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जानें, क्यों एनएसए अजीत डोभाल के बीजिंग दौरे से चीन पड़ सकता है नरम

डोकलाम मामले में चीन की तरफ से जिस तरह के बयान आ रहे हैं वो तनाव को बढ़ाने वाले हैं। इन सबके बीच अजीत डोभाल की बीजिंग यात्रा महत्वपूर्ण बतायी जा रही है।

By Lalit RaiEdited By: Updated: Thu, 27 Jul 2017 11:23 AM (IST)
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जानें, क्यों एनएसए अजीत डोभाल के बीजिंग दौरे से चीन पड़ सकता है नरम

नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । डोकलाम के मुद्दे पर चीन का मानना है कि भारत ने अनैतिक तौर पर भूटानी सेना की मदद की थी। ये बात अलग है कि वो खुद अनधिकृत तौर से डोकलाम में सड़क निर्माण के जरिए अपने वर्चस्व को बढ़ाने में लगा है। पिछले 40 दिनों से दोनों देशों की सेना एक दूसरे के आमने-सामने करीब सात किमी के दायरे में खड़ी हैं। चीन की तरफ से लगातार जहरीले बयान आ रहे हैं। इन सबके बीच एनएसए अजीत डोभाल की चीन यात्रा से ठीक पहले ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि उनके दौरे से कोई समाधान नहीं निकलेगा। इसके अलावा चीन में ये भी प्रचारित किया जा रहा है कि डोकलाम विवाद के पीछे अजीत डोभाल का दिमाग काम कर रहा है। चाइन डेली मेल का मानना है कि सिक्किम मसले के समाधान में देरी नहीं हुई है। संघर्ष से बचने की जरूरत है। इन सबके बीच डोभाल के बीजिंग दौरे से ठीक पहले श्रीलंका ने चीन को झटका दिया है। 

हंबनटोटा पर चीन को झटका

श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह का चीन अब सिर्फ व्यवसायिक तौर पर ही इस्तेमाल कर सकेगा। दुनिया की सबसे व्यस्त शिपिंग लेन के करीब हंबनटोटा बंदरगाह पर 150 करोड़ का निवेश हुआ है। जिसमें करीब 80 फीसद हिस्सेदारी चीन की है। श्रीलंका के इस कदम से भारत, जापान और अमेरिका की चिंता काफी हद तक दूर होगी। भारत पहले ही हंबनटोटा बंदरगाह के सैन्य इस्तेमाल पर आपत्ति जता चुका है। 2014 में भारत ने कोलंबो में चीनी पनडुब्बी की मौजूदगी को लेकर चिंता जाहिर की थी।


श्रीलंका सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि कैबिनेट ने डील को मंजूरी दे दी है और अब संसद की मंजूरी की जरूरत होगी। चीन के साथ हंबनटोटा को लेकर हुए अनुबंध की शुरुआत से ही मुखालफत हो रही थी। इसके खिलाफ श्रीलंका में काफी विरोध प्रदर्शन भी हुए थे। विपक्षी नेताओं का कहना था कि इतनी बड़ी मात्रा में चीन को भूमि का हस्तांतरण करना श्रीलंका की संप्रभुता के लिए खतरा है।

डोकलाम पर चीन की नापाक चाल

भारत की तरफ से डोकलाम विवाद का निपटारा कूटनीतिक स्तर से करने के संकेतों को दरकिनार करते हुए चीन अब भी आक्रामक अंदाज अपनाए हुए है। मंगलवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी दबाव बनाने की रणनीति को आगे बढ़ाते हुए पहले डोकलाम से भारतीय फौज वापस बुलाने की मांग की थी। बुधवार को बीजिंग जा रहे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल की यात्रा से कोई खास नतीजा निकलने के आसार कम हैं। डोभाल ब्रिक्स देशों की शिखर बैठक की तैयारियों के सिलसिले में बीजिंग जा रहे हैं।

डोकलाम पर भारत का संयमित व्यवहार

चीन के इस तल्ख तेवर के बावजूद भारत बेहद गंभीर प्रतिक्रिया दिखा रहा है और उम्मीद कर रहा है कि मामले को कूटनीतिक विमर्श से सुलझाया जा सकता है। बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास लगातार वहां के विदेश मंत्रालय के साथ संपर्क में है। अगर डोभाल की इस हफ्ते की यात्रा से बर्फ को पिघलाने में मदद नहीं मिलती है तो उसके बाद विदेश सचिव एस. जयशंकर और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी बीजिंग की यात्रा जल्द ही करनी है। यह यात्रा ब्रिक्स देशों की बैठक के संदर्भ में ही अगस्त 2017 में हो सकती है। 

कूटनीतिक जानकारों का कहना है कि ब्रिक्स शिखर बैठक 5-7 सितंबर, 2017 को हो सकती है। ऐसे में भारत व चीन नहीं चाहेंगे कि इस शिखर बैठक तक मौजूदा सीमा विवाद खिंचता रहे। यह भी एक वजह हो सकता है कि चीन ज्यादा तल्ख तेवर अपनाए हुए है। यह एक वजह है कि चीन ने इस बात के साफ संकेत नहीं दिए हैं कि डोभाल की इस हफ्ते की यात्रा के दौरान द्विपक्षीय मुद्दों पर बात होगी या नहीं। साथ ही चीन के विदेश मंत्री ने पहली बार पूरे मामले पर कहा, ‘इस मामले का बहुत ही आसान समाधान है। भारत अपनी फौज को चीनी क्षेत्र से वापस बुलाए।’ उन्होंने यह भी दावा किया, ‘भारत के अधिकारी भी कह रहे हैं कि घुसपैठ भारतीय सेना की तरफ से की गई है।