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भारत में लोगों की गजब सोच, नौकरी देने से ज्यादा पसंद है नौकरी करना

वैश्विक उद्यमिता शिखर सम्मेलन जैसे आयोजन हमारे युवा उद्यमियों के लिए उम्मीद की नई किरण साबित होंगे।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 01 Dec 2017 10:53 AM (IST)
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भारत में लोगों की गजब सोच, नौकरी देने से ज्यादा पसंद है नौकरी करना

आशुतोष त्रिपाठी

वैश्विक उद्यमिता शिखर सम्मेलन यानी ग्लोबल आंत्रप्रेन्योरशिप समिट (जीइएस) के 8वें संस्करण का आयोजन दक्षिण एशिया में पहली बार हुआ और इसकी मेजबानी करने का मौका भारत को मिला है। अमेरिकी सरकार के साथ मिलकर नीति आयोग ने इस वैश्विक कार्यक्रम का आयोजन हैदराबाद में किया। दुनिया भर में हुए विकास पर नजर डालें तो यह व्यापक बदलावों के दौर से गुजरा है। अब सिर्फ एक ही चीज ऐसी है जो न सिर्फ पूरी दुनिया को बदलने की ताकत रखती है, बल्कि देश, वर्ग और लिंग जैसी सीमाओं से परे लोगों के जीवन को भी प्रभावित कर सकती है। वह है उद्यमिता और नवोन्मेष, जिसमें एक बेहतर भविष्य की संभावनाएं छिपी हुई हैं। इस नए विकास और उद्यमिता का लाभ उठाने के लिए यह अहम है कि एक वैश्विक समुदाय के तौर पर हम सभी नवोन्मेषकों और उद्यमियों, स्टार्ट-अप और निवेशकों के प्रयासों को प्रोत्साहित करें ताकि उद्यमिता का लाभ हर नागरिक तक पहुंचे। 1ऐसे में इस वर्ष समिट की थीम ‘वूमन फस्र्ट, प्रॉसपैरिटी फॉर ऑल’ यानी सबसे पहले महिला, बाद में सभी की समृद्धि उद्यमिता के एक खास पहलू की ओर इशारा करती है।

महिला उद्यमियों के विचारों में निवेश करने से न सिर्फ आर्थिक वृद्धि को बल मिलता है बल्कि इससे ऐसे नवोन्मेष को भी बढ़ावा मिलता है जिससे दुनिया भर के लोगों को पेश आ रही समस्या का समाधान संभव है। उद्यमिता, नवोन्मेष और निवेश में महिलाओं की उन्नति ही समृद्ध समाज की कुंजी है। मगर इस बात से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता कि महिला उद्यमियों के साथ अब भी दुनिया भर में भेदभाव का सिलसिला बदस्तूर जारी है। जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी और उनकी सलाहकार इवांका ट्रंप ने अपने संबोधन में जिक्र किया कि हारवर्ड बिजनेस रिव्यू रिपोर्ट में पाया गया कि निवेशक पुरुषों से उनके संभावित लाभ के बारे में पूछते हैं, लेकिन बात जब महिलाओं की हो तो उनका सवाल नुकसान की आशंका से जुड़ा होता है। शायद यही वजह है कि 2016 में वेंचर कैपिटल फंडिंग में महिला उद्यमियों की हिस्सेदारी 3 फीसद से भी कम थी। 1इवांका ट्रंप की मौजूदगी की वजह से भी यह सम्मेलन सुर्खियों में बना रहा। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहीं इवांका के इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के कूटनीतिक निहितार्थ भी निकाले जा रहे हैं।

कूटनीतिक दृष्टिकोण से इतर कारोबारी परिप्रेक्ष्य में भी यह सम्मेलन भारत के लिए खासा महत्व रखता है। पहली बात,ऐसे वैश्विक सम्मेलन से भारत में नवोन्मेष, उद्यमिता और कौशल विकास को बढ़ावा देने की सरकार की मंशा को बल मिलता है। स्टार्ट-अप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे सरकार के कार्यक्रम इस उद्देश्य को पूरा करने की कोशिशों को दर्शाते हैं, लेकिन जीइएस जैसे सम्मेलनों से सरकार को इन्हें दुनिया भर से आए निवेशकों के सामने पेश करने का मंच मिलता है। विश्व बैंक द्वारा कारोबारी सुगमता सूची में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 100 देशों में भारत को मिली जगह, वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज द्वारा रेटिंग में किया गया सुधार, एक अन्य रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पूअर्स द्वारा भारत को लेकर अपनाया गया सकारात्मक रुख निश्चित तौर पर भारत के कारोबार के लिहाज से एक बेहतर स्थान बनने की दिशा में बढ़ने के सूचक साबित हुए हैं।

ऐसे में भारत के लिए ऐसे वैश्विक सम्मेलनों का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारत भले ही दुनिया में नए विचारों को जन्म देने के मामले में अग्रणी रहा हो, लेकिन नए कारोबार की शुरुआत यानी उद्यमिता के लिहाज से भारत के नाम कुछ खास उपलब्धियां दर्ज नहीं हैं। ब्राजील, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसी अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं से तुलना करें तो भारत में लोग उद्यमिता को करियर में विकल्प के तौर पर चुनने से कतराते हैं। उद्यमिता पर शोध करने वाले एक वैश्विक समूह ग्लोबल इंटरप्रेन्योरशिप मॉनिटर द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, भारत में सिर्फ 39.3 फीसद लोग ही उद्यमिता या अपना नया कारोबार शुरू करने को करियर के लिहाज से एक अच्छा विकल्प मानते हैं। जबकि चीन में उद्यमिता को बेहतर विकल्प मानने वालों की तादाद 65.9 फीसद है। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका में 73.8 फीसद और ब्राजील में 77.7 फीसद लोग अपना नया कारोबार शुरू करने को एक अच्छा विकल्प मानते हैं।

भारत में 38 फीसद भारतीय वयस्क मानते हैं कि एक नया कारोबार शुरू करने के लिहाज से देश में अच्छे अवसर उपलब्ध हैं जबकि 38 फीसद में यह आत्मविश्वास है कि उनमें एक नया कारोबार शुरू करने की क्षमताएं हैं। वहीं 44 फीसद का मानना है कि असफल होने का डर उन्हें कारोबार शुरू करने का जोखिम उठाने से रोकता है। भारत में 3.2 फीसद वयस्क नए नवेले उद्यमी बने हैं जो एक नए कारोबार की शुरुआत करने में पूरी तन्मयता से जुटे हुए हैं। इसके अलावा नया कारोबार शुरू कर चुके लोगों की तादाद 7.7 फीसद है। इस श्रेणी वे लोग शामिल हैं जो 42 महीने से कम, लेकिन तीन महीने से अधिक समय से अपना कारोबार कर रहे हैं। 1इन तमाम आंकड़ों के बीच एक सकारात्मक पहलू यह है कि कारोबार खत्म कर बाहर निकलने वाले लोगों के मामले में भारत की स्थिति काफी अच्छी है। इस सर्वेक्षण में शामिल किए गए देशों में से भारत दूसरा ऐसा देश है जहां कारोबार खत्म करने की दर न्यूनतम स्तर पर है।

इन आंकड़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारत के लोग नए कारोबार शुरू करने से बचते हैं और नौकरी देने वाला बनने के बजाय नौकरी करना पसंद करते हैं। ऐसे में उन कारकों पर गौर करना भी बनता है जिनके कारण भारतीय कारोबारों की शुरुआत करने से कतराते हैं। जीइएम नेशनल एक्सपर्ट्स सर्वे 2015 के मुताबिक धन की कमी, सरकार नियमों की लंबी फेहरिस्त, जटिल कर ढांचा, प्राथमिक एवं माध्यमिक स्कूल के स्तर पर उद्यमिता संबंधी शिक्षा, संस्कृति और सामाजिक कायदे-कानून भारत में उद्यमिता के फलने-फूलने में बाधा पैदा करने वाले प्रमुख कारक हैं। लिहाजा सरकारी प्रयासों के साथ ही इस समिट जैसे मंच भारतीय नवोन्मेषकों और उद्यमियों के लिए आशा की नई किरण साबित होंगे।

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार और न्यूज एप इनशॉर्ट्स में एसोसिएट एडिटर हैं)