आबोहवा पर भारी पड़ती जीवनशैली,कब तक हम दूसरों को देते रहेंगे दोष
प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए और भविष्य की बेहतरी के लिए न सिर्फ सरकार को सचेत होना होगा, बल्कि आमजन को भी अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा।
प्रतिष्ठित जर्नल लैंसेट के ताजा अंक में प्रकाशित स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2017 की रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2015 के दौरान पूरे विश्व में 90 लाख से अधिक व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु केवल प्रदूषण के कारण हुई। यह संख्या एड्स, टीबी और मलेरिया से होने वाली संयुक्त कुल मृत्यु के तीन गुना से भी अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण के कारण मौतों के संदर्भ में 25 लाख से अधिक मृत्यु के साथ भारत पहले स्थान पर और 18 लाख मृत्यु के साथ चीन दूसरे स्थान पर है। जाहिर है हमारे यहां हवा में घुलते इस जहर के चलते हालात आपातकाल से हो चले हैं। यही वजह थी कि इस बार दिल्ली में दीवाली पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पटाखे बेचने पर भी प्रतिबंध लगाया गया। हालांकि सच यह भी है कि वायु प्रदूषण के लिए सिर्फ पटाखे जिम्मेदार नहीं हैं। पर्व-त्योहारों को पर्यावरण बिगाड़ने का माध्यम न बनाया जाय यह जरूरी है, पर उतना ही जरूरी यह भी है कि आमजन की बदलती जीवनशैली को लेकर भी सोचा जाय, क्योंकि इस बार न्यायालय के आदेश के बावजूद दिल्ली में पटाखे चलाए गए तो कई शहरों में गाड़ियों की बिक्री ने भी रिकॉर्ड बनाए।
पर्यावरण के लिए जीवनचर्या भी जिम्मेदार
पर्यावरण को बिगाड़ने और आबोहवा को इस हद तक जहरीली बनाने के लिए आज के दौर की जीवनचर्या कम जिम्मेदार नहीं है। इसे दिखावे की संस्कृति का खेल कहिए या आरामतलबी का जुनून। अब जरूरतों पर इच्छाएं भारी पड़ रही हैं। बिना जरूरत के वाहन खरीदने और कदम भर भी पैदल न चलने की जीवनशैली हमारे भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रही है। हर तरह की सुख-सुविधा के आदी हो चले हम पहले इन चीजों के बिना भी सहज जीवन जीया करते थे। आज घरों और दफ्तरों में दिन-रात चलने वाले अनगिनत उपकरण ऐसे हैं जो प्रदूषण फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि हवा में जहर घोलने में आमजन की भी बड़ी भूमिका है।
बीते कुछ सालों में लोगों की जीवनशैली और आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव आया है। लोगों में निजी वाहन की चाहत बढ़ी है। हालांकि इसका बड़ा कारण सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का कमजोर होना भी है, पर इस बदलती भोगवादी जीवनशैली में दिखावा संस्कृति की सोच ने इस चाहत को और बल दिया है। एक अनुमान के मुताबिक 2007 से 2011 तक दिल्ली में वाहनों की संख्या 37 फीसद तक बढ़ी है। राजधानी दिल्ली में ही पिछले तीस सालों में वाहनों की संख्या तकरीबन डेढ़ लाख से बढ़ कर 30 लाख से भी अधिक हो गई है। हर रोज दिल्ली की सड़कों पर चौदह सौ नई कारें आ रही हैं। भारत में हर साल कार कंपनियों द्वारा कार के नए-नए मॉडल बाजार में उतारे जाते हैं, जिन्हें ग्राहक भी खूब मिलते हैं।
बाजार का प्रदूषण से सीधा संबंध
त्योहारी मौसम में तो कई सारी रियायतें देकर उपभोक्ताओं को ललचाया जाता है। निजी वाहनों के विज्ञापन को लेकर कंपनियां जो आक्रामक रणनीति अपनाती हैं उसकी चपेट में मध्यवर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक सभी शामिल हैं। हमारे यहां कारें ही नहीं दोपहिया वाहनों का बाजार भी खूब बड़ा है। माना जा रहा है कि आर्थिक असमानता और गरीबी का दंश ङोल रहे हमारे देश में 2020 तक लग्जरी कारों का बाजार तीन गुना हो जाएगा। प्रतिदिन सड़क पर उतर रहे नए वाहनों के कारण प्रदूषण का स्तर तेजी बढ़ रहा है। समस्या यह भी है कि हमारे यहां वाहनों की जांच की कोई उचित व्यवस्था नहीं है। बरसों पुरानी गाड़ियां भी धुआं उड़ाते हुए सड़कों पर दौड़ती नजर आती हैं। इतना ही नहीं वर्तमान में वाहनों के लिए मिलने वाले पेट्रोल-डीजल में भी मिलावट होती है। जिसकी वजह से गाड़ी के धुएं से निकलने वाले जहरीले रसायन त्वचा, आंख, फेफड़े के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। इतना ही नहीं सर्दी के मौसम में हीटर और गर्मी के मौसम में एसी का इस्तेमाल भी अब हर घर में आम है। ऐसे में आबादी के लिहाज से देखा जाए तो हवा में बढ़ते जहर के लिए सुविधासंपन्न जीवनशैली भी कम जिम्मेदार नहीं।
'दिल्ली को गैस चैंबर में न करें तब्दील'
प्रदूषण के खतरनाक स्तर तक पहुंचने को लेकर पहले भी सुप्रीम कोर्ट दिल्ली को गैस चैंबर बताते हुए चिंता जाहिर कर चुका है। कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार की कार्य योजनाओं को उस समय भी इस समस्या से जूझने में नाकाफी भी बताया था। यूं भी आमजन की जागरूकता और भागीदारी के बिना प्रदूषण को काबू में नहीं किया जा सकता। आबोहवा को जहरीला बनने से रोकने और पर्यावरण को सहेजने की जिम्मेदारी समग्र समाज की है। यही वजह है कि यह काम कोई प्रशासनिक नियम या कानून नहीं कर सकते। यह दुखद ही है कि प्रदूषण के कारण सांस संबंधी रोगों के बढ़ने से दिल्ली में ही प्रतिदिन करीब 23 लोगों की जान जा रही है और न जाने कितने बच्चे-बूढ़े-जवान सांस संबंधी रोगों से ग्रस्त हो रहे हैं। ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अगर कारगर उपाय नहीं किए गए तो वर्ष 2050 तक हर बरस तकरीबन 66 लाख लोग अकाल मृत्यु के शिकार हो सकते हैं।
कानून के क्रियान्वयन की जरूरत
यकीनन इस जहरीली हवा से उपजा यह सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बेहद गंभीर है। ऐसे में वाहनों की खरीद और बिक्री के लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए। संभावित खतरों को देखते हुए ईंधन की गुणवत्ता, उत्सर्जन के मानक और प्रदूषण नियंत्रक कानूनों को भी कठोरता से लागू किया जाना चाहिए। आमजन भी आने वाले कल की बेहतरी के लिए इन नियमों का पालन करें। साथ ही कार पूलिंग जैसे साझा परिवहन को बढ़ावा देना चाहिए। निजी वाहनों के प्रयोग में कमी लाने के लिए जन जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए। सरकार सार्वजनिक यातायात सुविधाओं का दुरुस्त करने की भी सोचे। जाहिर है प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए और भविष्य की बेहतरी के लिए न केवल सरकार को सचेत होना होगा, बल्कि आमजन को भी अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना होगा। इसके लिए केवल आरामतलबी और दिखावे के लिए वाहन खरीदने या सवारी करने की सोच भी बदलनी होगी।
डॉ. मोनिका शर्मा (लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)