दिल्ली की पहचान कूड़े के पहाड़ या कुतुब मीनार फैसला करें आप
दिल्ली में गाजीपुर लैंडफिल साइट को 15 साल पहले ही बंद करना चाहिए था। लेकिन आज भी धड़ल्ले से वहां कूड़ा गिराया जाता है।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुतुबमीनार की ऊंचाई करीब 73 मीटर है और लैंडफिल साइट की ऊंचाई 45 मीटर हो चुकी है। अगर आंकड़ों की तुलना करें तो कूड़े के पहाड़ों की ऊंचाई कुतुबमीनार से महज 28 मीटर कम है। जल्द कोई उपाय नहीं खोजा गया तो एक दिन ऐसा आएगा जब दिल्ली की पहचान कुछ और हो जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से ये उम्मीद जगी कि जिम्मेदार लोग कुछ प्रभावी कार्रवाई करेंगे। लेकिन शुक्रवार को गाजीपुर लैंडफिल साइट पर जिस तरह से हादसा हुआ, उससे साफ है कि सिविक एजेंसियां अपने काम के प्रति बिल्कुल ही गंभीर नहीं हैं, हालांकि दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने तत्काल प्रभाव से गाजीपुर डंपिंग ग्राउंड पर कूड़ा गिराने पर रोक लगाने को कहा है। अब गाजीपुर की जगह भलस्वा लैंडफिल साइट पर डाला जाएगा। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नवंबर 2017 से राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण गाजीपुर लैंडफिल साइट से कूड़ा उठाने का काम शुरू कर देगा।
गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़े का ढेर इतनी तेजी से नीचे आया कि वहां से गुजर रहीं दो कारें हिंडन नहर में जा गिरीं। कई बाइकें और स्कूटी में कूड़े के चपेट में आने से नहर में समा गईं। यही नहीं कूड़े की रफ्तार की वजह से नहर के किनारे बनी लोहे की रेलिंग भी टूटकर बह गई। कूड़े के निस्तारण को लेकर राजनीतिक दल एक-दूसरे पर टीका टिप्पणी कर रहे हैं। कांग्रेस जहां गाजीपुर लैंडफिल साइट को लेकर आप और भाजपा पर निशाना साध रही है, वहीं आप और भाजपा कूड़े के ढेर के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रही है। कूड़े के पहाड़ दिल्ली की सूरत को कितना बदरंग कर रहे हैं। इसे जानने और समझने से पहले आइए जानने की कोशिश करते हैं कि कूड़े का पहाड़ किस तरह भरभरा कर सड़क पर आ गया, जिसमें दो लोगों की जान चली गई।
- गाजीपुर लैंडफिल साइट 2002 में ही बंद हो जानी थी। लेकिन दिल्ली नगर निगम की लेट लतीफी की वजह से पिछले 15 सालों से जगह नहीं बदली जा सकी है।
- लैंडफिल की साइट मौजूदा समय में 50 मीटर से अधिक हो चुकी है और प्रतिदिन यहां पर तीन हजार टन से भी अधिक कचरा फेंका जाता है।
- पूर्वी दिल्ली नगर निगम ने इस साइट का कोई विकल्प नहीं तलाशा है।
- गाजीपुर लैंडफिल सॉलिड वेस्ट रूल्स 2000 के अनुरूप नहीं बनाया गया है।
- दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की ओर से गाजीपुर लैंडफिल साइट को 2006 से कोई सर्टिफिकेट नहीं मिला है।
दिल्ली से रोज 10 हजार टन हजार टन कचरा निकलता है।
दिल्ली के तीनों कोनों पर कूड़े के पहाड़ हैं, जो लोगों को बीमार कर रहे हैं। कूड़े के पहाड़ से जहरीली गैसें न केवल आबोहवा को खराब कर रही हैं, बल्कि आम लोग खतरनाक बीमारियों का सामना भी कर रहे हैं। कचरे से होने वाले रिसाव से भूमिगत जल प्रदूषित हो रहा है। कचरा डालने की मियाद पूरी होने के बाद भी पिछले 10 से 12 वर्षों से इन जगहों पर कूड़ा डाला जा रहा है।
कचरे से निकलने वाली खतरनाक गैसेंकचरे से निकलने वाली खतरनाक गैसों में मीथेन, नाइट्रोजन आक्साइड, सल्फर डाइ आक्साइड, एसिटिलीन, कार्बन मोनो ऑक्साइड शामिल हैं। इसके अलावा कूड़े के ढेर में या तो आग लग जाती है या जानबूझकर लगा दी जाती है।
हर दिन कितना निकलता है कचरा- उत्तरी दिल्ली नगर निगम से करीब 3200 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है ।
- दक्षिणी दिल्ली नगर निगम से करीब 2800 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है।
- पूर्वी दिल्ली नगर निगम से करीब 2500 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है।
- दिल्ली छावनी परिषद से करीब 70 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है।
- नई दिल्ली नगर पालिका परिषद (एनडीएमसी) से करीब 300 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है।
गाजीपुर उत्तर भारत का सबसे बड़ा डंपिंग ग्राउंड
गाजीपुर लैंडफिल साइट उत्तर भारत का सबसे बड़ा डंपिंग ग्राउंड माना जाता है। 70 एकड़ में फैले इस गाजीपुर लैंडफिल साइट में 3500 मीट्रिक टन से ज्यादा कूड़ा जमा हो चुका है। गाजीपुर लैंडफिल साइट पर हर रोज 600 से 625 ट्रक कूड़ा लेकर आते हैं। लगातार कूड़ा आने से पहाड़ की ऊंचाई 50 मीटर से ज्यादा हो चुकी थी। कई बार इसे बंद करने की या जगह परिवर्तन की मांग उठी थी।
दिल्ली की पहचान कुतुब मीनार या कूड़े के पहाड़- ओखला लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ की ऊंचाई करीब 55 मीटर है। 1996 में इसकी शुरुआत की गई थी। ये जगह करीब 32 एकड़ में बनी है।
- गाजीपुर लैंडफिल साइट की ऊंचाई 45 मीटर है। 71 एकड़ में फैली इस जगह को 1984 में डंपिंग ग्राउंड के लिए चिन्हित किया गया था।
- करीब 51 एकड़ में भलस्वा लैंडफिल साइट को 1994 में शुरू किया गया। यहां पर कूड़े का पहाड़ करीब 40 मीटर ऊंचा है।
कूड़े के पहाड़ से खतराकूड़े के पहाड़ के ऊपरी हिस्से में पड़ा कूड़ा भूरभूरा होता है। इन कूड़ों के पहाड़ों के चारों ओर तीखे ढाल हैं। ऐसे में ऊपरी इलाकों में थोड़ा दबाव पड़ने पर यह काफी तेजी के साथ नीचे आता है।कूड़े के पहाड़ राजधानी के जिस हिस्से में हैं, वहां एक किमी के दायरे में लोगों को सांस लेने में मुश्किल होती है।लैंडफिल साइट के आसपास की जमीन के नीचे का पानी दूषित हो जाता है। कूड़े से भारी धातुएं और दूसरे हानिकारक तत्व बारिश के पानी के साथ जमीन में पहुंच जाते हैं।कचरे के पहाड़ के ऊपर खाने की तलाश में चील व अन्य पक्षी उड़ते रहते हैं, जिसकी वजह से विमान दुर्घटना का खतरा बना रहता है।अब तक किए गए प्रयास- सूखे और गीले कचरे को घर से अलग करने के लिए जागरुकता।- गीले कचरे से खाद, सूखे कचरे को रिसाइकिल करने पर जोर।- दक्षिणी दिल्ली हर दिन 200 मीट्रिक टन हरित कचरे से बना रहा है खाद।यह भी पढ़ें: पर्याप्त अनाज के बावजूद 80 करोड़ लोग सोते हैं भूखे पेट, आखिर ऐसा कब तक