का परचम; जानिए अगला मिशन

ISRO Venus Mission चंद्रयान मिशन की सफलता के बाद इसरो की नजर अब तारों और सौरमंडल के बाहर के ग्रहों के रहस्य का पता लगाने पर है। आइएनएसए के कार्यक्रम में सोमनाथ ने कहा अंतरिक्ष एजेंसी शुक्र ग्रह के अध्ययन के लिए मिशन भेजने और अंतरिक्ष के जलवायु तथा पृथ्वी पर उसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए दो उपग्रह भेजने की योजना भी बना रही है।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Wed, 27 Sep 2023 07:00 AM (IST)
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ISRO Mission: चांद, सूरज के बाद अब शुक्र पर इसरो की निगाहें, जगत में फिर लहराएगा देश का परचम
नई दिल्ली, पीटीआई। चंद्रयान मिशन की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की नजर अब तारों और सौरमंडल के बाहर के ग्रहों के रहस्य का पता लगाने पर है। इसरो के प्रमुख एस. सोमनाथ ने मंगलवार को कहा कि इसरो ने बाहरी ग्रहों के रहस्यों को उजागर करने पर ध्यान केंद्रित किया है, जिनमें से कुछ में वायुमंडल है और उन्हें रहने योग्य माना जाता है।

दिसंबर में लांच करने की तैयारी

भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (आइएनएसए) के कार्यक्रम में सोमनाथ ने कहा कि अंतरिक्ष एजेंसी शुक्र ग्रह के अध्ययन के लिए मिशन भेजने और अंतरिक्ष के जलवायु तथा पृथ्वी पर उसके प्रभाव का अध्ययन करने के लिए दो उपग्रह भेजने की योजना भी बना रही है। उन्होंने कहा, एक्सपोसेट या एक्स-रे पोलरीमीटर सेटेलाइट को इस साल दिसंबर में लांच करने की तैयारी है। इस सेटेलाइट को उन तारों के अध्ययन के लिए भेजा जाएगा जो समाप्त होने की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं।

हम एक्सोव‌र्ल्ड्स नामक सेटेलाइट पर भी विचार कर रहे हैं जो सौरमंडल से बाहर के ग्रहों और अन्य तारों का चक्कर लगा रहे ग्रहों का अध्ययन करेगा।उन्होंने कहा कि सौरमंडल के बाहर 5,000 से अधिक ज्ञात ग्रह हैं जिनमें से कम से कम 100 पर पर्यावरण होने की बात मानी जाती है। एक्सोव‌र्ल्ड्स मिशन के तहत बाहरी ग्रहों के वातावरण का अध्ययन किया जाएगा। सोमनाथ ने कहा कि मंगल पर एक अंतरिक्षयान उतारने की भी योजना है।-

भारत में रॉकेट में इस्तेमाल होने वाले 95 प्रतिशत कलपुर्जे स्वदेशी

सोमनाथ वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) के 82वें स्थापना दिवस समारोह में इसरो प्रमुख सोमनाथ ने कहा कि भारत में राकेट के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले लगभग 95 प्रतिशत कलपुर्जे घरेलू स्त्रोत से प्राप्त किए जाते हैं। रॉकेट और सेटेलाइट का विकास सहित सभी तकनीकी कार्य अपने देश में ही किए जाते हैं।

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यह उपलब्धि राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, रक्षा प्रयोगशालाओं और सीएसआइआर प्रयोगशालाओं सहित विभिन्न भारतीय प्रयोगशालाओं के साथ सहयोग का परिणाम है, जो स्वदेशीकरण, प्रौद्योगिकी क्षमताओं और अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संदेश में कहा कि सरकार विज्ञानियों को सभी संसाधन उपलब्ध कराकर और अनुकूल इकोसिस्टम को बढ़ावा देकर उनके प्रयासों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। केंद्रीय मंत्री जीतेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री का संदेश पढ़ा।

पीएम मोदी ने चंद्रयान-3 मिशन की सफलता में सीएसआइआर की प्रयोगशालाओं के योगदान की सराहना करते हुए कहा, 'हमारे अंतरिक्ष और विज्ञान परिवेश के अथक प्रयासों ने दुनिया को दिखाया है कि हमारे लिए कुछ भी असंभव नहीं है।'

12 युवा विज्ञानियों को मिला शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार

सीएसआइआर के स्थापना दिवस पर 12 युवा विज्ञानियों को शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। इनमें सीएसआइआर-इंडियन इंस्टीट्यूट आफ केमिकल बायोलाजी, कोलकाता के इम्यूनोलाजिस्ट दीप्यमन गांगुली, सीएसआइआर-इंस्टीट्यूट ऑफ माइक्रोबियल टेक्नोलाजी, चंडीगढ़ के माइक्रोबायोलाजिस्ट अश्विनी कुमार, हैदराबाद के सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंट डायग्नोस्टिक्स के जीवविज्ञानी मदिका सुब्बा रेड्डी,

भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के अक्कट्टू टी. बीजू, अपूर्व खरे और अनिद्य दास, आइआइटी गांधीनगर के विमल मिश्रा, आइआइटी दिल्ली के दीप्ति रंजन साहू, आइआइटी बांबे के देबब्रत मैती, आइआइटी मद्रास के रजनीश कुमार, माइक्रोसाफ्ट रिसर्च लैब इंडिया, बेंगलुरु के नीरज कयाल, टाटा इंस्टीट्यूट आफ फंडामेंटल रिसर्च मुंबई के बासुदेब दासगुप्ता शामिल हैं। 45 वर्ष से कम आयु के विज्ञानियों को यह पुरस्कार दिया जाता है।

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