कुछ इस तरह से मुश्किल में पड़ सकते हैं पूर्व पीएम मनमोहन, वाजपेयी समेत कई दूसरे माननीय
देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों समेत कई दूसरे माननीयों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल, इन माननीयों को अब अपने सरकारी बंगले खाली करने पड़ सकते हैं।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क]। देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों समेत कई दूसरे माननीयों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। दरअसल, इन माननीयों को अब अपने सरकारी बंगले खाली करने पड़ सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कुछ ऐसा ही सुझाव देश के पूर्व सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रहमण्यम ने देश की शीर्ष कोर्ट को दिया है। ऐसे में यदि कोर्ट उनके दिए सुझावों को मान लेती है तो पूर्व पीएम मनमोहन, अटल बिहारी वाजपेयी समेत पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिलज को भी अपने सरकारी बंगले छोड़ने होंगे। यह सब कुछ उस जनहित याचिका के मद्देनजर हो सकता है जो पिछले वर्ष 23 अगस्त को एक एनजीओ 'लोक प्रहरी' की ओर से कोर्ट में दायर की गई थी। जस्टिस रंजन गोगोई और नवीन सिन्हा की अदालत ने गोपाल सुब्रमण्यम को इस मामले में एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था।
नहीं मिलना चाहिए कोई विशेषाधिकार
जस्टिस रंजन गोगोई की पीठ को दी राय में सुब्रह्मण्यम ने कहा कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भी क्यों न हों, रिटायर होने के बाद वे सीधे आम नागरिक के दर्जे पर वापस आ जाते हैं, इसलिए उन्हें कोई विशेषाधिकार नहीं मिलना चाहिए। यह सुझाव महत्वूपर्ण है, क्योंकि 23 अगस्त को सुनवाई में जस्टिस गोगोई की बेंच ने गोपाल को एमाइकस नियुक्त करते हुए कहा था कि याचिका में उठाए मुद्दे व्यापक जनमहत्व के हैं। एमाइकस ने यह भी कहा कि कोई सार्वजनिक संपत्ति नेताओं के स्मारक बनाने में भी प्रयोग नहीं होनी चाहिए। इस मामले की सुनवाई इसी महीने संभव है। आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि जहां भारत में पूर्व सीएम और मंत्री सरकारी बंगले की मांग करते रहते हैं या मिलने के बाद उन्हें खाली नहीं करते हैं वहीं अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति को भी सरकारी बंगला देने का नियम नहीं है। लिहाजा वहां पर किसी भी पूर्व राष्ट्रपति को सरकारी आवास नहीं दिया जाता है।
कोर्ट का था ये कहना
'लोक प्रहरी' ने यूपी सरकार की ओर से पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगलों के आवंटन के फैसले को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दायर की थी। इसकी सुनवाई करते हुए बेंच ने कहा था, 'हमारा यह मानना है कि इस याचिका में उठाए गए मुद्दे जनता के महत्व के हैं। यह सवाल अन्य राज्यों और केंद्र में भी खड़ा होता है। हमारा विचार है कि इस मामले में गहराई से विचार किए जाने की जरूरत है और सभी संबंधित पक्षों के बारे में सोचा जाना चाहिए।' इस पर सुब्रमण्यम ने राय जाहिर करते हुए कहा था कि शीर्ष पदों पर बैठने के बाद ये लोग एक सामान्य नागरिक के तौर पर लौट आए। ऐसे में उन्हें अपने आधिकारिक आवास खाली करने चाहिए। सुब्रमण्यम की यह राय सरकारी बंगलों में रह रहे पूर्व प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के अलावा मृतक नेताओं के आवासों को मेमोरियल में तब्दील किए जाने के फैसलों के लिहाज से भी अहम है।
सीजेआई को भी नहीं मिलता आवास
देश के मुख्य न्यायाधीश(सीजेआई), नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक और अन्य संवैधानिक पदधारकों को भी पदमुक्त होने पर सरकारी आवास छोड़ना पड़ता है। इन परिस्थितियों में सिर्फ कुछ जनसेवकों को विशेषाधिकार देकर भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं किया जा सकता। सुब्रह्मण्यम का कहना है कि यह पूरे देश में व्याप्त है, इसलिए इससे पहले कि इस तरह का कोई दावा किसी और राज्य से आए, इस व्यवहार को अनुच्छेद 14 (बराबरी का अधिकार) की कसौटी पर कसकर अंतिम रूप से खत्म कर देना चाहिए।
बंगले जो बन गए मेमोरियल
6, कृष्ण मेनन मार्ग स्थित बंगले में बाबू जगजीवन राम रहते थे और अब वह उनका मेमोरियल बनने वाला है। इसी तरह जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के मेमोरियल भी तैयार हुए हैं। गोपाल सुब्रमण्यन की राय है कि एक बार जब पूर्व पीएम या प्रेजिडेंट अपना पद छोड़ता है तो उसे अपने आधिकारिक आवास भी छोड़ देने चाहिए। वह पद को छोड़ने के बाद देश के सामान्य नागरिक के तौर पर जीवन में वापसी करता है। उन्होंने कहा कि पद छोड़ने के बाद वे आम नागरिक होते हैं, इसलिए उन्हें न्यूनतम प्रोटोकॉल, पेंशन और अन्य पोस्ट रिटायरमेंट सेवाओं के अलावा अधिक लाभ नहीं दिए जाने चाहिए। जस्टिस गोगोई और आर. भानुमति ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अगली तारीख 16 जनवरी के लिए तय की है। सुब्रमण्यम ने कहा कि पूर्व राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को सरकारी बंगले दिया जाना समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
कहां कहां रहते हैं ये माननीय
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