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नीलाम हो गया गोलकुंडा की खान से निकला नायाब गुलाबी हीरा, नेपोलियन के मुकुट में था लगा

फ्रांस की राजशाही का गवाह रहा ‘ले ग्रांड माजारिन’ हीरा आज नीलाम हो रहा है। यह हीरा गोलकुंडा की खान से निकाला गया था। गुलाबी रंग यह हीरा फ्रांस के सभी राजाओं के सिर सजा था।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Wed, 15 Nov 2017 11:48 AM (IST)
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नीलाम हो गया गोलकुंडा की खान से निकला नायाब गुलाबी हीरा, नेपोलियन के मुकुट में था लगा

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। 16वीं शताब्दी में गोलकुंडा की खान से एक बेहद खूबसूरत गुलाबी हीरा निकाला गया था। इसकी सुंदरता को देखते हुए इसको ले ग्रांड माजारिन का नाम दिया गया था। 19.07 कैरेट के इस हल्‍के गुलाबी रंग के हीरे की चमक एशिया से लेकर यूरोप तक दिखाई दी। इसकी खासियत थी कि यह हीरा नेपोलियन बोनापार्ट समेत फ्रांस के तमाम राजाओं के ताज की शान बना। अब यही हीरा नीलाम हो गया है। आज यानि 14 नवंबर को इस हीरे की नीलामी स्विट्जरलैंड के शहर जिनेवा के क्रिस्‍टीज ऑक्‍शन हाउस में होने वाली है। हल्‍के गुलाबी रंग के इस हीरे ने फ्रांस की सत्‍ता में आए उतार-चढ़ाव को देखा है। यह पहला मौका नहीं है कि जब गोलकुंडा की खान से निकले हीरे की नीलामी किस्‍टीज में हो रही हो। इससे पहले 2012 में गोलकुंडा खान से निकले एक हीरे की नीलामी लगभग दो करोड़ दस लाख डॉलर यानी लगभग 115 करोड़ रूपये में हुई थी।

इसका राजशाही इतिहास

ले ग्रांड माजारिन को 1661 में फ्रांस के राजा लुई चौदह को भेंट किया गया। इसके बाद फ्रांस का जो भी राजा बना उसने इस हीरे वाले ताज को अपने सिर पर पहना। नीलामी घर क्रिस्टीज यूरोप और एशिया के चैयरमैने फ्रांको कुरी के मुताबिक यह हीरा सुंदरता की चिरकालीन निशानी है, जिसने फ्रांस के सात राजाओं और रानियों के शाही खजाने की शोभा बढ़ाई। इससे भी बड़ी बात यह है कि यह 350 साल तक यूरोपीय इतिहास का गवाह है। यह हीरा अपने आप में एक क्लास है।

गोलकुंडा की खदान से निकला था ये हीरा

यह हीरा दक्षिण भारत में हीरों के लिए मशहूर रही गोलकुंडा की खदान से निकाला गया था। इस हीरे का नाम इटली के कार्डिनल और कूटनीतिक अधिकारी कार्डिनल मजारिन के नाम पर पड़ा। वह फ्रांसीसी राजाई लुई तेरह और लुई चौदह के चीफ मिनिस्टर थे। यहां पर ध्‍यान रखने वाली बात यह भी है कि गोलकुंडा की खान से कई बेहद खूबसूरत हीरे निकाले गए जो दुनियाभर में कई राजा और रानियों के मुकुट का हिस्‍सा बने। इसमें कोहिनूर जो कि ब्रिटेन की महारानी के मुकुट में जड़ा गया और रिजेंट डायमंड भी शामिल है। 1792 में यह हीरा चोरी हो गया था लेकिन बाद में इसको तलाश लिया गया।

कीमत सुनकर रह जाएंगे दंग

फ्रांस की क्रांति के बाद यह हीरा नेपोलियन प्रथम और नेपोलियन तृतीय के राजमुकुट का हिस्सा बना। 1870 में नेपोलियन तृतीय के पतन के बाद 1887 में यह हीरा पहली बार नीलाम हुआ था। अब 130 साल बाद यह फिर से नीलाम होने के लिए बाजार में मौजूद है। हालांकि इस हीरे के खरीददार क्रिस्टीज का नाम तो नहीं बताया है लेकिन अनुमान लगाया जा रहा है कि यह खूबसूरत हीरा 60 से 90 लाख डॉलर में बिकने वाला है। हीरे की नीलामी 14 नवंबर को जिनेवा में होगी।

गोलकुंडा की खान से निकले दूसरे बेशकीमती हीरे

दरिया-ए-नूर

हल्का गुलाबी रंग का यह हीरा वजन में करीब 182 कैरेट का था। इसका नाम था दरिया ए नूर। यह दो शब्दों से मिलकर बना है। दरिया मतलब सागर और नूर का मतलब रौशनी। इसका मतलब है रोशनी का सागर। 17वीं शताब्‍दी में फ्रांस का एक सुनार जिसका नाम तैवेर्निएर था, भारत के आंध्रप्रदेश में आया था। यह हीरा गोलकुंडा की खान में उसकी ही खोज का नतीजा था। उस वक्‍त इसका वजन 242 कैरेट था। इस सुनार ने इसे ग्रेट टेबल डायमंड नाम दिया। लेकिन इसको इत्‍तफाक ही कहा जाएगा कि यह गलती से दो टुकड़ों में बंट गया। इसके बाद एक टुकड़ा दरिया-ए-नूर बना तो दूसरा बना कोहिनूर।
 

कोहिनूर (फ़ारसी: कूह-ए-नूर)

कोहिनूर (फ़ारसी: कूह-ए-नूर) एक 105 कैरेट (21.6 ग्राम) का हीरा है जो किसी समय विश्व का सबसे बड़ा ज्ञात हीरा रह चुका है। 'कोहिनूर' का अर्थ है- आभा या रोशनी का पर्वत। नादिरशाह ने जब दिल्‍ली पर हमला कर इसमें जीत हासिल की जो जो चीजें वह अपने साथ फारस ले गया था उसमें यह हीरा भी शामिल था। इसकी खूबसूरती को देखकर वह सहसा कह उठा था ‘कोह-इ-नूर’। इसके बाद से ही इस हीरे को इस नाम से जाना गया। यह कई मुगल व फारसी शासकों से होता हुआ, अन्ततः ब्रिटिश शासन के अधिकार में लिया गया, व उनके खजाने में शामिल हो गया, जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री, बेंजामिन डिजराएली ने महारानी विक्टोरिया को 1877 में भारत की सम्राज्ञी घोषित किया। अन्य कई प्रसिद्ध जवाहरातों की भांति ही, कोहिनूर की भी अपनी कथाएं रही हैं। इससे जुड़ी मान्यता के अनुसार, यह पुरुष स्वामियों का दुर्भाग्य व मृत्यु का कारण बना, वहीं स्त्री स्वामिनियों के लिये भाग्‍य उदय करने वाला बना।

ग्रेट मुगल

गोलकुंडा की खान से 1650 में जब यह हीरा निकला तो इसका वजन 787 कैरेट था। यह हीरा कोहिनूर से करीब छह गुना भारी था। यह भी कहा जाता है कि कोहिनूर इसका ही एक हिस्‍सा था। इसकी तुलना इरानियन क्राउन में जड़े बेशकीमती दरिया-ए-नूर हीरे से भी की जाती है। आज इस हीरे का कुछ पता नही है लेकिन अपुष्‍ट जानकारी के मुताबिक अब यह हीरा 280 कैरेट का हो चुका है। 1665 में फ्रांस के जवाहरातों के व्यापारी ने इसे अपने समय का सबसे बड़ा रोजकट डायमंड बताया था। यह हीरा एक समय नादिरशाह के खजाने की शान हुआ करता था।

आगरा और अहमदाबाद डायमंड

अहमदाबाद डायमंड को बाबर ने 1526 में पानीपत की लड़ाई के बाद ग्वालियर के राजा विक्रमजीत को हराकर हासिल किया था। तब 71 कैरेट के इस हीरे को दुनिया के 14 बेशकीमती हीरों में शुमार किया जाता था। हल्की गुलाबी रंग की आभा वाले 32.2 कैरेट के आगरा डायमंड को हीरों की ग्रेडिंग करने वाले दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ऑफ अमेरिका ने वीएस-2 ग्रेड दिया था। इस दुर्लभ हीरे को आखिरी बार 1990 में लंदन के क्रिस्ले ऑक्सन हाउस की नीलामी में देखा गया था। तब हांगकांग की शीबा कॉरपोरेशन ने इसे फोन से लगाई गई बोली में करीब 34 करोड़ रुपये (6.9 मिलियन डॉलर) में खरीदा था। इसी तरह नाशपाती के आकार वाले 78.8 कैरेट के अवध की बेगम हजरत महल के अहमदाबाद डायमंड को 1995 में क्रिस्ले में 4.3 मिलियन डॉलर यानी करीब 20 करोड़ 75 लाख रुपये में नीलाम किया गया था। आज यह हीरा भी विदेश में है।

द रिजेंट

1702 के आसपास जब यह हीरा गोलकुंडा की खान से निकाला गया था तब इसका वजन 410 कैरेट था। मद्रास के तत्कालीन गवर्नर विलियम पिट के हाथों से होता हुआ द रिजेंट फ्रांसीसी क्रांति के बाद नेपोलियन के पास पहुंचा था। नेपोलियन को यह हीरा इतना पसंद आया कि उसने इसे अपनी तलवार की मूठ में जड़वा दिया। अब 140 कैरेट का हो चुका यह हीरा पेरिस के लेवोरे म्यूजियम में रखा गया है।

ब्रोलिटी ऑफ इंडिया

90.8 कैरेट के ब्रोलिटी को कोहिनूर से भी पुराना बताया जाता है। 12वीं शताब्दी में फ्रांस की महारानी ने इसे खरीदा था। कई सालों तक गुमनाम रहने के बाद यह हीरा 1950 में उस वक्‍त सामने आया जब न्यूयॉर्क के हेनरी विन्सटन ने इसे भारत के किसी राजा से खरीदा।

ओरलोव

लगभग 18वीं शताब्दी के इस 200 कैरेट के हीरे को वर्षों पहले मैसूर के मंदिर की एक मूर्ति की आंख से फ्रांस के व्यापारी ने चुराया था। बताया जाता है कि आज यह हीरा रूस के रोमनोव वंश के ऐतिहासिक ताज में जड़े साढ़े आठ सौ हीरे-जवाहरातों में से एक है।

आर्चड्यूक जोसफ़ ऑगस्ट

इस हीरे का नाम आर्चड्यूक जोसफ़ था। यह हीरा 76 कैरट का था और ये हीरा दुनिया के सबसे ख़ूबसूरत हीरों में से एक था। इस हीरे को एक बेनाम खरीददार ने खरीदा था। इससे पहले वर्ष 1993 में ये हीरा 65 लाख डॉलर में बिका था। उस वक्‍त गोलकुंडा खान से निकलने वाले किसी भी हीरे की ये सबसे अधिक कीमत थी। इसके अलावा इस हीरे ने बिना रंग के हीरे की प्रति कैरट कीमत का भी विश्व रिकॉर्ड बनाया था। इसका नाम ऑस्ट्रिया के आर्चड्यूक जोसफ़ ऑगस्ट के नाम पर रखा गया है जो हंगरी की हैप्सबर्ग राजघराने के एक राजकुमार थे। कहा जाता है कि जोसफ़ ऑगस्ट ने इस हीरे को 1933 में एक बैंक में रखा था। तीन साल बाद इस हीरे को एक यूरोपीय बैंकर को बेच दिया गया और इसे फ्रांस में एक सेफ डिपोजिट बॉक्‍स में रखा गया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान ये ऐसे ही लोगों की नज़रों से छिपा रहा। वर्ष 1961 में और फिर नवंबर 1993 में क्रिस्टीज़ की एक नीलामी में यह हीरा दुनिया के सामने आया था।

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