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Anti-Defection Law: दल बदल कानून पर एक राय बनाना नहीं आसान, प्राविधानों को मजबूत करने व इसमें बदलाव के लिए हो रही है चर्चा

Anti-Defection Law दल बदल कानून 1985 में आया था जिसमें व्यवस्था की गई कि अगर कोई सदस्य यानी विधायक या सांसद अपनी पार्टी छोड़ कर दूसरे दल में शामिल होता है तो उसकी सदस्यता चली जाएगी ।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Updated: Sat, 16 Jul 2022 05:33 PM (IST)
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सदस्यों की पार्टी में निष्ठा बनाए रखना राजनैतिक दलों के लिए है बड़ी चुनौती
माला दीक्षित, नई दिल्ली। सदस्यों की पार्टी में निष्ठा बनाए रखना राजनैतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है। दल बदलुओं से निजात पाने के लिए दल बदल कानून लाया गया था लेकिन स्वार्थ और शुचिता के बीच झूलता यह कानून भी दल बदल रोकने में सफल नहीं हो पा रहा। ऐसे में एक बार फिर दल बदल रोकने और कानूनी प्राविधानों को मजबूत करने के लिए कानून में बदलाव पर चर्चा होने लगी है।

कानून में किस तरह के संशोधन होने चाहिए इस पर लोगों की राय अलग अलग है। कुछ मानते हैं कि सदस्य को अयोग्य ठहराने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष को दे दिया जाना चाहिए तो कुछ का मानना है कि दल बदल की इजाजत ही नहीं होनी चाहिए।

दल बदल कानून 1985 में आया था जिसमें व्यवस्था की गई कि अगर कोई सदस्य यानी विधायक या सांसद अपनी पार्टी छोड़ कर दूसरे दल में शामिल होता है तो उसकी सदस्यता चली जाएगी। लेकिन कानून यह भी कहता था कि अगर किसी दल के एक तिहाई सदस्य मूल दल से अलग होकर एक अलग पार्टी बना लेते हैं या किसी दूसरी पार्टी मे विलय कर लेते हैं तो उस पर दल बदल कानून लागू नहीं होगा।

2003 में हुआ कानून में संशोधन

इस कानून के आने के बाद भी जब दल बदल नहीं रुका तो 2003 में कानून में संशोधन हुआ और एक तिहाई सदस्यों के पार्टी छोड़ने के प्राविधान में बदलाव कर व्यवस्था की गई कि अगर दो तिहाई सदस्य मूल पार्टी छोड़ कर अलग दल बना लेते हैं या किसी और दल में शामिल हो जाते हैं तो उन पर दल बदल कानून लागू नहीं होगा।

दो तिहाई सदस्यों का नियम आने के बाद भी समस्या हल नहीं हो पाई है। राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की अध्यक्षता में एक समिति इस मसले पर विचार कर रही है। लोकसभा के पूर्व महासचिव योगेन्द्र नारायण का मानना है कि दल बदल कानून होना ही नहीं चाहिए। कानून से कोई फायदा तो हुआ नहीं, बल्कि नुकसान हुआ है। इस कानून के बाद विधायक या सांसद पिंजड़े में कैद हो गए हैं।

दल बदल से सरकार के स्थायित्व को संकट पैदा होने की समस्या पर वह कहते हैं कि एक सदस्य दल छोड़े या दस या दो तिहाई, सभी को दल बदलने पर अयोग्य ठहराया जाना चाहिए। इससे दल बदल प्रवृत्ति पर रोक लगेगी।

एक वर्ग का है मानना, अयोग्य ठहराने का अधिकार पार्टी को मिलना चाहिए

व्यवस्था में बदलाव की वकालत करने वाले एक वर्ग का मानना है कि दल बदल करने वाले सदस्य को अयोग्य ठहराने का अधिकार पार्टी को मिलना चाहिए क्योंकि पार्टी ही उस सदस्य को टिकट देती है जिस पर वह चुन कर आया होता है ऐसे में पार्टी के मुताबिक व्यवहार न करने पर उसे अयोग्य ठहराने का अधिकार भी पार्टी अध्यक्ष को होना चाहिए।

माना जा रहा है कि ऐसा कुछ सुझाव सीपी जोशी समिति में भी आया है। सुप्रीम कोर्ट ने 21 जनवरी 2020 को मणिपुर के मामले में दिये फैसले में अयोग्यता के मामले निपटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश या हाई कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश अथवा किसी और बाहरी स्वतंत्र तंत्र को सौंपने पर विचार करने का सुझाव दिया था। दल बदल कानून में बदलाव पर जिम्मेदार संस्थाओं में मंथन चल रहा है।

बताया जाता है कि पीठासीन अधिकारी अयोग्यता के मामले में स्पीकर के अधिकारों में कटौती करने को राजी नहीं हुए थे। गत 15 जुलाई शुक्रवार को दिल्ली में पीठासीन अधिकारियों की फिर बैठक हुई थी जिसमें एक बार फिर इस पर चर्चा हुई। बैठक में तय हुआ कि कानून में बदलाव से पहले संवैधानिक और कानूनी विशेषज्ञों सहित सभी हित धारकों के साथ विचार विमर्श किया जाएगा।