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जागरण Exclusive: सत्य के लिए सुदीर्घ संघर्ष की सफलता का प्रतीक है राम मंदिर- चंपत राय

सैकड़ों वर्षों के संघर्ष और अनगिनत श्रद्धालुओं के बलिदान के बाद अयोध्या में साकार हो रहे भव्य-दिव्य श्रीराम मंदिर में अपने आराध्य को देखने के लिए पूरा देश ही नहीं विश्व भर के रामभक्त आकुल-व्याकुल हैं।यह सब आरएसएस के सजग-समर्पित स्वयंसेवक एवं विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष चंपतराय के संयोजन और मार्गदर्शन में संभव हो रहा है।दैनिक जागरण के अयोध्या ब्यूरो प्रमुख रमाशरण अवस्थी ने चंपतराय से विस्तृत बातचीत की है।

By Jagran NewsEdited By: Sonu GuptaUpdated: Sat, 19 Aug 2023 07:51 PM (IST)
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राम मंदिर आंदोलन और उसकी परिणति के निहितार्थों पर दैनिक जागरण ने की चंपत राय से बातचीत। फोटोः जागरण ग्राफिक्स।
अयोध्या, रमाशरण अवस्थी। सैकड़ों वर्षों के संघर्ष और अनगिनत श्रद्धालुओं के बलिदान के बाद अयोध्या में साकार हो रहे भव्य-दिव्य श्रीराम मंदिर में अपने आराध्य को देखने के लिए पूरा देश ही नहीं विश्व भर के राम भक्त आकुल-व्याकुल हैं। मंदिर के रूप में ढल रही एक-एक शिला स्वर्णिम सांस्कृतिक संभावनाएं भी प्रशस्त कर रही है। इसके साथ ही सनातन संस्कृति का गौरव पुनर्स्थापित हो रहा है। यह सब आरएसएस के सजग-समर्पित स्वयंसेवक एवं विहिप के केंद्रीय उपाध्यक्ष चंपत राय के संयोजन और मार्गदर्शन में संभव हो रहा है।

चार वर्ष पूर्व सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार सरकार ने मंदिर निर्माण के लिए श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का गठन किया और इसके सचिव के रूप में उनको मनोनयन किया। वे राम मंदिर आंदोलन को बचाए रखकर आगे बढ़ने के साथ न्यायालयों में भी रामलला की पैरवी के मुख्य शिल्पी रहे। राम मंदिर आंदोलन और उसकी परिणति के निहितार्थों पर  दैनिक जागरण के अयोध्या ब्यूरो प्रमुख रमाशरण अवस्थी ने चंपत राय से विस्तृत बातचीत की। प्रस्तुत है उस साक्षात्कार के प्रमुख अंश-

सवाल- मंदिर निर्माण के साथ मंदिर आंदोलन पूर्णाहुति की ओर है। इस बारे में क्या अनुभव हैं?

जवाब- आत्मसंतुष्टि। चिर साध्य के लिए किए गए सुदीर्घ प्रयास की सफलता का संतोष। यह संभवत: आनंद से भी बढ़कर है।

सवाल- साढ़े तीन दशक पुराने मंदिर आंदोलन के बारे में आज क्या सोचते हैं?

जवाब- लोकतंत्र में जनता की भावना सर्वोपरि है। मंदिर आंदोलन की सफलता इस तथ्य की परिचायक है। ठीक उसी तरह जब देश के लोगों ने तय कर लिया कि उन्हें ब्रिटिशर्स की अधीनता में नहीं रहना है और इसी के परिणामस्वरूप 15 अगस्त 1947 को देश स्वतंत्र हो गया। राम मंदिर की भी आवाज ऐसी ही थी। सबको यह भान हो गया था कि राम मंदिर एक सत्य है और उसे स्वीकार करना पड़ेगा। 10 नवंबर 1989 को राम मंदिर का शिलान्यास जन भावना का ही प्रकटीकरण था।

सवाल- राम मंदिर का निर्माण तो सदियों के सुदीर्घ संघर्ष और सतत आंदोलन का परिचायक है। आपकी दृष्टि में मंदिर निर्माण की चिर साध पूर्ण होने के निर्णायक तत्व क्या थे?

जवाब- आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया की ओर से रामजन्मभूमि के आसपास कराया गया उत्खनन। प्रारंभ में इसे स्वीकार नहीं किया जा रहा था। डर कतिपय अन्य स्थलों पर पुरातात्विक उत्खनन की रिपोर्ट का था। यदा-कदा यह भी होता है कि उत्खनन में कोई भी उल्लेखनीय अवशेष नहीं मिलते। मैंने इस डर का प्रतिवाद किया। यह कहते हुए कि हमारे पूर्वजों ने किसी झूठ की लड़ाई नहीं लड़ी। यदि वहां मंदिर था, तो उत्खनन में मंदिर के अवशेष मिलने ही चाहिए। मेरा यह दृष्टिकोण सही सिद्ध हुआ। उत्खनन से यह स्पष्ट हो गया कि रामजन्मभूमि के गर्भ में उत्तर भारतीय स्थापत्य शैली वाले मंदिर के प्रचुर अवशेष थे। अदालती लड़ाई में सफलता के लिए विधिवेत्ता हमें यह सुझाव दे रहे थे कि 1949 में रामलला की मूर्ति रखे जाने के तथ्य को गलत मानकर यह दावा किया जाय कि रामजन्मभूमि से श्रीराम की मूर्ति कभी हटी ही नहीं। इस सुझाव के विपरीत मैंने तय किया कि हम सत्य की लड़ाई लड़ रहे हैं और इसके लिए झूठ का आश्रय नहीं लेंगे। अंत में हमारा यह दृष्टिकोण सही सिद्ध हुआ। न्यायालय ने सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के 'एडवर्स पजेसन' को यह कहकर नकार दिया कि रामलला नाबालिग हैं और नाबालिग की संपत्ति पर एडवर्स पजेसन स्वीकृत नहीं है। इसके अतिरिक्त सात जनवरी, 1993 को तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा का धारा 143 के अंतर्गत सुप्रीम कोर्ट से किया गया प्रश्न था कि क्या 1528 से पहले वहां हिंदू स्ट्रक्चर था। इसी सवाल के चलते कालांतर में सरकार को कोर्ट में यह शपथपत्र देना पड़ा कि यदि वहां हिंदू स्ट्रक्चर मिला, तो उसे हिंदुओं को दे दिया जाएगा।

सवाल- हाईकोर्ट ने 2010 के अपने निर्णय में रामजन्मभूमि की तीन हिस्सों में बांट दिया। इस निर्णय को आपने किस रूप में लिया?

जवाब- यह निर्णय देश में अशांति न फैलने पाए, इस दबाव में लिया गया था। कालांतर में निर्णय करने वाली न्यायमूर्तियों की तीन सदस्यीय पीठ में रहे सुधीरनारायण ने स्पष्ट भी किया कि हम पर दबाव था। यद्यपि हाईकोर्ट ने अपने निर्णय में रामजन्मभूमि से जुड़े सभी संशय का समाधान भी किया था।

सवाल- रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सचिव की भूमिका का अनुभव कैसा रहा?

जवाब- दृढ़ता का परिचय देना पड़ा। एक सुझाव आया कि 70 एकड़ के परिसर के केंद्र को ध्यान में  रखकर मंदिर का निर्माण किया जाय, किंतु हम इस पर कायम रहे कि जिस स्थल को मुक्त कराने के लिए हमने लंबा संघर्ष किया, मंदिर उसी स्थल को केंद्र में रखकर निर्मित किया जाएगा।

सवाल- राष्ट्र मंदिर के साथ राम मंदिर को पूरी निष्ठा से शिरोधार्य करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में आपकी क्या धारणा है?

जवाब- मोदी जी के बारे में मुझे अशोक सिंहल जी का कथन याद रहता है। वह कहते थे कि इस आदमी में दैवी शक्ति है। भगवती विराजमान हैं। पृथ्वीराज चौहान के बाद यह देश का पहला शासक है, जिसकी हिंदू जीवन मूल्यों में श्रद्धा है। यह सही भी है, आज दुनिया की बड़ी-बड़ी शक्तियां भी भारत को कार्नर में करने की हैसियत में नहीं हैं।

सवाल- और योगी के बारे में क्या मानना है?

जवाब- मुख्यमंत्री बार-बार अयोध्या आए और आज अयोध्या वैश्विक नगरी के रूप में संवर रही है।

सवाल- राम मंदिर का विषय कभी धर्म और राजनीति के संबंधों का संवाहक रहा है। धर्म की राजनीति के बारे में आपका क्या मानना है?

उत्तर- धर्महीन व्यक्ति तो पशु के समान है। धर्म का अर्थ पूजा-पाठ नहीं है। यह कर्तव्य, प्रामाणिकता और व्यवस्था से जुड़ा विषय है।

सवाल- राम मंदिर के लिए आज पांच हजार करोड़ से अधिक की राशि समर्पित हो चुकी है। निधि समर्पण अभियान शुरू करते समय आपका क्या अनुमान था?

जवाब- मेरा विचार था कि मंदिर निर्माण के लिए एक हजार करोड़ आ जाय तो बहुत है? सात सौ करोड़ रुपये से मंदिर का निर्माण होगा और बाकी राशि बची रह जाएगी। निधि समर्पण अभियान से सिद्ध हुआ कि लोगों में श्रीराम के प्रति अपार श्रद्धा है। मिजोरम के मुख्यमंत्री ने घर बुलाकर निधि समर्पण किया। निधि समर्पण में कम्युनिस्टों, बौद्धों और मुस्लिमों की भी हिस्सेदारी रही।

सवाल- श्रीराम तो सबके हैं और ऐसे में रामजन्मभूमि पर बन रहे मंदिर को आप हिंदुओं का मंदिर नाम देना चाहेंगे या समग्र मानवता का मंदिर?

जवाब- यह हिंदुस्तान के सम्मान का मंदिर है। हमने पांच सौ साल तक लड़कर अपना कब्जा छुड़ा लिया। यही सम्मान इसे राष्ट्र मंदिर के गौरव से विभूषित करता है।

सवाल- राम मंदिर अगले कुछ दिनों में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिया जाएगा। तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की ओर से देश-दुनिया से आने वाले भक्तों के लिए क्या-क्या व्यवस्था की जा रही है?

जवाब- नवनिर्मित मंदिर के गर्भगृह में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का महोत्सव 15 से 24 जनवरी तक संयोजित है। इस उत्सव के लिए व्यापक तैयारी की जा रही है। बड़ी संख्या में साधारण श्रद्धालु से लेकर साधु-संत व विशिष्ट जन इस उत्सव में शामिल होंगे। ट्रस्ट की ओर से छह माह पूर्व से ही प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव की रूपरेखा तय की जा रही है।

सवाल- 1991 में कांग्रेस की तत्कालीन नरसिंहा राव सरकार ने पूजा स्थल कानून बनाया था, जिसमें 15 अगस्त, 1947 से पहले के किसी धर्मस्थल को यथास्थिति में रखने की व्यवस्था की गई। क्या इस कानून में बदलाव होना चाहिए?

जवाब- 1947 के पहले के किसी धर्मस्थल का ही क्यों, किसी भी आयाम में नया शोध न हो, उस पर विचार न किया जाय और उस दिशा में किसी निष्कर्ष की ओर न बढ़ा जाय, यह न्याय संगत नहीं है। हमें सत्य को जानने और उसे प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।

सवाल- भाजपा की तरफ से कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और कुछ अन्य दलों पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाया जाता है। अब विपक्षी दल सरकार पर हिंदू तुष्टीकरण का आरोप लगा रहे हैं। इस संबंध में आपका क्या कहना है?

जवाब- राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप चला करते हैं, किंतु सरकार को वही करना चाहिए, जो राष्ट्रहित में हो।

सवाल- कृष्ण जन्मभूमि और काशी की ज्ञानवापी को लेकर आपका क्या विचार है, इस संबंध में आंदोलन की बात पर विहिप का स्वर उतना मुखर नहीं है, जितना अयोध्या को लेकर था?

जवाब- हमारा दृष्टिकोण स्पष्ट है। वह यह कि आस्था के केंद्रों से न्याय होना चाहिए।  

सवाल - गुलाम नबी आजाद ने कहा है कि सभी मुसलमान पहले हिंदू थे, इस पर आपका क्या कहना है?

जवाब- उन्होंने ऐतिहासिक सच ही कहा है। यद्यपि यह देर से कहा गया सच है, किंतु यह याद रखना चाहिए कि वातावरण अनुकूल होने पर ही इस तरह की सच्चाई कही जा सकती है।