Move to Jagran APP

जीरो माइल की कहानी है बड़ी रोचक, जानते हैं आपके शहर में कहां है यह?

दरअसल जीरो माइल किसी भी शहर, गांव या देश की वह जगह होती है, जहां से अन्य शहर, गांव या देश के साथ उसकी दूरी मापी जाती है।

By Digpal SinghEdited By: Updated: Wed, 28 Jun 2017 05:12 PM (IST)
Hero Image
जीरो माइल की कहानी है बड़ी रोचक, जानते हैं आपके शहर में कहां है यह?

नई दिल्ली, [स्पेशल डेस्क]। सड़क पर अपनी गाड़ी या सार्वजनिक वाहनों में सफर करते हुए आपने माइलस्टोन (मील का पत्थर) तो देखा ही होगा। उस मील के पत्थर पर उस स्थान से रास्ते में आने वाले शहरों, गांवों की दूरी लिखी होती है। क्या कभी आपने किसी मील के पत्थर पर '0' मील या किलोमीटर लिखा देखा है? नहीं देखा है तो फिर हो सकता है आपको अपने शहर या गांव का जीरो माइल भी नहीं पता होगा। अगर ऐसा है तो फिर यह खबर खासतौर पर आपके लिए है। 

क्या होता है '0' माइल

दरअसल जीरो माइल किसी भी शहर, गांव या देश की वह जगह होती है, जहां से अन्य शहर, गांव या देश के साथ उसकी दूरी मापी जाती है। उदाहरण के लिए देश की राजधानी दिल्ली और उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के बीच की दूरी (ताज एक्सप्रेस वे से) 555 किमी है। दिल्ली और लखनऊ दोनों ही शहर अपने आप में काफी बड़े हैं। ऐसे में इन दोनों ही शहरों में कोई तो ऐसा स्थान होगा जहां से दूरी मापी गई होगी। दिल्ली में '0' स्थान से लखनऊ में '555' स्थान तक। दोनों ही शहरों के यह '0' माइल किसी खास स्थान पर तो होंगे ही।

देश की राजधानी दिल्ली का जीरो माइल

देश की राजधानी दिल्ली देश की राजनीति का भी केंद्र है। इसके अलावा यहां रोज लाखों लोग रोजगार की तलाश में भी पहुंचते हैं। यह एक ऐसा शहर है जिसका इतिहास भी काफी समृद्ध है। पृथ्वीराज चौहान से लेकर मुगल शासन और फिर अंग्रजों द्वारा इसे देश की राजधानी घोषित किए जाने तक इस शहर ने काफी कुछ देखा है। बड़े-बड़े महापुरुषों और प्रधामंत्रियों के समाधि स्थल भी यहां हैं। शायद आप जानते हों कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का समाधि स्थल राजघाट दिल्ली का जीरो माइल है। राजघाट से ही शहर व देश के अन्य स्थानों की दूरी का सड़क मार्ग से मापन किया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के समाधि स्थल राजघाट की परिधि में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू सहित कई प्रधानमंत्रियों के समाधि स्थल हैं। बता दें कि 16वीं सदी में मुगलकाल के दौरान यह स्थान यमुना का तट हुआ करता था और वर्तमान राजघाट शाहजहांनाबाद का मुख्य घाट हुआ करता था।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के सेवानिवृत्त निदेशक जमाल अहमद कहते हैं कि 16वीं सदी में शेरशाह सूरी ने देशभर में जमीन को मापने की प्रक्रिया शुरू करवाई थी। उसी दौरान दूरी का मापन तय करने के लिए जगह-जगह कोस मीनार तैयार किए गए थे। यमुना के किनारे स्थित भव्य घाट होने के कारण उस कालखंड में यहां से लोग जलमार्ग से यात्रा करते थे। उस दौरान राजघाट को दिल्ली का केंद्र माना गया और संभवत: तब से यह परिपाटी निरंतर जारी है और राजघाट में दिल्ली का जीरो माइल स्थापित किया गया। राजघाट स्थित जीरो माइल के संकेतक का लंबे समय से रखरखाव न होने का कारण वह धुंधला पड़ गया है। जिस कारण संकेतक को देखकर स्पष्ट नहीं हो रहा है कि यही स्थान दिल्ली का जीरो माइल है।

बिहार की राजधानी पटना की जीरो माइल

बिहार की राजधानी पटना का भी इतिहास काफी समृद्ध है। ईसा से करीब साढ़े तीन सौ साल पहले चंद्रगुप्त मौर्य के शासन की राजधानी पाटलीपुत्र थी। इससे पहले 490 ईसा पूर्व अजातशत्रु ने यहां गंगा किनारे एक छोटा किला बनाया था। सातवीं सदी के बाद पाटलीपुत्र अपनी अहमियत खोता चला गया, लेकिन बाद में 16वीं सदी में शेरशाह सूरी ने इस ऐतिहासिक शहर को फिर से जीवंत किया और इसका नाम बदलकर पटना कर दिया। पटना का जीरो माइल यहां की बड़ी पहाड़ी के पास है। इसी जगह से ही पटना से बिहार में दूसरी जगहों पर जाने के लिए सड़कें मुड़ती हैं।

दक्षिण बिहार से आने वाली गाड़ियां पहले जीरो माइल पर आती हैं, फिर गांधी सेतु होते हुए उत्तर बिहार को चली जाती हैं। जिन्हें पटना से पूर्व नालंदा, बख्तियारपुर, फतुहां, बाढ़, मोकामा की तरफ जाना होता है, वे जीरो माइल से सीधे पूर्व की ओर जाते हैं। जीरो माइल से पश्चिम आरा, बक्सर जैसे शहरों की ओर जाने के भी रास्ते हैं। पटना के जीरो माइल से राज्य के दूसरे बड़े शहर गया की दूरी 108 किलोमीटर है।

नागपुर के जीरो माइल स्टोन की खासियत

महाराष्ट्र के नागपुर में जीरो माइल स्टोन एक स्मारक है। अंग्रेजों के शासन काल में यह जगह भारत का केंद्र बिंदु थी। अंग्रेजों ने ही यहां पर जीरो माइल स्टोन लगाया और उस समय यहीं से देश के अन्य हिस्सों की दूरी मापी जाती थी। यहां के जीरो माइल स्टोन पर चार घोड़े और बलुआ पत्थर का एक पिलर बनाया गया है। यह स्थान नागपुर स्थित विधानभवन के दक्षिण-पूर्व में स्थित है। 

अंग्रेज नागपुर को भारत का केंद्र बिन्दु मानते थे और इसीलिए उन्होंने यहां पर जीरो माइल स्टोन का निर्माण किया। बता दें कि पूर्व में भारत प्रोविंसेस में बंटा हुआ था और नागपुर सेंट्रल प्रोविंस व बेरार प्रोविंस की राजधानी होता था। बाद में जब राज्य बनाए गए तो नागपुर को महाराष्ट्र में सम्मिलित किया गया। यहां पर विधानभवन है और विधानसभा सत्र भी आयोजित किए जाते हैं।


देहरादून का जीरो माइल

देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून एक पुराना शहर है। स्कंद पुराण के में देहरादून को केदारखंड का हिस्सा बताया गया है। महाभारत के अनुसार पांडवों और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य यहां रहा करते थे, इसलिए इसे द्रोणनगरी के नाम से भी जाना जाता है। देहरादून शहर का जीरो माइल शहर का घंटाघर है। घंटाघर का निर्माण ब्रिटिश शासन काल के दौरान अंग्रेजों ने कराया था। शहर का यह घंटाघर षट्कोणीय आकार का है, जिसके शीर्ष पर छः मुखों पर छः घड़ियां लगी हुई हैं, हालांकि मौजूदा समय में यह घड़िया चालू स्थिति में नहीं हैं। देहरादून का यह घंटाघर बिना घंटानाद का सबसे बड़ा घंटाघर है। 

यह घंटाघर ईंटों और पत्थरों से निर्मित है और इसके षट्कोणीय आकार की हर दीवार पर प्रवेशमार्ग बना हुआ है। इसके मध्य में स्थित सीढ़ियां इसके ऊपरी तल तक जाती हैं, जहां अर्धवृत्ताकार खिड़कियां हैं। देहरादून का घंटाघर शहर में सबसे सौन्दर्यपूर्ण संरचना है। यह घंटाघर देहरादून की सबसे व्यस्त राजपुर रोड के मुहाने पर स्थित है और यह यहां की प्रमुख व्यवसायिक गतिविधियों का केंद्र है।

धर्मतल्ला में कोलकाता का जीरो माइल

कोलकाता के जीरो माइल के तौर पर कोलकाता राजभवन का उल्लेख है। यह कोलकाता के धर्मतल्ला इलाके में स्थित है। इसकी स्थापना सन् 1799 में हुई थी और यह 1803 में बनकर तैयार हुआ था। इसके निर्माण में 63,291 पाउंड की लागत आई थी। राजभवन 84,000 वर्ग फुट इलाके में फैला हुआ है। राजभवन में करीब 60 कमरे हैं। यह मौजूदा राज्यपाल केसरीनाथ त्रिपाठी का आधिकारिक निवास स्थल भी है।