ISRO बस ये प्रोजेक्ट पूरा कर ले, फिर भारत के आगे दुनिया हो जाएगी नतमस्तक
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रही है, जिसके पूरा होने पर पूरी दुनिया भारत के आगे नतमस्तक हो जाएगी...
By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 19 Dec 2018 04:49 PM (IST)
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ISRO पूरी दुनिया में अपनी धाक जमा चुकी है। इसरो अब एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है जिसके बारे में आज तक किसी देश ने सोचा ही नहीं। अगर यह प्रोजेक्ट सफल रहा तो इसरो और भारत के आगे सभी देश नतमस्तक हो जाएंगे और इसरो का लोहा फिर पूरी दुनिया में माना जाएगा। दरअसल, अब इसरो अंतरिक्ष में सैटलाइट ले जाने के बाद डेड हो जाने वाले रॉकेट्स को फिर से इस्तेमाल करने की तकनीक पर काम कर रहा है। आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि जब भी धरती पर किसी भी देश से कोई सैटेलाइट अंतरिक्ष में छोड़ा जाता है तो उसका कुछ भाग धरती पर वापस आ जाता है। लेकिन कुछ हिस्सा अंतरिक्ष में किसी कचरे की भांति धरती के चारों और चक्कर लगाता रहता है।
स्पेस वेस्ट
इस तरह के कचरे को स्पेस वेस्ट कहा जाता है। इस कचरे को लेकर भी कई देश काफी समय से काम कर रहे हैं। इसकी वजह है कि सैटेलाइट को छोड़ने के बाद लास्ट स्टेज रॉकेट ऑर्बिट में घूमते हुए नीचे की तरफ गिरता है। वह जैसे ही धरती के वातावरण के संपर्क में आता है, तो अत्यधिक घर्षण और वातावरण के कारण एक आग के गोले में बदल जाता है। कई बार यह हवा में ही खाक हो जाता है तो कभी कभी यह आग के गोले के रूप में धरती पर गिर जाता है, जिससे हानि होने की आशंका बनी रहती है। लेकिन अब भारत अपने इसी कचरे को एक नई तकनीक से साधना चाहता है। रॉकेट को दोबारा जिंदा करने की कवायद
दरअसल, इसरो को लगता है कि डेड रॉकेट के इस हिस्से को दोबारा काम में लाया जा सकता है। इसरो इस कचरे या रॉकेट के इस हिस्से का उपयोग स्पेस एक्सपेरिमेंट के लिए करने पर विचार कर रहा है। ऐसा अब तक किसी देश ने नहीं किया है। इसके लिए इसरो पीएसएलवी रॉकेट के लास्ट स्टेज का इस्तेमाल करना चाहता है। असल में इसरो जनवरी में पीएसएलवी सी44 को लॉन्च करने वाला है। इस दौरान प्राइमरी सैटेलाइट के रूप में भारत माइक्रोसेट को प्रक्षेपित करेगा। इस दौरान ही इसरो इस तकनीक का टेस्ट भी करेगा और नई तकनीक की मदद से इसे डेड रॉकेट को दोबारा जीवनदान दिया जाएगा। इसमें बैटरियां और सोलर पैनल लगे होंगे। पीएसएलवी से प्राइमरी सैटलाइट के अलग हो जाने के बाद भी लास्ट स्टेज का रॉकेट ऐक्टिव रहेगा। स्टूडेंट्स और स्पेस साइंटिस्ट अपने स्पेस एक्सपेरिमेंट्स के लिए इस रॉकेट का मुफ्त में इस्तेमाल कर सकेंगे। वे इसकी मदद से टेस्ट भी कर सकेंगे।
इस तरह के कचरे को स्पेस वेस्ट कहा जाता है। इस कचरे को लेकर भी कई देश काफी समय से काम कर रहे हैं। इसकी वजह है कि सैटेलाइट को छोड़ने के बाद लास्ट स्टेज रॉकेट ऑर्बिट में घूमते हुए नीचे की तरफ गिरता है। वह जैसे ही धरती के वातावरण के संपर्क में आता है, तो अत्यधिक घर्षण और वातावरण के कारण एक आग के गोले में बदल जाता है। कई बार यह हवा में ही खाक हो जाता है तो कभी कभी यह आग के गोले के रूप में धरती पर गिर जाता है, जिससे हानि होने की आशंका बनी रहती है। लेकिन अब भारत अपने इसी कचरे को एक नई तकनीक से साधना चाहता है। रॉकेट को दोबारा जिंदा करने की कवायद
दरअसल, इसरो को लगता है कि डेड रॉकेट के इस हिस्से को दोबारा काम में लाया जा सकता है। इसरो इस कचरे या रॉकेट के इस हिस्से का उपयोग स्पेस एक्सपेरिमेंट के लिए करने पर विचार कर रहा है। ऐसा अब तक किसी देश ने नहीं किया है। इसके लिए इसरो पीएसएलवी रॉकेट के लास्ट स्टेज का इस्तेमाल करना चाहता है। असल में इसरो जनवरी में पीएसएलवी सी44 को लॉन्च करने वाला है। इस दौरान प्राइमरी सैटेलाइट के रूप में भारत माइक्रोसेट को प्रक्षेपित करेगा। इस दौरान ही इसरो इस तकनीक का टेस्ट भी करेगा और नई तकनीक की मदद से इसे डेड रॉकेट को दोबारा जीवनदान दिया जाएगा। इसमें बैटरियां और सोलर पैनल लगे होंगे। पीएसएलवी से प्राइमरी सैटलाइट के अलग हो जाने के बाद भी लास्ट स्टेज का रॉकेट ऐक्टिव रहेगा। स्टूडेंट्स और स्पेस साइंटिस्ट अपने स्पेस एक्सपेरिमेंट्स के लिए इस रॉकेट का मुफ्त में इस्तेमाल कर सकेंगे। वे इसकी मदद से टेस्ट भी कर सकेंगे।
नई तकनीक से ऐसे मिलेगी मदद
एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट में इसरो के चेयरमैन के सिवन के हवाले से कहा गया है कि सामान्य स्थिति में अंतरिक्ष में सैटलाइट को रिलीज करने के बाद पीएसएलवी रॉकेट का अंतिम स्टेज डेड हो जाता है। इसे स्पेस कचरा मान लिया जाता है। उनके मुताबिक इसरो ऐसी तकनीक पर काम कर रहा है जिसके बाद इस डेड रॉकेट को छह महीने के लिए जीवन दिया जा सकेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि भविष्य में अंतरिक्ष में होने वाली खोज में इससे मदद मिल सकेगी और यह खोज अभी के मुकाबले सस्ती भी होगी। इस खोज के लिए अंतरिक्ष में अलग से किसी रॉकेट को नहीं भेजना पड़ेगा। सिवान के मुताबिक वर्तमान में भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जो इस तकनीक पर काम कर रहा है। रिपोर्ट में इसरो चेयरमैन के हवाले से कहा गया है कि इस तकनीक का इस्तेमाल जीएसएलवी में भी किया जा सकता है। लेकिन अभी इसके प्रपोजल की घोषणा होनी बाकी है।
एक अंग्रेजी अखबार की रिपोर्ट में इसरो के चेयरमैन के सिवन के हवाले से कहा गया है कि सामान्य स्थिति में अंतरिक्ष में सैटलाइट को रिलीज करने के बाद पीएसएलवी रॉकेट का अंतिम स्टेज डेड हो जाता है। इसे स्पेस कचरा मान लिया जाता है। उनके मुताबिक इसरो ऐसी तकनीक पर काम कर रहा है जिसके बाद इस डेड रॉकेट को छह महीने के लिए जीवन दिया जा सकेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि भविष्य में अंतरिक्ष में होने वाली खोज में इससे मदद मिल सकेगी और यह खोज अभी के मुकाबले सस्ती भी होगी। इस खोज के लिए अंतरिक्ष में अलग से किसी रॉकेट को नहीं भेजना पड़ेगा। सिवान के मुताबिक वर्तमान में भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जो इस तकनीक पर काम कर रहा है। रिपोर्ट में इसरो चेयरमैन के हवाले से कहा गया है कि इस तकनीक का इस्तेमाल जीएसएलवी में भी किया जा सकता है। लेकिन अभी इसके प्रपोजल की घोषणा होनी बाकी है।
करना होगा ये काम
स्पेस में भेजा गया रॉकेट अंतिम चरण में सैटेलाइट को छोड़ने के बाद बिना किसी नियंत्रण के उसी ऑर्बिट में घूमता रहता है। इस नई तकनीक के तहत इसको दोबारा काम में लाने के लिए इसमें बने अलग कंपार्टमेंट में कुछ अतिरिक्त ईंधन रखना होगा जिससे यह सैटेलाइट छोड़ने के बाद भी काम में आता रहे। इसके अलावा इसमें बैटरी और सोलर पैनल भी लगाने होंगे। ऐसा करते समय इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि इसके मूल विन्यास से छेड़छाड़ न हो। ऐसे में ग्राउंड स्टेशन से जोड़कर इससे फिर से संपर्क साधा जा सकता है और स्टूडेंट्स इसका इस्तेमाल प्रयोग के लिए कर सकते हैं। टाइटेनिक को लेकर हुआ है चौकाने वाला खुलासा, अमेरिका के खुफिया मिशन से था जुड़ा
स्पेस में भेजा गया रॉकेट अंतिम चरण में सैटेलाइट को छोड़ने के बाद बिना किसी नियंत्रण के उसी ऑर्बिट में घूमता रहता है। इस नई तकनीक के तहत इसको दोबारा काम में लाने के लिए इसमें बने अलग कंपार्टमेंट में कुछ अतिरिक्त ईंधन रखना होगा जिससे यह सैटेलाइट छोड़ने के बाद भी काम में आता रहे। इसके अलावा इसमें बैटरी और सोलर पैनल भी लगाने होंगे। ऐसा करते समय इस बात का खास ध्यान रखना होगा कि इसके मूल विन्यास से छेड़छाड़ न हो। ऐसे में ग्राउंड स्टेशन से जोड़कर इससे फिर से संपर्क साधा जा सकता है और स्टूडेंट्स इसका इस्तेमाल प्रयोग के लिए कर सकते हैं। टाइटेनिक को लेकर हुआ है चौकाने वाला खुलासा, अमेरिका के खुफिया मिशन से था जुड़ा