CBI को न सौंपी जा सके चारा घोटाले की जांच, लालू ने लगाया था एड़ी चोटी का जोर
लालू चारा घोटाले की जांच सीबीआई को नहीं सौंपना चाहते थे, इसके खिलाफ कोर्ट से लेकर सियासी दांव खेलने से भी वह नहीं चूके थे।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को सीबीआई की विशेष अदालत में शुक्रवार को सजा सुनाई जाएगी। उनकी सजा का ऐलान लगातार दो दिन से टल रहा है। इसकी वजह इस मामले में शामिल अन्य अभियुक्तों की सजा का ऐलान है। दरअसल कोर्ट अभियुक्तों के नाम के अनुसार अपना काम कर रहा है जिसकी वजह से गुरुवार को लालू का नंबर नहीं आ पाया था, लिहाजा मुमकिन है कि आज उन्हें कोर्ट सजा सुना दे। बहरहाल हम आपको बता दें कि आज जिस मामले में उन्हें सजा सुनाई जानी है वह चारा घोटाले से ही जुड़ा है। यह मामला देवघर ट्रेजरी से 1990-94 के बीच 84.5 लाख रुपये की अवैध निकासी से संबंधित है। इस मामले में 16 आरोपियों को 23 दिसंबर को कोर्ट ने दोषी ठहराया था, जबकि बिहार के पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा समेत छह को बरी कर दिया था। आपको बता दें कि जब इस मामले का खुलासा हुआ था तब लालू ने पूरी ताकत लगा दी थी कि यह मामला सीबीआई को न सौंपा जाए।
अवैध निकासी का मामला
950 करोड़ के चारा घोटाले में 63 में 53 मामले झारखंड अलग राज्य बनने के बाद हस्तांतरित हो गए थे। लालू को करीब आधा दर्जन मामलों में आरोपी बनाया गया था। इनमें से एक मामला आय से अधिक संपत्ति का भी था। चाईबासा कोषागार से वर्ष 1992 से 1995 के बीच करोड़ों रुपये की अवैध निकासी के मामले की जांच सीबीआई ने वर्ष 1996 में अपने हाथों में ली थी। इसमें लालू यादव के अलावा उनके नजदीकी एवं पूर्व सांसद आरके राणा, जदयू विधयक जगदीश शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री डा. जगन्नाथ मिश्र, कई आईएएस अधिकारी सहित 44 आरोपी थे इस मामले में कुल 330 लोगों की गवाही हुई।
सीबीआई जांच के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे थे लालू
जब जनवरी 1996 में चारा घोटाले का खुलासा हुआ तो लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि जिस किसी का नाम एफआईआर में है उनके मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत का गठन किया जाएगा। लेकिन उस वक्त शायद उन्हें खुद इस बात का एहसास नहीं था कि इसी विशेष अदालत के हाथों किसी दिन वह भी सजा पाने के लिए लाइन में लगे होंगे। हालांकि इस मामले की जांच सीबीआई से करवाने की विपक्ष की मांग को लालू ने उस वक्त सिरे से खारिज कर दिया था। लेकिन विपक्ष भी उन्हें छोड़ने के मूंड में नहीं था। यही वजह थी कि इसको लेकर भाजपा और समता पार्टी ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपी थी। बाद में लालू इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचे थे लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ। राज्य का बंटवारा होने के बाद इस सीबीआई की जांच रांची हाईकोर्ट की देखरेख में हुई थी। लालू यादव यह आरोप लगाते रहे हैं कि सीबीआई ने उन्हें जानबुझ कर फंसाया है।
जांच से बचने के लिए लालू का सियासी दांव
जनवरी 1996 में चारा घोटाला जब उजागर हुआ था उस वक्त केंद्र में कांग्रेस सत्ता में थी और उसके मुखिया पीवी नरसिम्हाराव थे। लेकिन मई 1996 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आने से पिछड़ गई और अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी थी। यह सरकार केवल 13 दिनों की रही। इसके बाद सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे थे एचडी देवगौड़ा जो तीसरे मोर्चे का नेतृत्व करते हुए प्रधनमंत्री बने थे। इस सरकार को कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया था। लालू का भी इस सरकार को समर्थन था। यही वह वक्त भी था जब लालू ले अपनी सारी ताकत सीबीआई जांच को प्रभावित करने के लिए लगा दी थी। हालांकि इसका ज्यादा असर नहीं पड़ा, फिर भी कुछ में वह जरूर कामयाब हो गए थे। लालू ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी के जरिए सरकार पर दबाव बनवाया था, लेकिन देवेगौड़ा के सामने सब बेकार रहा। इससे खफा होकर सीताराम ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और नतीजतन सरकार गिर गई थी। उस वक्त सीबीआई के डायरेक्टर जोगिंदर सिंह थे। जोगिंदर सिंह ने अपने एक लेख में लालू द्वारा सीबीआई पर दबाव बनाने का जिक्र भी किया था।
चार्जशीट दायर करने की राज्यपाल ने दी थी अनुमति
मई 1997 में बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डा. एआर किदवई ने सीबीआई को लालू यादव के खिलाफ चार्जशीट दायर करने की अनुमति दी थी, जिसको लेकर लालू न सिर्फ डरे हुए थे बल्कि गुस्से में भी थे। इस थोड़े से अंतराल और राजनीतिक उठापठक में आईके गुजराल देश के प्रधानमंत्री बनें। लालू के कहने पर उन्होंने 30 जून, 1997 को जोगिंदर सिंह को सीबीआई के निदेशक के पद से हटा दिया था। उनकी जगह सीबीआई की कमान आरसी शर्मा को सौंप दी गई। यहां आपको बता दें कि इस घोटाले की जांच में डाक्टर उपेन बिस्वास की बड़ी भूमिका रही है। इस मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए देश की शीर्ष कोर्ट ने यहां तक कहा था कि उनके आदेश के बिना डॉक्टर बिस्वास को जांच से अलग नहीं किया जा सकेगा।
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