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पराली पर दिल्ली और हरियाणा में छिड़ी रार, तो पंजाब के कुछ ऐसे हैं तर्क

प्रदूषण से निपटने की जमीनी हकीकत को हमारे देश के नेता समझना नहीं चाह रहे हैं। यही वजह है कि प्रदूषण के नाम पर जोर-शोर से सियासत जारी है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 14 Nov 2017 06:17 PM (IST)
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पराली पर दिल्ली और हरियाणा में छिड़ी रार, तो पंजाब के कुछ ऐसे हैं तर्क

नई दिल्‍ली (स्‍पेशल डेस्‍क)। दिल्‍ली समेत देश के चार दूसरे राज्‍यों पर छाए स्‍मॉग की देश और विदेशों में चर्चा हो रही है। आलम यह है कि लगातार वायु प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। इतना ही नहीं इसका असर भारत और खासकर दिल्‍ली आने वाले सैलानियों पर भी पड़ रहा है। एनजीटी हो या फिर सुप्रीम कोर्ट, लगातार सरकारों को इसको लेकर फटकार लगा रहे हैं। लेकिन इन सभी के बीच प्रदूषण से निपटने की जमीनी हकीकत को हमारे देश के नेता समझना नहीं चाह रहे हैं। यही वजह है कि प्रदूषण के नाम पर जोर-शोर से सियासत जारी है। यहां पर यह बात ध्‍यान में रखनी बेहद जरूरी है कि प्रदूषण को लेकर लगातार पंजाब और हरियाणा के किसानों द्वारा जलाई जा रही पराली को जिम्‍मेदार ठहराया जा रहा है। अब इसी पराली को लेकर दिल्‍ली, हरियाणा और पंजाब के सीएम आमने-सामने हैं। पंजाब इस मामले में केंद्र के दखल देने की भी मांग कर रहा है, जबकि दिल्‍ली और हरियाणा एक दूसरे पर आरोप मढ़ने में लगे हैं।

दिल्‍ली-हरियाणा में आरोप-प्रत्‍यारोपों का दौर

दिल्ली सरकार का आरोप है कि पंजाब व हरियाणा की सरकारें किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए कारगर उपाय नहीं करती हैं। इस बाबत हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक पत्र लिखकर पूछा है कि दिल्ली के आसपास किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए उन्होंने क्या उपाय किए हैं। इस पत्र में उन्‍होंने यह भी कहा है कि दिल्ली के इर्दगिर्द करीब 40 हजार परिवार 40 हजार हेक्टेयर जमीन पर खेती करते हैं, क्‍या दिल्‍ली सरकार ने उन्‍हें ऐसा न करने देने के लिए कोई कदम उठाए हैं। कोई उपाय किए हैं...

खट्टर के सवालों के जवाब में दिल्‍ली सरकार की तरफ से कहा गया है कि हरियाणा और अन्य राज्यों में फसल की कटाई मशीनों से होती है, जिससे बड़ी ठूंठ रह जाती है और उसे जलाना पड़ता है, जबकि दिल्ली में किसान फसलों को जड़ के करीब से काटते हैं। दिल्‍ली सरकार की तरफ से यह भी कहा गया है कि वह इस प्रदूषण को रोकने के लिए जितना कर सकती थी, उससे कहीं ज्‍यादा कर रही है।

सभी विकल्‍प तलाशे जाने जरूरी

वहीं बात करें पंजाब की तो वहां के मुख्‍यमंत्री कैप्‍टन अमरिंदर सिंह का मानना है कि वह न चाहते हुए भी इसको लेकर किसानों पर कार्रवाई कर रहे हैं। उनका यह भी मानना है कि पराली जलाने के अलावा किसानों के पास कोई विकल्‍प नहीं है। वातावरण के प्रदूषित होने की वजह वह सिर्फ पराली का जलाना नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि ऐसा करके समस्‍या का सरलीकरण किया जा रहा है। अमरिंदर का कहना है कि जो किसान पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है, उस पर पराली जलाने को लेकर कार्रवाई करना एक तरह से उसके साथ दुर्भावनापूर्ण व्‍यवहार करने जैसा है। उनके मुताबिक इसके लिए सभी विकल्‍पों को तलाशा जाना चाहिए और यदि इनसे भी बात न बनें तो फिर न्‍यायिक विकल्‍प का सहारा लिया जाना चाहिए।

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नहीं हुई सार्थक पहल

उन्‍होंने इस बात पर अफसोस जाहिर किया है कि इस समस्‍या को सुलझाने के लिए आज तक कोई सार्थक पहल की ही नहीं गई है। यही वजह है कि समस्‍या साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। इस बाबत उन्‍होंने यह भी साफ कर दिया है कि वह पराली जलाने की निगरानी तो जरूर करेंगे, लेकिन उन लोगों को संतुष्ट करने के लिए किसानों को पकड़कर जेल में नहीं डालेंगे जो पर्यावरण के खराब हालात के लिए केवल पंजाब के किसानों को जिम्मेदार मानते हैं। लेकिन वह पराली न जलाने को लेकर किसानों को जागरुक बनाने का अभियान भी चलाते रहेंगे।

उनके सुझाए ये हैं विकल्‍प और समस्‍याएं

उन्‍होंने पराली जलाने के विकल्‍प के तौर पर सुझाव दिया है कि वह पराली को इकटठा कर ऐसी जगह ले जाएं, जहां इसका उचित निपटान संभव हो सके। लेकिन इसमें एक समस्‍या यह है कि यह काम पंद्रह दिनों में होना चाहिए। क्‍योंकि धान की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच किसानों को जमीन तैयार करने के लिए बमुश्किल 15 दिनों का ही वक्त मिलता है। पंजाब में करीब दो करोड़ टन धान की पराली निकलती है। इसको ठिकाने लगाने के लिए 2,000 करोड़ रुपये से अधिक रकम की दरकार होगी। लेकिन समस्‍या यह है कि राज्‍य का खजाना खाली है और राज्‍य पर कर्ज का भी बोझ है। वह यह भी मानते हैं कि राज्‍य सरकार की कोशिशों के चलते ही पराली जलाने के मामलों में कमी आई है। उनके मुताबिक जुलाई में इसको लेकर एक रिपोर्ट केंद्र को सौंपी गई थी, जिसमें पराली के उचित प्रबंधन की बात कही गई थी।

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कांग्रेस के विचार में प्रदूषण की समस्‍या

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने पूरे हालात के लिए सीधे केंद्र को जिम्‍मेदार ठहराया है। उन्‍होंने पूछा है कि सबकुछ जानकर भी आखिर केंद्र अनजान क्‍यों है। उन्‍होंने परोक्ष तौर पर सरकार की ‘निष्क्रियता’ पर चोट करते हुए सोमवार को ट्वीट भी किया, जिसमें लिखा गया था ‘सीने में जलन, आंखों में तूफान-सा क्यूं है, इस शहर में हर शख्स परेशान-सा क्यूं है।’ 1978 में आई फिल्म ‘गमन’ के इस गीत में राहुल ने एक लाइन और जोड़ी, ‘क्या बताएंगे साहब, सब जानकर अनजान क्यूं हैं..।’ अपने ट्वीट के साथ राहुल गांधी ने मास्क पहने एक बच्चे की तस्वीर और एक रिपोर्ट भी पोस्ट की। इसके मुताबिक, वायु प्रदूषण की वजह से हर साल भारत में 18 लाख लोगों की मौत होती है।


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