पराली ने नरक बना दी है पंजाब से लेकर पटना तक के लोगों की जिंदगी
देश के लिए दिल्ली आईना दिखा रही है। इसकी दुर्दशा से सीखिए और चेतिए जिससे आप अपने घर में कैद होने से बचे रहें।
नई दिल्ली (स्पेशल डेस्क)। दिल्ली समेत कई राज्य इन दिनों स्मॉग की चपेट में है। सुबह और शाम लोगों का इससे सामना हो रहा है, लिहाजा लोगों को परेशानी भी हो रही है। यह स्मॉग सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसकी चपेट में पाकिस्तान के भी कई हिस्से हैं। पिछले दिनों नासा ने जो तस्वीर जारी की थी उसमें इसकी चपेट में पाकिस्तान से पटना तक दिखाई दे रहा है। नासा का सेटेलाइट चित्र बताता है कि पाकिस्तान के पूर्वी इलाकों से लेकर भारत के बिहार और बंगाल तक यह पसरी है। पराली जलाने के कारण पाकिस्तान और पूरे उत्तर भारत में यह स्थिति है। जिस तरह से अभी देश के तमाम अन्य शहरों की वायु गुणवत्ता खराब हो चली है उससे अगर लोगों ने जीवन जीने के अपने तौर-तरीके नहीं बदले और सरकारों ने पर्यावरण बचाने को दृढ़ इच्छाशक्ति नहीं दिखाई तो पूरा देश दिल्ली बन जाएगा।
पंजाब
फेस्टीवल सीजन, धान की कटाई और मौसम में बदलाव के कारण अक्टूबर और नवंबर के दौरान राज्य में वायु प्रदूषण घातक स्तर पर पहुंच जाता है। हालांकि पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के आंकड़ों के मुताबिक पांच वर्षों के दौरान वायु प्रदूषण का स्तर काफी नीचे आया है। लेकिन दिवाली और गुरुपर्व के दौरान सामने आए पीपीसीबी के आंकड़ों के मुताबिक स्थिति अभी भी खतरनाक है। पटियाला में 2012 में वायु प्रदूषण का स्तर 122
आरएसपीएम था जो 2016 में 130 आरएसपीएम तक पहुंच गया। राज्य में अब तक एक करोड़ 23 लाख टन पराली जलाई जा चुकी है। पांच साल पहले यहां ईंट भट्टों की संख्या करीब 3000 थी, जो अब घटकर 2400 रह गई है। वर्तमान में 95 लाख वाहन सड़कों पर हैं। करीब 12 लाख कॉमर्शियल वाहन हैं। इनमें 4.5 लाख ट्रैक्टर भी शामिल हैं। राज्य के प्रदूषण में इन वाहनों की भूमिका करीब 12 फीसद है। यहां गाड़ियों की वृद्धि दर तकरीबन नौ फीसद है।
उत्तराखंड
उत्तराखंड में स्मॉग यानी जहरीली धुंध पसरने जैसी स्थिति नहीं है, लेकिन देहरादून समेत अन्य मैदानी क्षेत्रों में वायु
प्रदूषण बढ़ा है। उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के मुताबिक देहरादून, ऊधमसिंहनगर, रुड़की समेत दूसरे मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर को छू रहा है। देहरादून के आइएसबीटी में आमतौर पर हवा में सस्पेंडेंट पार्टिकुलेट मैटर 300 के आसपास रहते हैं, लेकिन इन दिनों यह 400 के आंकड़े को पार कर चुका है। ऐसी ही स्थिति अन्य मैदानी और खासकर उन क्षेत्रों में है, जहां औद्योगिक इकाइयों के साथ ही वाहनों की संख्या अधिक है। राज्य में मार्च 2016 तक 21.17 लाख छोटे-बड़े वाहन पंजीकृतथे। अब यह आंकड़ा 23 से 24 लाख के बीच पहुंच गया है। ऐसे में वाहनों से निकलने वाला धुआं परेशानी का सबब बन रहा है। इसके चलते कुछ इलाकों में धुंध भी है।
हिमाचल प्रदेश
प्रदेश की आबोहवा में जहरीले कण काफी कम हैं। कुछ क्षेत्रों को छोड़कर अन्य जगह वातावरण शुद्ध है। सोलन जिला के बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़, ऊना जिला, सिरमौर जिला के काला अंबव पांवटा साहिब में ही अन्य राज्यों के वायु प्रदूषण का कुछ असर देखने को मिलता है। ये इलाके पड़ोसी राज्यों की सीमाओं से सटे हैं। इसके अलावा अन्य स्थानों की आबोहवा साफ है। प्रदेश का कोई हिस्सा स्मॉग की चपेट में नहीं है। दिवाली की रात भी जहरीले कण रेस्पिरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (आरएसपीएम) की मात्रा अधिकतर क्षेत्रों में 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से भी कम रहती है। शिमला की हवा में सल्फर डाइऑक्साइड 2.0 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और नाइट्रोजन ऑक्साइड 29.0 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। धर्मशाला और मनाली में दोनों ही गैसों की मात्रा सिर्फ 4.5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। राज्य में सर्वाधिक आरएसपीएम 187 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर बद्दी में है। इसके अलावा सभी प्रमुख शहरों में आरएसपीएम 100 से कम है।
उत्तर प्रदेश
वायु प्रदूषण की काली धुंध में मेरठ का दम घुट रहा है। यहां पर हवा की गुणवत्ता दिल्ली से भी खराब मिली है। जहां दिल्ली में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम-2.5) की औसत मात्रा 400 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, वहीं मेरठ में तमाम स्थानों पर सात से आठ सौ माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर मिला। चिकित्सकों का दावा है कि हर तीसरे व्यक्ति पर दमा का खतरा है। औद्योगिक सेक्टर में पेटकॉक और फर्नेस आयल का ईंधन के रूप में प्रयोग हो रहा है। कानपुर का प्रदूषण दिल्ली को टक्कर दे रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वायु गुणवत्ता सूचकांक में कानपुर प्रदेश का पांचवां सबसे प्रदूषित शहर हो गया है। बीते गुरुवार को (पीएम 2.5) 436 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रिकार्ड किया गया। इसका मानक 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होता है।
नाइट्रोजन डाईऑक्साइड 107.85 और कार्बन मोनोऑक्साइड 5.92 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहा। इसका एक कारण चमड़ा उद्योग भी है। यहां 418 चमड़ा इकाइयां हैं। बीते वर्ष के मुकाबले लखनऊ की हवा कुछ और जहरीली हो गई है। लखनऊ भी धुंध की गिरफ्त में है। बीते सप्ताह भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) की लखनऊ के पर्यावरण की रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण की वजह से लोग एलर्जिक ब्रांकाइटिस व अस्थमा से पीड़ित हो रहे हैं। मुरादाबाद मंडल भी तीन दिन से काली धुंध की चपेट में है। सात नवंबर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में मुरादाबाद को देश का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया था। इस दिन प्रदूषण का स्तर 519 पीएम-10 दर्ज किया गया था। मुरादाबाद में वायु प्रदूषण के लिए ई-कचरा जलाए जाने और एक्सपोर्ट इंडस्ट्री के लिए विभिन्न धातुओं को गलाकर वस्तळ्ओं बनाए जाने को मुख्य कारक माना गया है।
बिहार
पटना और मुजफ्फरपुर समेत एक दर्जन शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर है। 01 अप्रैल 2016 से 31 मार्च 2017 तक करीब आठ लाख वाहनों का रजिस्ट्रेशन हुआ। पटना में एक अप्रैल 2011 को 2. 34 लाख वाहन रजिस्टर्ड थे। 31 मार्च 2016 को 6.74 लाख हो गए। इस साल करीब 8 लाख की संख्या भी पार हो गई है। शहरीकरण एवं सड़क चौड़ीकरण के नाम पर पिछले दस साल में पूरे प्रदेश में हजारों पेड़ काटे गए। राजधानी में बेली रोड और वीरचंद पटेल पथ के चौड़ीकरण के लिए दस हजार से अधिक पेड़ काट दिए गए। प्रदूषण पर अंकुश लगाने को राज्य सरकार द्वारा पटना के आसपास के क्षेत्रों में नए ईंट भट्टे खोलने पर रोक लगा दी गई है, लेकिन, दूसरे जिलों में ईंट भट्टे धड़ल्ले से चल रहे हैं।
झारखंड
वायु प्रदूषण निर्धारित मानकों को पार कर गया है। तीन मानकों में से एक में हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा तो निर्धारित दायरे 80 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर के दायरे में है लेकिन आरएसपीएम 100 के निर्धारित दायरे को पार कर गया है। केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के नेशनल एयर क्वालिटी मॉनिर्टंरग प्रोजेक्ट के तहत राज्य के चार जिलों में वायु प्रदूषण की जांच के लिए मशीनें लगाई गई हैं। गत माह आरएसपीएम रांची, धनबाद और जमशेदपुर में आवश्यकता से अधिक रहा। रांची में दो जगह रिकार्ड किए गए आरएसपीएम का औसत 135-140 रहा। जबकि धनबाद के विभिन्न क्षेत्रों में इसका औसत 129 से 168 पाया गया। 30 फीसद वनों से आच्छादित झारखंड के वायुमंडल में आरएसपीएम की मात्रा का निर्धारित मानकों से अधिक रहना खतरे की घंटी है।
पश्चिम बंगाल
वायु प्रदूषण के बढ़ते प्रभाव से कोलकाता की हवा भी तेजी से जहरीली होती जा रही है। यहां कई बार न सिर्फ दिल्ली की तरह प्रदूषण ने खतरनाक स्तर को छुआ है बल्कि इसे पार भी किया है। इस साल जनवरी में ब्रिटिश डिप्टी हाई कमीशन, यूकेएआइडी और कोलकाता नगर निगम द्वारा जारी की गई संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया कि रोजाना 14.8 मिलियन टन ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन करने वाला कोलकाता देश का पांचवां सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में भी कोलकाता दूसरे नंबर पर है। कोलकाता में वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत वाहन हैं, इनकी हिस्सेदारी करीब 50 फीसद है। उद्योगों की हिस्सेदारी 48 फीसद जबकि कोयला व लकड़ी से भोजन पकाने का दो फीसद हिस्सा है। महानगर की करीब 1.5 करोड़ आबादी में से 70 फीसद लोग वायु प्रदूषण के कारण होने वाली सांस संबंधी समस्याओं से पीड़ित हैं। पिछले चार वर्षों में महानगर व आसपास इलाकों की हवा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा तय सीमा से कहीं ऊपर चली गई है। इसके बावजूद कोलकाता की भौगोलिक स्थिति कुछ ऐसी है कि यहां प्रदूषण रिकार्ड कम होता है।
हरियाणा
अधिकतर जिले कई दिन से स्मॉग की चपेट में हैं। भले ही इसके लिए पराली जलाने वाले किसानों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा हो, लेकिन हवा में जहर घोलने के लिए अकेले वे ही जिम्मेदार नहीं हैं। राज्य में प्रदूषण का बड़ा कारण अवैध खनन, अंधाधुंध निर्माण कार्य, धुआं उड़ाते वाहन, खुले में कूड़ा जलाना, कारखाने और नियमों को ताक पर रख कर चल रहे 2947 ईंट भट्टे और स्टोन क्रशर हैं। अधिकतर ईंट भट्टे एनसीआर इलाके में ही मौजूद हैं। सरकार ने हाल ही में इनके संचालन पर रोक लगा दी है। प्रदूषण का स्तर इस कदर बढ़ रहा कि दिल्ली के साथ लगते गुरुग्राम, फरीदाबाद और सोनीपत की हवा में जहरीली गैसों की मात्रा निर्धारित मानकों से कई गुणा बढ़ चुकी। फरीदाबाद और गुरुग्राम में औसतन 400 माइक्रोग्राम घन मीटर पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 मापा गया। पूरे महीने हवा तय मानक 60 घन क्यूबिक मीटर से औसतन पांच गुणा अधिक जहरीली रही। इसके अलावा भिवानी, हिसार, यमुनानगर, बहादुरगढ़, बल्ल्भगढ़ और धारूहेड़ा भी खूब प्रदूषण फैला रहे हैं। प्रदेश की सड़कों पर दौड़ रहे करीब 75 लाख वाहनों में से 40 फीसद पुराने हैं, जिन पर किसी का कोई अंकुश नहीं। हर साल करीब पांच लाख वाहन और सड़कों पर आ रहे हैं। राज्य के मुख्य सचिव डीएस ढेसी के अनुसार अगले आदेश तक एनसीआर के भट्टे और स्टोन क्रशर बंद कर दिए गए हैं।
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